RANCHI :द्रौपदी मुर्मू। झारखंड की नवनियुक्त राज्यपाल। उड़ीसा के एक सुदूर गांव में खपरैल घर से निकलकर राजभवन तक पहुंचीं इस आदिवासी महिला का संघर्षो ने जिंदगी के हर मोड़ पर इतिहान लिया है। उन्होंने हाउसवाइफ की जिमेदारी से लेकर क्लर्क तक की नौकरी की। लोकल नोटिफाइड एरिया की वाइस चेयरमैन से लेकर मिनिस्टर तक की भूमिका निभाई। पति से लेकर दो पुत्रों के निधन का भी सदमा झेला। तमाम संघर्षो के बावजूद उन्होंने हौसले की पतवार थामे रखी। झारखंड के राज्यपाल के तौर पर उनके अप्वाइंटमेंट का नोटिफिकेशन जारी हुआ तो जैसे एक हसीन सपने ने हकीकत के दरवाजे पर दस्तक दी।

ओडि़शा के मयूरभंज जिले के कुसमी लॉक के बेड़ा गांव में किसान परिवार की बेटी द्रौपदी मुर्मू का बचपन गरीबी में गुजरा है। उन्होंने बताया- पिता विरंची नारायाण टुडू किसान थे और मां सिनगो टुडू हाउस वाइफ। भले ही हमारे घर में आर्थिक तंगी थी, लेकिन उसमें भी हम काफी खुश रहते थे। दूसरे से किसी तरह की मदद की उमीद भी नहीं करते थे। आज भी हमारे घर-परिवार व गांव का सांस्कृतिक जीवन स्तर काफी मजबूत है।

भुवनेश्वर से ग्रेजुएशन की डिग्री

द्रौपदी मुर्मू ने बताया- दो भाइयों के बीच इकलौती होने की वजह से घरवालों की दुलारी थी। मुझे पढ़ने में खूब मन लगता था, पर दोनों भी पढ़ाई से थोड़ा दूर भागते थे। गांव के स्कूल से सातवीं तक की पढ़ाई की। हमारे रिश्तेदार कार्तिक गंझू ओडि़शा सरकार में मंत्री थे। मुझे वे अपने साथ भुवनेश्वर ले गए। वहां आश्रम में रहकर मैट्रिक व ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई पूरी की।

सचिवालय में 4 साल नौकरी

द्रौपदी मुर्मू ने बताया- ग्रेजुएशन करने के बाद सचिवालय सेवा के लिए चयन हो गया। 1979 से 1983 तक नौकरी की। 1980 में श्याम चरण मुर्मू के साथ साथ शादी के बंधन में बंध गई। हमारे दो बेटे और एक बेटी हुई। लेकिन दोनों बेटों की असामयिक मौत हो गई। इसके बाद सचिवालय की नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के बाद 15 सालों तक हाउस वाइफ की जिंदगी गुजारी।

अब तो बेटी ही सबकुछ है

झारखंड की नवनियुक्त गवर्नर ने बताया- पति की मौत हो चुकी है। दो बेटों की भी असामयिक मौत हो गई। अब तो बेटी इति श्री मुर्मू ही मेरे लिए सबकुछ है। उसने कटक से एमबीए की पढ़ाई की। फिलहाल वह यूको बैंक में जॉब कर रही हैं। उसकी शादी भी हो चुकी है और वह रायरंगपुर में ही रहती है।

1996 में पॉलिटिकल एंट्री

सचिवालय की नौकरी छोड़ने के बाद 15 सालों तक घर-परिवार की जिमेवारी निभाते के दौैरान सामाजिक दायित्व निभाने की इच्छा जगी। द्रौपदी मुर्मू ने बताया- 1996 में पहली बार रायरंगपुर नोटिफाइड एरिया काउंसिल के चुनाव में किस्मत आजमाया। जीतने के बाद उपाध्यक्ष बनने का मौका मिला। यहां से मेरी राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई। 2000 में रायरंगपुर सीट से विधानसभा के लिए चुनी गई। 2005 में इसी सीट से जनता ने दुबारा विधायक बनाया। इसके बाद परिवहन मंत्री की जिमेवारी निभाई। हालांकि, 2009 और 2009 में लोकसभा चुनाव में उन्हें पराजित होना पड़ा।

आदिवासी समुदाय से बिलांग करती हूं। ऐसे में उनकी समस्याओं से भली-भांति वाकिफ हूं। द्रौपदी मुर्मू ने बताया- मुझे एक ऐसे राज्य में राज्यपाल की जिमेवारी निभाने का मौका मिलने जा रहा है, जहां की एक बड़ी आबादी आदिवासियों की है। इस समुदाय को मुय धारा से जोड़ना मेरी प्राथमिकता होगी।

राजभवन का खुला रहेगा दरवाजा

गरीबी क्या होती है, यह बचपन में देखा है। गरीबों के दर्द को समझती हूं। ऐसे में उनके लिए दिल में शुरू से ही काफी समान है। द्रौपदी देवी ने बताया- गवर्नर का पद संभालने के बाद पहली प्राथमिकता कमजोर तबके को हाशिए से ऊपर उठाना है। यहां के लोगों को बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा मिले, इसके लिए प्रयास करूंगी। गरीबों के लिए राजभवन का दरबार हमेशा खुला रहेगा। वे अपनी बात बेहिचक आकर मेरे पास रख सकते हैं। उनकी समस्याओं को यथासंभव दूर किया जाएगा।

झारखंड से पुराना नाता

झारखंड-ओडि़शा पड़ोसी राज्य हैं। ऐसे में यहां से पुराना नाता है। यह कहना है द्रौपदी मुर्मू का। राजनीतिक,सामाजिक और पारिवारिक वजहों से यहां आना-जाना लगा रहा है। हमारे बीच मौके-दर मौके बातचीत होती रहती है। जहां तक रांची की बात है, राजनीतिक जीवन के सिलसिले में तीन बार यहां का दौरा कर चुकी हूं। पिछले साल भी रांची आने का मौका मिला था।

Posted By: Inextlive