Help के लिए कोई आगे नहीं आता
नहीं आते मदद को आगे
आदित्यपुर में मौजूद साई नर्सिंग होम में संडे को दो एक्सीडेंट विक्टिम लाए गए, नर्सिंग होम के डॉक्टर अशोक कुमार ने कहा की इन पेशेंट्स को एक्सीडेंट के एक घंटे के अंदर मेडिकल सहायता मिल गई जिससे उनकी जान बचाई जा सकी, उन्होंने कहा कि अगर इन्हें लाने में ज्यादा देर होती तो फिर काफी मुश्किल हो सकती थी। ये कुछ खुशनसीब हैं, जिन्हें एक्सीडेंट के बाद सही समय पर मेडिकल हेल्प मिल जाने की वजह से बचाया जा सका, पर सभी मामलों में ऐसा नहीं होता। कई मामलों में सडक़ पर कोई व्यक्ति घायल पड़ा मदद की राह देखता रहता है, पर आसपास मौजूद लोग तमाशबीन बनकर सिर्फ खड़े रहते हैं, कोई भी उन्हें हॉस्पिटल पहुंचाने की, एंबुलेंस या पुलिस को फोन करने की जहमत नहीं उठाता।
इन्हें नहीं पड़ता कोई फर्क
एक्सीडेंट के बाद सडक़ पर पड़ा कोई व्यक्ति भले ही कराहता रहे, पर इन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता। सेव लाइफ फाउंडेशन द्वारा किए गए सर्वे में दिल्ली में एक्सीडेंट की सूरत में 96 परसेंट लोगों द्वारा मदद ना करने की बात सामने आयी, वहीं मुंबई में 90 परसेंट, कोलकाता में 59 परसेंट और हैदराबाद में 68 परसेंट लोगों ने मदद नहीं करने की बात कही। बात सिटी की करें, तो यहां भी ऐसे मामले अक्सर आते रहते हैं। 2011 और 2012 के दौरान सिटी में 889 रोड एक्सीडेंट्स में 380 लोगों को जान गंवानी पड़ी। इनमें से ऐसे कई मामले ऐसे है जिनमे सही समय पर मेडिकल हेल्प पहुंचाकर पेशेंट की जान बचाई जा सकती थी। एमजीएम हॉस्पिटल के इमरजेंसी में अक्सर ऐसे पेशेंट्स को अटेंड करने वाले डॉ बलराम झा बताते हैं कि यहां ऐसे कई मामले आते हैं, जिनमें हॉस्पिटल पहुंचने तक पेशेंट की डेथ हो जाती है या फिर उन्हें इतनी देर से हॉस्पिटल लाया जाता है कि उनका ट्रीटमेंट काफी मुश्किल हो जाता है।
एक्सीडेंट विक्टिम की हेल्प के लिए आगे ना आने का एक बड़ा रीजन पुलिस के पचड़े में फंसने का डर और हॉस्पिटल्स के लंबे-चौड़े नियम हैं। लोगों का कहना है की ऐसे मामलों में पुलिस को इंफार्म करने पर पूछताछ की लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है वहीं हॉस्पिटल्स में भी कई तरह की कागजी कार्रवाई करनी पड़ती है। ऐसे में लोग इससे दूरी बनाना ही बेहतर समझते हैं। सर्वे में भी यह बात सामने आयी है।
'देरी की वजह से कई पेशेंट्स की हॉस्पिटल पहुंचते-पहुंचते डेथ हो जाती है। कई पेशेंट्स की हॉस्पिटल पहुंचने में इतनी देर हो जाती है कि उनका ट्रीटमेंट करना मुश्किल हो जाता है.'
-डॉ बलराम झा, एमजीएम हॉस्पिटल