जल्द ही इंदौर मॉडल की तर्ज पर रांची के झिरी डंपिंग यार्ड का मेकओवर किया जाएगा.


रांची (ब्यूरो): रांची नगर निगम से मिली जानकारी के मुताबिक कचरे से निकले मलबे को दूसरे उपयोग में लाया जाएगा। इस कचरे को निष्पादित करने के लिए नगर निगम बायो रेमिडिएशन सिस्टम अपनाएगा। एक अनुमान के मुताबिक यहां पर करीब 82 हजार मीट्रिक टन कचरा जमा है। इस कचरे के पहाड़ को मैदान के रूप में डेवलप किया जाएगा। दिया जाएगा अलग रूप


झिरी डंपिंग यार्ड करीब 42 एकड़ जमीन पर फैला है। 17 करोड़ की लागत से बायो रेमिडिएशन सिस्टम द्वारा झिरी को अलग रूप दिया जाएगा। वहीं 34 करोड़ की लागत से मेटेरियल रिकवरी सेंटर निर्माण करने की भी योजना है। बोर्ड बैठक में इससे संबंधित प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी गई है। जल्द ही टेंडर जारी कर एजेंसी चयन करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। मेटेरियल रिकवरी सेंटर कचरे को पृथक कर उसे रिसाइक्लिंग करने की भी योजना है। प्लास्टिक, कपड़ा, पॉलीथिन, लोहा, जूते चप्पल आदि को अलग-अलग कर इसे फिर से उपयोग लायक बनाया जाएगा। बायो माइनिंग के तहत वैज्ञानिक ढंग से कचरे का निस्तारण कर जो धातुएं निकलेंगी उन्हें गलाकर उनसे धातु बनाई जाएगी। इसके अलावा प्लास्टिक को गलाकर नया प्लास्टिक और अन्य कचरे से खाद बनाया जाएगा। लगेगा बायोगैस प्लांट

झिरी में कचरे के निस्तारण के लिए गेल को बायोगैस प्लांट लगाने की जिम्मेदारी दी गई है। प्लांट में जो नया कचरा झिरी पहुंचेगा, उससे बायोगैस बनाई जाएगी। बायोगैस उत्पादन के लिए झिरी में दो प्लांट लगाए जाएंगे। इसके लिए आठ एकड़ जमीन गेल इंडिया लिमिटेड को उपलब्ध करा दी गई है। रांची में रोज 300 टन ऑर्गेनिक कचरे का प्रोसेसिंग कर करीब 10 टन कंप्रेस्ड बायोगैस उत्पादन करने का लक्ष्य रखा गया है। फिलहाल एप्रोच रोड, गार्डवॉल और रोड साइड नाली का निर्माण किया जा रहा है। बढ़ रही पहाड़ की ऊंचाई बीते 10 वर्षों से झिरी डंपिंग यार्ड के कचरे के निष्पादन को लेकर चर्चा हो रही है, लेकिन समय बीतता जा रहा है और कचरे के पहाड़ की ऊंचाई बढ़ती जा रही है। पिछले सात सालों से यहां प्लांट लगाने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन अब तक यह पूरा नहीं हो सका है। इससे पहले भी झिरी में अलग-अलग प्रोजेक्ट आते रहे हैं। शहर सुंदर और स्व'छ बनेगा

साल 2011 में झिरी में कचरे से बिजली पैदा करने की योजना बनाई गई थी। इसके बाद 2015 में झिरी में प्लांट लगाने के लिए नगर निगम ने एग्रीमेंट किया। कचरे से रोड और ईंट निर्माण पर भी योजना बन चुकी है। फिलहाल आग्र्रेनिक कचरे से कंप्रेस्ड बायोगैस बनाने पर काम चल रहा है। इसके लिए बीते साल गेल इंडिया कंपनी के साथ एमओयू हुआ है। झिरी में बन गए कचरे के पहाड़ को मैदान का रूप देने के बाद आस-पास में रह रहे लोगों को थोड़ी राहत जरूर मिलेगी। यहां रहने वाले लोगों की हमेशा शिकायत रहती है कि कचरे की वजह से ब'चे, बड़े-बुजुर्ग सभी बीमार पड़ते रहते हैं। परियोजना पर काम होने के बाद कचरे के पहाड़ से राहत तो मिलेगी ही, साथ ही शहर भी सुंदर और स्व'छ बनेगा। बन गया है कचरे का पहाड़ राजधानी रांची से रोज करीब छह सौ टन निकलने वाले कचरे को डंप करने के लिए झिरी में डंपिंग यार्ड बनाया गया है। बीते 22 सालों से यहां कचरा डंप हो रहा है। आज यहां कचरे का पहाड़ बन गया है। बीते 22 सालों में इस कचरे को निष्पादित या रीसाइक्लिंग करने का कोई तरीका इजाद नहीं किया गया है। बीते सालों में इसे लेकर कई योजनाएं बनीं, लेकिन स्थिति आज भी जस की तस है। झिरी में बने कचरे के पहाड़ को बायो माइनिंग कर खत्म किया जाएगा। इस पहाड़ को समतल करने के साथ-साथ मेटेरियल रिकवरी सेंटर भी बनाया जाएगा। शशि रंजन
नगर आयुक्त, आरएमसी

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