Janmashtami 2022 जन्माष्टमी आते ही दही हांडी की तैयारियां शुरु हो जाती है। बाजारों में दही और दूध की दुकानों में भीड़ बढ़ने लगती है। आज हम आपको बताने वाले है कि क्या है दही हांडी प्रथा और इसका इतिहास क्या है।


कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। Janmashtami 2022 इस साल जन्माष्टमी 18 अगस्त और 19 अगस्त को मनायी जा रही है, हालांकि अष्टमी 18 अगस्त की रात 9.40 पर लग रही है। इसलिए बहुत से लोग जन्माष्टमी 18 अगस्त को मना रहें हैं। जन्माष्टमी को लोग अलग-अलग तरह से सेलिब्रेट करते हैं। कई जगहों पर दही हांडी का भी आयोजन किया जाता है। दही हांडी को गोपाल कला और उल्तोतसवम भी कहा जाता है, तो क्या है ये दही हांडी और क्या है इसका इतिहास आज हम आपको यही बताने वाले हैं।दही हांडी का इतिहास और महत्व
हिंदु माइथालॉजी के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण को दूध और दूध से बनी चीजे बहुत पसंद थी। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ मिलकर वृंदावन में रहने वालों के घरों से मक्खन चुराकर खाते थे। इसके कारण वृंदावन वासी उन्हें माखन चोर(मक्खन चुराने वाला) बुलाते थे। एक बार जब सभी भगवान श्रीकृष्ण की चोरियों से परेशान हो गए तो उन्होनें उनकी मां यशोदा से शिकायत कर दी। इसके बाद मां यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण को बांध दिया ताकि वह चोरी न कर सकें। इसके साथ ही मां यशोदा ने सभी वृंदावन वासियों से कहा कि अपनी-अपनी मक्खन की मटकियों को ऊपर बांध कर रखें ताकि छोटे से लड्डू गोपाल उस मटकी तक न पहुंच पाएं। मां यशोदा को लगता था कि श्रीकृष्ण अब मक्खन नहीं चुरा सकते हैं क्योंकि वह अब उनकी पहुंच से बाहर है, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर इसका भी उपाय निकाला। उन्होनें अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक पिरामिड बनाया और फिर मक्खन चुरा लिया। कैसे मनायी जाती है दही हांडी भगवान श्रीकृष्ण की इसी शरारत को याद करने के लिए हर बार जन्माष्टमी पर दही हांडी को रखा जाता है। इस मक्खन और दही से भरी हांडी को जमीन से लगभग 30 फिट की ऊंचाई पर टांग दिया जाता है और लड़के श्रीकृष्ण और ग्वालपालों का रूप बनाकर उस हांडी को फोड़ते है और उसके अंदर भरे दही और मक्खन को खाते हैं। दही हांडी को महाराष्ट्र और गुजरात में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

Posted By: Kanpur Desk