न तो doctors और न ही medical staff कैसे होगा patients treatment ?
नहीं हैं sufficient doctors
बगैर डॉक्टर के हेल्थ सर्विसेज की कल्पना नहीं की जा सकती। पर डिस्ट्रीक्ट में हेल्थ सर्विसेज की ये रीढ़ ही कमजोर है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हेल्थ डिपार्टमेंट द्वारा 72 रेग्यूलर डॉक्टर्स के पोस्ट सैैंक्शन्ड है पर प्रेजेंट में सिर्फ 66 डॉक्टर्स की पोस्टिंग है। वहीं कांट्रैक्ट पर भी 26 डॉक्टर्स की पोस्टिंग है। इनमें से भी कई डॉक्टर ऐसे है जो सिर्फ कागजों पर ही काम करते हैं। कुछ ही दिनों पहले डिस्ट्रीक्ट के डिफरेंट पीएचसी और हेल्थ सेंटर्स पर तैनात 27 डॉक्टर्स की पहचान की गई थी जो सैलरी लेने के बावजूद ड्यूटी से गायब रहते थे।
नहीं है proper infrastructure
स्टेट और डिस्ट्रीक्ट लेवल पर हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर की काफी कमी है। ऑफिशियल डाटा के अनुसार 2008 में स्टेट में हर एक लाख व्यक्ति पर गवर्नमेंट हॉस्पिटल की संख्या महज 18 थी जबकि नेशनल लेवल पर ये आंकड़ा 43 का है।
उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ जैसे नए स्टेट्स भी इस मामले में झारखंड से आगे हंै। उत्तराखंड में हर एक लाख व्यक्ति पर 84 और छत्तीसगढ़ में 41 गवर्नमेंट हॉस्पिटल बेड हैं। बात इस्ट सिंहभूम की करे तो यहां एएनएम के 715 सैैंक्शन्ड पोस्ट में 360 खाली है वहीं स्टाफ नर्स के 41 सैैंक्शन्ड पोस्ट में 34 वेकेंट हैैं। कुछ यही स्थिती फार्मासिस्ट और लैब टेक्निशियन्स जैसे पोस्ट पर भी है। इंफ्रास्ट्रक्चर और मैन पावर की ये कमी अक्सर लोगों के हेल्थ केयर में आड़े आती है।
हेल्थ पर किए जाने वाले खर्च के मामले में भी स्टेट काफी पीछे है। गवर्नमेंट डाटा के अनुसार स्टेट में पर कैपीटा हेल्थ एक्सपेंडीचर नेशनल एवरेज की तुलना में काफी कम है। 2009 में कंट्री का पर कैपीटा एक्सपेंडिचर 503 रुपए था जबकि स्टेट में इस दौरान सरकार द्वारा हर व्यक्ति पर महज 328 रुपए खर्च किए गए। हेल्थ सर्विसेज के प्रति ये उदासीनता का असर हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को बुरी तरह प्रभावित कर
रहा है।Report by: abhijit.pandey@inext.co.in