मैं और युवराज कैंसर के बारें में बात नहीं करते वो हमारे लिए एक दुखद अध्याय की तरह था जो कि अब बंद हो चुका है. इस घटना से युवराज को ताकत मिली है हम इसे बार- बार याद कर दुखी नही होना चाहते.

वो समय बड़ा ख़राब था, जब मैं युवराज को अमरीका ले कर गई थी। मैं अपने गुरुजी को बहुत मानती हूँ, उन्होंने मुझसे कहा था कि इसे अमरीका ले जाओ, मेरे दिमाग़ में ये बात बैठ गई थी कि ये अमरीका से बिलकुल ठीक हो कर आएगा। मैंने वैसा ही किया।

सारे टेस्ट हम पहले ही भेज दिए थे। डॉक्टरों ने कहा कि बीमारी का इलाज कठिन ज़रूर है, लेकिन असंभव नही। मैंने इस बीमारी को चुनौती की तरह लिया और मैं इसका सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार थी। बस एक ही धुन सवार थी कि चाहे जो भी हो जाए मुझे अपने बच्चे की मदद करनी है और उसे कैंसर से छुटकारा दिलाना है।

शुरुआत में न सिर्फ़ मेरे लिए बल्कि युवराज के लिए ये स्वीकार करना बेहद कठिन था कि बीमारी कोई आम नही बल्कि कैंसर है.उसे ये मालूम थे कि उसे कोई न कोई तकलीफ है पर उसने इसे कभी किसी को जाहिर नही होने दिया।

आलोचनाओं का दौर

बीच में बहुत आलोचनाएं भी हुईं कि युवराज मोटा हो गया है। ये तो खेलना ही नही चाहता। किसी और की कप्तानी में नही खेलना चाहता, ये सारी बातें युवराज को भीतर तक हिला देती थीं। लेकिन सिर्फ़ उसे और मुझे ही पता है कि वो दौर कितना भयानक था, 30-30, 40–40 सुइयां लगती थीं और फिर भी वो अगले दिन खेलता था।

उस दौर में वो अक्सर रोने लगता था पर मैं उसे हौसला देता थी क्योंकि अगर मैं भी रोने लग जाती तो इसे कौन हिम्मत देता। इलाज के दौरान जब मैं भारत आई तो एक चैनल ने टीवी पर युवराज पर प्रोग्राम दिखाया, इसे देखकर मैं इतनी भावुक हो गई कि रो पड़ी। उस वक्त मैं किसी से बात ही नही करना चाहती थी, मैंने लोगों से कहा कि मुझे और युवराज के साथ सहानुभूति मत दिखाओ।

सहानुभूति नही हौसले की ज़रूरतऐसे पलों की कोई कमी नही है जब युवराज ने ख़ुद को काफ़ी कमजोर महसूस किया पर उस समय ट्विटर या दूसरी सोशल नेटवर्क साइट पर लोग उसका हौसला बढ़ाते रहे। यहीं से उसे एक ताकत मिलती रही।

मीडिया में अनाप-शनाप ग़लत ख़बरें आ रही थी, कोई कहता था कि युवराज को फेफड़े का कैंसर है, तो कोई कुछ। ऐसे में युवराज ने फ़ैसला किया कि वो ख़ुद लोगों को बताएगा कि उसे क्या हुआ है और किस तरह से उसका इलाज चल रहा है।

युवराज ने डॉक्टरों से सवाल किया कि क्या उसके बाल झड़ जाएंगे तो डॉक्टरों ने कहा कि हाँ लेकिन वो वापस भी उग आएंगे। ये बात युवराज के लिए सांत्वना की तरह थी। लेकिन जब उसके बाल उतरते थे तो भयानक जलन होती थी। इसलिए युवराज ने अपना सिर ही मुंड़वा लिया।

भौं झड़ चुकी थीं, आँखें बड़ी-बड़ी दिखती थी। पूरे शरीर में स्टेयरॉयड्स का असर दिखता था। वो शीशे के सामने खड़े होकर मुझसे बोलता था कि क्या वो इस दुनिया में सबसे बदसूरत इंसान है।

डरी-सहमी जिंदगीजहाँ तक मैदान में वापसी की बात है तो डॉक्टरों का भी दवाब था कि अब तक युवराज ने खेलना क्यों शुरू नहीं किया। इलाज कर रहे डॉक्टरों ने इसके लिए जो प्रोग्राम बनाया था, उसके मुताबिक कैंसर के इलाज के छह हफ्ते तक ही शरीर पर इलाज के दुष्प्रभाव रहते हैं, इसलिए अब वो मैदान मैं वापसी कर रहा है।

कैंसर ने युवराज को डरा दिया था, डर उस समय भी था और आज भी है कि मैंदान में वापस लौटने के बाद सारी दुनिया उसे देखेगी। उसे मालूम है कि क्रिकेट ही उसकी ज़िंदगी है और वो उससे दूर नही रह सकता।

Posted By: Inextlive