छत पर लगे पानी टंकी की नहीं होती सफाई. ऑपरेशन से लेकर खाना बनाने तक में भी इसी पानी का इस्तेमाल. मरीज और उनके परिजन भी पीते हैं गंदा पानी. शुद्ध पानी के लिए चुकानी पड़ती है कीमत.


रांची(ब्यूरो)। स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता भले यह दावा करते हैं कि वे राज्य में लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सेवा देने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। लेकिन सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है। हकीकत तो यह है कि राज्य के सबसे बड़े हॉस्पिटल रिम्स में मरीजों को स्वच्छ पानी भी मयस्सर नहीं है। दवा और इलाज की तो बात ही अलग है। राज्य के सबसे बड़े हॉस्पिटल में लापरवाही का घोर आलम है। यहां सालभर लोगों को पानी के लिए परेशानी झेलनी पड़ती है। सरकारी अस्पताल होते हुए भी यहां लोगों को पानी खरीद कर ही पीना पड़ता है। वहीं रिम्स में जगह-जगह प्याऊ है, लेकिन उसमें से आधे से अधिक खराब और बंद पड़े हुए हैं। जबकि जो ठीक हैं वहां से गंदा पानी आता है। गंदा पानी आने की बड़ी वजह है हॉस्पिटल की छत पर लगी पानी टंकी का साफ न होना। जी हां, रिम्स में पानी की सप्लाई के लिए छत पर टंकी लगी हुई है। लेकिन वर्षों से इसकी सफाई नहीं कराई गई, जिस कारण पानी भी गंदा और दूषित आता है। बीमारी बांट रहा रिम्स
रिम्स में मरीज अपना इलाज कराने की उम्मीद लेकर आते हैं। लेकिन यहां इलाज नहीं बल्कि बीमारी बांटा जा रहा है। छत पर लगी पानी टंकी का ढक्कन खुला रहता है। जिससे कचरा और गंदगी टंकी में गिरते हैं। पक्षी भी इसमें गंदगी करते हैं। यहीं का पानी मरीज इस्तेमाल करते हैं। ऑपरेशन में भी इसी पानी का इस्तेमाल होता है। इसके अलावा कैंटीन में खाना बनाने के लिए भी इसी पानी का इस्तेमाल किया जाता है। दूषित पेयजल से मरीजों में संक्रमण का खतरा बना रहता है। गंदा पानी पीने से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। मरीज और उनके परिजन भी यहां का पानी पीकर बीमार हो सकते हैं। पानी साफ करने के लिए भी किसी तरह का कोई केमिकल आदि नहीं डाला जाता। लगा है फिल्टर, पर बिक रहा पानी


गंदे पानी को शुद्ध करने के लिए रिम्स में फिल्टर लगा हुआ है। लेकिन यहां से पानी लेने के लिए मरीज और उनके परिजनों को कीमत चुकानी पड़ती है। यह ऐसा सरकारी अस्पताल है जहां इलाज पांच रुपए और कुछ मेडिसीन भी मुफ्त में मिल जाती हैं। लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी चीज जो हर जगह फ्री होती है, उसके लिए पैसे देने पड़ते हैं। वहीं वार्ड में लगे फिल्टर सिर्फ नाम के लिए हैं। इनसे पीला पानी निकलता है। जाहिर है कि यह पानी दूषित होता है और पीने लायक नहीं होता। दूषित पानी पीने से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। लोग मजबूरी में या तो घर से पानी मंगवाते हैं या फिर बाजार से खरीद कर पानी का इस्तेमाल करते हैं। रिम्स के बाहर भी पानी का कारोबार

रिम्स में पानी का कारोबार बेखौफ फल फूल रहा है। इसका कारण है रिम्स प्रबंधन की लापरवाही। रिम्स के अंदर और बाहर भी पानी की खरीद-ब्रिकी होती है। रिम्स अपने मरीजों को शुद्ध पानी नहीं पिला पाता इसलिए लोग बाहर से बोतल बंद पानी खरीदते हैं। चार रुपए का पानी दस से बीस रुपए की दर में रिम्स के बाहर बिकता है। मरीजों का कहना है जितना खर्च दवाई और टेस्ट में नहीं होता है, उससे ज्यादा तो पीने के पानी में हो जाता है। एक अनुमान के अनुसार, रिम्स में ओपीडी और वार्ड मिलाकर हर दिन करीब तीन हजार मरीज और उनके परिजन मौजूद होते हैं। ऐसे में हर दिन करीब 1500 लोग रिम्स के बाहर से पानी खरीद कर पीते हैं। इससे यह स्पष्ट है कि रिम्स के बाहर सिर्फ पानी में लाखों रुपए का व्यापार हो रहा है। बता दें कि रिम्स में इलाज के लिए आने वाले लोग ज्यादातर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के होते हैं। लेकिन इसके बावजूद परिजनों को अपने मरीज और खुद के लिए हर दिन दो से तीन सौ रुपए सिर्फ पानी में खर्च करने पड़ते हैं।

Posted By: Inextlive