Hackers use your android smart phones very smartly
मुफ्त में मिलता है virus
सन्नी बाघेला ने बताया कि एंड्रॉयड फोन यूजर्स आमतौर पर अप्लीकेशन प्ले स्टोर से डाउनलोड करते हैं। ऐसा करते समय उनकी कोशिश रहती है कि फ्री में मिलनेवाला एप डाउनलोड करें। पर, फ्री में एप डाउनलोड करना ज्यादा महंगा पड़ता है, क्योंकि जैसे ही कोई बंदा फ्री एप डाउनलोड करता है, एप में एक्टिव वायरस उसके मोबाइल फोन में आ जाता है और उसके बाद उसका कॉल रिकॉर्ड, एसएमएस रिकॉर्ड, ह्वïाट्स एप, फोटो, फेसबुक डिटेल, बैंक अकाउंट नंबर (अगर वह मोबाइल में सेव हो, तो) मालवेयर की वजह से हैकर के पास जाना शुरू हो जाते हैं और फिर यूजर का मोबाइल हैकर की गिरफ्त में होता है। वह चाहे तो आपको बिना बताए प्रॉक्सी आईपी से आपके नंबर से कॉल कर सकता है और एसएमएस भी। आपका एंड्रॉयड फोन हैक करके हैकर आपकी फोटो भी खींच सकता है और माइक्रोफोन स्टार्ट कर आपकी बातचीत भी सुन सकता है। इसलिए, एंड्रॉयड फोन यूजर्स को कभी भी फ्री का एप डाउनलोड नहीं करना चाहिए।
Update करते ही आता है virusएंड्रॉयड फोन में फ्री में एप डाउनलोड करने के अलावा अगर प्लेस्टोर से उसे खरीदा भी जाता है, तब भी खतरा है। जब आप उसे प्ले स्टोर से खरीदते हैं, तब तक तो सब ठीक रहता है, लेकिन जैसे ही उसे अपडेट करना शुरू करते हैं, एप डेवलपर्स के एप में छिपा वायरस आपके मोबाइल को हैक करना शुरू कर देता है। एप्पल का आईओएस प्लेटफॉर्म भी उससे बचा हुआ नहीं है। एप्पल-4एस के बाद के वर्जन में वायरस का खतरा नहीं होता है।
फंस गया रिक्शेवालासन्नी ने बताया कि अहमदाबाद में साइबर क्राइम का एक अनूठा केस सामने आया। उसमें एक रिक्शेवाले को रिक्शे में रखा एक मोबाइल मिला। रिक्शेवाले ने उसके मालिक तक पहुंचाना चाहता था। जब उसने उसे खोला, तो उसमें कोई सिम नहीं था। फोन का कोई मालिक न मिलता देखकर रिक्शेवाले ने अपना सिम डालकर उसे यूज करना शुरू किया। कुछ दिनों के बाद पुलिस उसके पास आई और उसे ऑनलाइन अकाउंट से पैसे चुराने के आरोप में पकड़कर थाने ले गई। जबकि, रिक्शेवाला जानता ही नहीं था कि कैसे ऑनलाइन अकाउंट से पैसे की चोरी की जाती है। इस केस में हुआ यह कि जैसे ही रिक्शेवाले ने अपना सिम कार्ड डालकर मोबाइल ऑन किया, जिस हैकर का यह मोबाइल फोन था, उसे एंटी थेप्ट मैसेज और उस मोबाइल का नंबर चला गया। बाद में उस मोबाइल में इंटरनेट पैक रिचार्ज करवाकर मोबाइल फोन हैकर ने कुछ लोगों का ऑनलाइन अकाउंट हैक कर पैसे निकाल लिए और फंस गया रिक्शेवाला। रिक्शेवाला अभी जेल में है।
