छ्वन्रूस्॥श्वष्ठक्कक्त्र : मंगल मिशन की सफलता पर खुशी में तालियां बजाने वालों में महिला वैज्ञानिक आगे थीं। इससे इतना तो जरुर समझा जा सकता है कि महिलाएं किसी भी फील्ड में पुरुषों से पीछे नहीं हैं, चाहे वह विज्ञान का ही क्षेत्र क्यों न हो। देश के तीनों ही साइंस एकेडमी को महिला सशक्तीकरण के लिए मिलकर काम करना चाहिए। उक्त विचार राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष व भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष डॉ के कस्तूरीरंगन ने 'विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में महिला सशक्तीकरण' विषयक सेमिनार में बतौर मुख्य अतिथि कहीं। सीएसआइआर-राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला के स्थापना दिवस के सिलसिले में गुरुवार को आयोजित सेमिनार में उन्होंने कहा कि महिला सशक्तीकरण में नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस के झारखंड चैप्टर की भूमिका और भी बढ़ जाती है, क्योंकि यहां निचले स्तर पर इस दिशा में काफी कुछ किया जा सकता है।

शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका

उन्होंने कहा कि कहीं-कहीं महिलाएं सशक्त होकर सामने आई हैं, तो कई जगह अधिकार संपन्न होने के बावजूद अभी भी वे पर्दे के पीछे हैं। समय के साथ यह असमानता भी दूर होती चली जाएगी। उन्होंने कहा कि प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में महिलाएं अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। हेल्थ एंड न्यूट्रीशन भी ऐसा महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसमें महिलाओं के लिए नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस काफी कुछ कर सकता है। सेमिनार में एनएमएल के निदेशक एस श्रीकांत ने झारखंड में महिलाओं की आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक हालात के आंकड़े पेश करते हुए उनकी स्थिति में सुधार की संभावना पर अपनी बात कही। वहीं डॉ अरविंद सिंह ने विज्ञान की पहुंच हर स्तर पर होने और विज्ञान-प्रयोगशाला को घर-घर तक पहुंचाने की जरूरत बताई। धन्यवाद ज्ञापन एस घोष चौधरी ने किया। इस अवसर पर एनएमएल के वैज्ञानिक, प्रशिक्षु और छात्र-छात्राओं के अलावा अन्य लोग उपस्थित रहे।

Posted By: Inextlive