आज कारगिल विजय दिवस है। 8 मई 1999 से लेकर 14 जुलाई 1999 तक कारगिल में चले युद्ध में भारतीय सेना और सैनिकों के अदम्‍य साहस और बलिदान को नमन करने के लिए प्रतिवर्ष 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज हम आपको बता रहे हैं कारगिल युद्ध से जुड़ी कुछ अनजानी बातें और इस मौके पर भारत में सर्मथन में खड़े देश इजराइल से मिलने वाली महत्‍वपूर्ण सहायता के बारे में।

इजराइल ने की खुले दिल से मदद
इजराइल ने अपने आतंकी संगठनों का सामना करने और उनसे अपनी सीमायें सुरक्षित रखने अनुभव को भारतीय सुरक्षा सेनाओं से साझा किया। सबसे बड़ी बात तो ये है कि इजराइल ने अमेरिकी दवाब के बावजूद भारत की भरपूर और खुले तौर पर सहायता की। उसने अपने भारत के साथ पहले से तय हथियारों की सप्लाई करने वाले बेड़ों को रवाना करने में में तेजी लाने की व्यवस्था की।

इजराइल से मिले हेरॉन और सर्चर यूएवी, जो हाई एटीट्यूड पर स्थित स्थानों की तस्वीरे उपलब्ध कराने में सक्षम होते हैं, की मदद से भरतीय सेना को ऊंचाई पर मौजूद दुश्मन के सामरिक ठिकानों पर पैनी नजर रखने में काफी सहायता मिली।

इजराइल ने भारत को ना सिर्फ मानवरहित विमान उपलब्ध कराये बल्कि शत्रु के सैन्य ठिकानों की सैटेलाईट तस्वीरें भी उपलब्ध कराईं।

इजराइल ने बोर्फोस तोप में इस्तेमाल हो सकने योग्य गोला बारूद भी भारत को दिया।

इसके अलावा इजराइल ने भारतीय वायु सेना को मिराज 2000 एच युद्धक विमानों के लिए लेजर गाइडेड मिसाइल भी उपलब्ध कराये।

कई दिक्कतों और कमियों के बाद मिली विजय
कहते हैं कि कारगिल युद्ध के पीछे पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ का दिमाग काम कर रहा था। जैसे ही भारतीय सेनाओं को खुफिया एजेंसियों से कारगिल और द्रास सेक्टर पर पाकिस्तानी सेनाओं की मौजूदगी का पता चला फौरन ही ऑपरेशन विजय की शुरूआत कर दी गयी। हांलाकि उस वक्त सेना पूरी तरह तैयार नहीं थी। इस युद्ध के चलते भारतीय सेनाओं और खुफिया संगठनों की कुछ कमियां भी सामने आयीं।

सबसे बड़ी दिक्कत तो ये थी कि भारतीय सिपाही ऊंचाई पर स्थित सैन्य ठिकानों पर युद्ध लड़ने के अभ्यस्त नहीं थे क्योंकि उन्हें सही प्रशिक्षण और सुविधायें नहीं मिले थे। इसके अलावा भारतीय सेनायें अपनी लाइन ऑफ कंट्रोल के अंदर रह कर ही युद्ध करने के लिए विवश थीं। सीमा पार करने पर बड़े अंतराष्ट्रीय युद्ध के शुरू होने का खतरा था।

एक और समस्या थी कि पाकिस्तानी बंकर्स के पहाड़ीयों में छिपे होने के कारण भारतीय वायुसेना के विमानों को उनकी सही स्थिति पता नहीं चल पा रही थी और वे लक्ष्यहीन मिसाइल फेंक रहे थे। दूसरी ओर भारत के फोटो टोही प्लेटफार्मस भी काम नहीं कर रहे थे क्योंकि इसके लिए उपलब्ध एकमात्र साधन IAF केनबेरा PR57 पाकिस्तानीयों का निशाना बन गया था। अब भारत के पास कोई विकल्प नहीं बचा था जो ऊंचाई पर टोह लेकर भारतीय युद्धक विमानों और सैन्य दलों को पाकिस्तानी सेना की मौजूदगी की जानकारी दे सके।

भारतीय जल सेना पाकिस्तानी नेवी की रुकावटों का सामना करने और उन्हें दूर करने में तो सक्षम थी परंतु इस युद्ध में पाकिस्तान अमेरिका की हारपून मिसाइलों का इस्तेमाल कर रहा था जिनका तोड़ भारतीय सेनायें नहीं खोज पायी थीं।

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Posted By: Molly Seth