आईनेक्स्ट ने इस सर्वे में ईस्टर्न वेस्ट और मिडिल यूपी के चुनिंदा शहरों में यूथ की राय जानी है. यह जानना भी कम दिलचस्प और चौंकाने वाला नहीं रहा कि अलग-अलग सिटीज के यूथ पॉलिटिकली कितने एक्टिव हैं और पॉलिटिकल सीनारियो में चेंज लाने के लिए वे किस हद तक जा सकते हैं. सर्वे के रिजल्ट बता रहे हैं कि डिफरेंट सिटीज के यूथ पॉलिटकल सिस्टम से जुडऩे के बारे में अलहदा ओपिनियन रखते हैं.


सिटी वाइज एनालिसिस1. क्या अपने मनपसंद कैंडिडेट को जिताने के लिए आप चुनाव प्रचार में हिस्सा लेंगे?हांइलाहाबाद-42 फीसदी, कानपुर-39, लखनऊ-35 सबसे ज्यादा मेरठ- 63 फीसदी, वाराणसी-58 फीसदी, बरेली- 56, आगरा-54, गोरखपुर-54नहींसबसे ज्यादा कानपुर-45 फीसदी, बरेली-38, लखनऊ-37 सबसे कम वाराणसी- 23 फीसदी, पता नहींसबसे ज्यादा इलाहाबाद- 33 फीसदी, लखनऊ- 27 फीसदी सबसे कम बरेली-6 फीसदी और मेरठ-7 फीसदीसिटी वाइज यूथ की ओपिनियन बताने वाले ये आंकड़े भी काफी इंट्रेस्टिंग हैं. अगर हम यूथ में पॉलिटिकल अवेयरनेस और पार्टिसिपेशन की बात करें तो बाजी वेस्टर्न यूपी के हाथ जाती है. आठों सिटीज में मेरठ और बरेली के यूथ सबसे आगे हैं, जो अपने फेवरिट कैंडिडेट को जिताने के लिए इलेक्शन कैम्पेन में हिस्सा लेना चाहते हैं. मेरठ में यह आंकड़ा सबसे ज्यादा यानी 63 फीसदी है. इसके बाद बरेली का नम्बर है, जहां के 56 फीसदी यूथ पार्टिसिपेशन के लिए तैयार हैं.


इसमें सबसे रोचक बात यह निकलकर आई कि यूपी में सत्ता की धुरी वाली सिटी यानी राजधानी लखनऊ के यूथ पॉलिटिकल पार्टिसिपेशन के मामले में आठों शहरों के यूथ से काफी पीछे हैं. यहां फेवरिट कैंडिडेट के फेवर में महज 35 फीसदी यूथ इलेक्शन कैम्पेन के पार्ट बनना चाहते हैं, जो बाकी शहरों के मुकाबले काफी कम है. चौंकाने वाली बात यह भी है कि लखनऊ के नजदीक बसी इंडस्ट्रियल सिटी कानपुर का नंबर इस मामले में दूसरा है. यहां के यूथ ने भी पॉलिटिकल पार्टिसिपेशन में ज्यादा इंट्रेस्ट नहीं दिखाया और लखनऊ से थोड़ा ही ज्यादा महज 39 फीसदी यूथ अपने फेवरिट कैंडिडेट के फेवर में कैम्पेन करने को तैयार दिखे. बाकी सिटीज यानि आगरा, वाराणसी, बरेली और गोरखपुर में आधे से ज्यादा यूथ चुनाव प्रचार में हिस्सा लेने को तैयार हैं और इन सभी सिटीज में यह आंकड़ा 50 फीसदी से ऊपर है. सर्वे में एक बात और सामने आई. आठों शहरों की तुलना में कानपुर के यूथ पॉलिटिकल प्रोसेस का हिस्सा बनने के मामले में सबसे ज्यादा उदासीन हैं. यहां आधे से थोड़े ही कम यानी 45 फीसदी यूथ ने कहा कि वह अपने फेवरिट कैंडिडेट के फेवर में कैम्पेन नहीं करना चाहते. दूसरे नंबर पर बरेली रहा, जहां के 38 फीसदी यूथ ने इसमें अपना इंट्रेस्ट नहीं दिखाया.

इस पूरे सिनारियो में यूपी की सत्ता चलाने वाला लखनऊ अकेला ऐसा शहर है, जिसका ट्रेंड सभी आठ शहरों से अलग दिखा. यहां कैंडिडेट के फेवर में कैम्पेन नहीं करने का ऑप्शन चुनने वालों की तादाद उनसे ज्यादा रही, जिन्होंने कैम्पेन में भाग लेने के मामले में हामी भरी. यानी लखनऊ के 37 फीसदी यूथ जहां कैम्पेन में हिस्सा नहीं लेना चाहते हैं, वहीं महज 35 फीसदी इससे हिस्सा लेना चाहते हैं.अब बात करते हैं उन सिटीज की, जहां के यूथ इस मामले में अनडिसाइडेड दिखे. इस असमंजस की स्थिति इलाहाबाद के यूथ में सबसे ज्यादा दिखी. यहां एक तिहाई से ज्यादा यानी 33 फीसदी यूथ ये तय नहीं कर पाए कि उन्हें कैम्पेन में हिस्सा लेना चाहिए या नहीं. दिलचस्प तरीके से लखनऊ ने फिर यहां दूसरे पायदान की जगह बनाई है. यहां के 27 फीसदी यूथ इस मामले में कन्फ्यूज्ड थे कि उन्हें कैम्पेन का पार्ट बनना चाहिए या नहीं. आगरा, कानपुर, वाराणसी, और गोरखपुर में ऐसे यूथ की तादाद 15 से 19 फीसदी के बीच रही.इट्रेस्टिंग यह भी रहा कि वेस्टर्न यूपी की दोनों सिटीज, मेरठ और बरेली के यूथ इस मामले में सबसे कम कन्फ्यूज्ड थे. यहां ऐसे यूथ की तादाद दहाई का आंकड़ा भी नहीं पार कर पाई. उनका माइंड सेट क्लियर था- या तो कैंडिडेट के फेवर में कैम्पेन करना है या फिर नहीं करना है. उनमें कन्फ्यूजन नहीं दिखा.

Posted By: Kushal Mishra