RANCHI: हर आम आदमी का सपना होता है कि छोटा ही सही पर अपना घर हो। लेकिन घर या प्रॉपर्टी खरीदते समय थोड़ी सी चूक आपको कई परेशानियों में डाल सकती है। अगर आप किसी डेवलपर से फ्लैट खरीदने जा रहे हैं, तो खरीदने से पहले आपके पास कई अधिकार हैं, जिसे आपको जानना जरूरी है। सरकार ने कानूनी रूप से आपको अधिकार दिए हैं कि फ्लैट लेने से पहले यह जान लें कि आपको क्या-क्या जानकारी होनी चाहिए।

जमीन का पेपर चेक करें

अगर आप घर खरीद रहे हैं, तो बिल्डर और डेवलपर से सबसे पहले रजिस्ट्री मांगनी चाहिए, ऐसा कर आप यह जान पाएंगे कि जिस जमीन पर आपका मकान या फ्लैट बना है, उस पर कोई कानूनी विवाद तो नहीं चल रहा है। बैंक सिर्फ उन्हीं जमीनों पर लोन देता है, जिसपर किसी भी तरह का कोई विवाद नहीं है।

प्रोजेक्ट का अप्रूव्ड लेआउट मैप देखें

किसी बिल्डर को किसी भी प्रोजेक्ट में कितने टावर, फ्लैट और मंजिल बनाने की मंजूरी मिली है। यह बात अथॉरिटी की ओर से अप्रूव्ड लेआउट मैप देखकर साफ पता चल जाती है। इसमें किसी फ्लैट या प्रोजेक्ट में इस्तेमाल होने वाली कुल जगह का स्पष्ट ब्यौरा होता है, ये सारी बातें कंपनी के ब्रोशर में साफ नहीं हो पाती हैं।

लोकेशन पर पहले जाएं

ब्रोशर में दिए गए फ्लैट के एरिया पर भरोसा नहीं करना चाहिए, जिस जगह प्रोजेक्ट बन रहा है, वहां खुद जाकर विजिट करना जरूरी होता है। ऐसा करने से आप अपने फ्लैट में इस्तेमाल होने वाले रॉ मैटेरियल को देख पाएंगे। साथ ही आपको आसपास की लोकेशन के बारे में भी जानकारी मिलेगी। जैसे घर से अस्पताल, स्कूल, बाजार, रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड जैसी जगहों की दूरी कितनी है इत्यादि। केवल ब्रोशर के भरोसे रहने से आप गलत-फहमी के शिकार हो सकते हैं।

बिल्ट अप एरिया, सुपर एरिया व कार्पेट एरिया समझें

खरीदार कई बार फ्लैट में लिखे सुपर एरिया को अपने फ्लैट का साइज मानकर बुकिंग कर देते हैं। जबकि असल फ्लैट इससे काफ कम में होता है। ऐसे में ग्राहकों को बिल्ट-अप, सुपर और कार्पेट एरिया के सही मायने समझ लेने चाहिए।

कार्पेट एरिया: जहां आप कार्पेट बिछा सकें, इस एरिया में फ्लैट की दीवारें शामिल नहीं होती हैं, यह फ्लैट के अंदर का खाली स्थान होता है।

बिल्ट-अप एरिया: फ्लैट की दीवारों को लेकर मापा जाता है, यानि इसमें कार्पेट एरिया के साथ-साथ पिलर, दीवारें और बालकनी जैसी जगह शामिल होती हैं।

सुपर एरिया: इसमें उस प्रोजेक्ट के अंदर कॉमन यूज की चीजें शामिल होती हैं। जैसे-जेनरेटर रूम, पार्क, जिम, स्विमिंग पूल, लॉबी, टेनिस कोर्ट। आमतौर पर सभी बिल्डर्स फ्लैट को सुपर एरिया के आधार पर बेचते हैं।

पजेशन टाइम का रखें ख्याल

अधिकतर बिल्डर्स और डेवलपर प्रोजेक्ट के पजेशन टाइम में म् महीने का ग्रेस पीरियड भी जोड़ देते हैं। ऐसे में किसी भी ग्राहक का पजेशन टाइम दो साल की जगह फ्0 महीने हो जाता है। पोजिशन डेट से म् महीने देरी से पजेशन देने के बाद डेवलपर्स इसको लेट प्रोजेक्ट की श्रेणी में नहीं डालते हैं। ऐसे में ग्राहक बिल्डर या डेवलपर्स से लेट पजेशन की पेनाल्टी भी चार्ज नहीं कर पाते हैं।

पेनाल्टी को जानना जरूरी

तय समय तक प्रोजेक्ट पर पजेशन न दे पाने पर डेवलपर्स ग्राहकों को पेनाल्टी देने का प्रावधान रखते हैं। अधिकतर डेवलपर्स पजेशन तक ग्राहकों की ओर से भुगतान की जाने वाली किसी एक भी किस्त में देरी होने पर पेनाल्टी न देने की शर्त रखते हैं। पूरे ख् साल के दौरान ग्राहकों के पास कई बार डिमांड ऑर्डर आते हैं। अगर ग्राहक किसी एक भी पेमेंट डेट से चूक जाता है, तो डेवलपर्स पेनाल्टी देने में तरह-तरह के बहाने बनाते हैं।

हिडेन चार्जेज पर दे विशेष ध्यान

बुकिंग करते समय कई तरह के चार्जेज का जिक्र बुकिंग एजेंट नहीं करता है। इन हिडेन चार्जेज में पार्किंग, सोसाइटी, पावर बैक-अप जैसे चार्जेज शामिल किए जाते हैं। इसके बारे में बुकिंग के समय ही डेवलपर से सवाल कर समझ लें।

नो योर राइट

-डेवलपर रजिस्ट्रेशन सर्टिफि केट हासिल किए बिना प्रोजेक्ट की बुकिंग शुरू नहीं करेगा। न एडवर्टिजमेंट, प्रोस्पेक्ट्स आदि जारी करेगा।

-बिक्री के लिए लिखित समझौता किए बिना डेवलपर किसी उपभोक्ता से कोई अग्रिम भुगतान भी नहीं ले सकता है।

-डेवलपर को अपने प्रोजेक्ट का सारा ब्योरा प्लान, ले आउट आदि अथॉरिटी की वेबसाइट पर देना होगा। इसे बाद में बदला नहीं जा सकेगा।

-समय पर फ्लैट हैंडओवर नहीं करने पर डेवलपर को ब्याज सहित सारा पैसा लौटाना होगा या उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

-इस बिल के मुताबिक, डेवलपर को कारपेट एरिया की सही-सही जानकारी देनी होगी, जिसमें कॉमन एरिया शामिल नहीं होगा।

Posted By: Inextlive