Cyber criminals के निशाने पर banking Appsएंटी वायरस बनानेवाली कंपनी कैप्सकी लैब का कहना है कि एंड्रॉयड फोन पर काम करनेवाले बैंकिंग एप साइबर क्रिमिनल्स के निशाने पर हैं। 99 परसेंट मोबाइल अटैक्स एंड्रॉयड फोन पर होते हैं, क्योंकि एप्पल के फोन स्ट्रिक्ट कंट्रोल होते हैं और वह थर्ड पार्टी अप्लीकेशन को परमिट नहीं करता है। ऐसा इसलिए भी हो रहा है, क्योंकि सेलुलर यूजर प्रॉपरली प्रोटेक्टेड नहीं हैं।Data का होता है business सन्नी ने बताया कि एप डेवलपर्स एप डेवलप करते समय ही उसमें वायरस डाल देते हैं, जिससे वे लोगों का डेटा चोरी कर सके। इस चोरी के डेटा का ऑनलाइन बिजनेस होता है। एक बार जैसे ही आपका एंड्रॉयड फोन हैक होता है, उसके बाद हैकर्स आपके फेसबुक अकाउंट पर भी कंट्रोल हासिल कर सकता है।Most exposed OS है Androidओपेन सोर्स का गूगल का ऑपरेटिंग सिस्टम अपनीओपेननेस की वजह से जितना पॉपुलर हुआ, उतना ही डेंजरस भी। 2013 में एक बिलियन लोगों तक पहुंच चुके स्मार्टफोन पर साइबर क्रिमिनल्स की सबसे ज्यादा निगाहें हैं। साइबर एनालिस्ट मानते हैं कि सिक्यूरिटी थ्रेट्स के प्वॉइंट ऑफ व्यू से एंड्रॉयड मोस्ट एक्सपोज्ड ऑपरेटिंग सिस्टम (ओएस) है। साइबर क्रिमिनल्स इसमें वायरस डालकर न सिर्फ मोबाइल का डेटा चुरा रहे हैं, बल्कि वे ऑनलाइन बैंकिंग एक्टिवेट करके लोगों की गाढ़ी कमाई का पैसा भी चुरा रहे हैं। साइबर एक्सपर्ट सीजर गिलाटी कहते हैं कि गूगल के एंड्रॉयड फोन में कोई भी नया एप क्रिएट और इंस्टॉल कर सकता है। एंड्रॉयड का सिक्योरिटी मॉडल कहता है कि यह यूजर की जिम्मेदारी है कि वह जज करे कि जो एप वह डाउनलोड कर रहा है, वह सिक्योर्ड है या नहीं। चार ऑपरेटिंग सिस्टम पर किए गए सर्वे में पता चला है कि एप्पल के आईओएस, रिम के लैकबेरी, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल के एंड्रॉयड में लैकबेरी मोस्ट सिक्योर्ड है और एंड्रॉयड सबसे कम सिक्योर्ड है। हालांकि, कोई भी प्लेटफॉर्म पूरी तरह प्रॉलम फ्री नहीं है।
2010 में 11,138 detectionsटेक्नोलॉजी कंपनी जुपिटर नेटवर्क के इन्वेस्टिगेशन में पाया गया कि साल 2010 में 11,138 वायरस के सैंपल स्मार्टफोन में डिटेक्ट किए गए। 2011 में उनकी संख्या 155 परसेंट बढ़कर 28,472 हो गई। इनमें से 46.7 परसेंट वायरस एंड्रॉयड फोन में डिटेक्ट किए गए। साइबर क्रिमिनल्स की कोशिश होती है कि वे एप में ऐसा वायरस डालें, जिसे कंज्यूमर्स आसानी से डाउनलोड कर सकें। जैसे ही यूजर्स इसे डाउनलोड करते हैं, साइबर क्रिमिनल्स उनका डेटा चुराना शुरू कर देते हैं। साइबर सिक्योरिटी फर्म मैक्फी का कहना है कि 2014 मोबाइल मालवेयर, वायरस का एज है। एंड्रॉयड की सेंसिटिविटी को देखते हुए हैकर्स अपनी निगाहें स्मार्टफोन पर फोकस किए हुए हैं.
ऐसे रहें protectedएप्स डाउनलोड करते समय प्रोटेक्टेड रहने का सबसे अच्छा उपाय है कि गूगल एप से केवल वैलिड और एंटी वायरस एप डाउनलोड करें। पिलक वाईफाई का यूज केवल वेब ब्राउजिंग के लिए करें और अगर पॉसिबल हो, तो हैंडसेट की एनएफसी कैपेबिलिटीज को डिएक्टिवेट कर दें। हैंडसेट के अलावा फेसबुक भी सोशल क्रिमिनल्स के निशाने पर है, क्योंकि इसमें मौजूद पर्सनल इनफॉर्मेशन का खजाना साइबर क्रिमिनल्स को अट्रैक्ट कर रहा है।