सृष्टि के आत्मा सूर्य की राश्यान्तर स्थितियों के आधार पर दक्षिणायन और उत्तरायण का विधान है। भगवान् नारायण के शयन और प्रबोधन से चातुर्मास्य का प्रारम्भ और समापन होता है।


उत्तरायण को देवकाल और दक्षिणायन को आसुरीकाल माना गया है। दक्षिणायन में देवकाल न होने से सतगुणों के क्षरण से बचने और बचाने के के लिए उपासना- तथा व्रत विधान हमारे शास्त्रों में वर्णित हैं। कर्कराशि पर सूर्य के आगमन के साथ ही दक्षिणायन काल का प्रारम्भ हो जाता है और कार्तिक मास इसी दक्षिणायन और चातुर्मास्य की अवधि में ही उपस्थित होता है। पुराणादि शास्त्रों में कार्तिक मास का विशेष महत्व निर्देशित है। हर मास का यूं तो अलग-अलग महत्व है, नगर व्रत एवं तप की दृष्टि से कार्तिक की बहुत महिमा बतायी गयी है-मासानां कार्तिक: श्रेष्ठो देवानां मधुसूदन:।तीर्थं नारायणाख्यं हि त्रितयं दुर्लभं कलौ।।


भाव यह है कि भगवान् विष्णु एवं विष्णु तीर्थ के सदृश ही कार्तिक मास को श्रेष्ठ और दुर्लभ कहा गया है। कार्तिक मास कल्याणकारी मास माना जाता है। कार्तिक मास का माहात्म्य पद्मपुराण तथा स्कन्दपुराण में बहुत विस्तार से उपलब्ध है। कार्तिक मास में स्त्रियां ब्राह्ममुहूर्त में स्नान कर राधा-दामोदर की पूजा करती हैं।

कलियुग में कार्तिक मास-व्रत को मोक्ष के साधन के रूप में दर्शाया गया है। पुराणों के मतानुसार इस मास को चारों पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला माना गया है। स्वयं नारायण ने ब्रह्मा को, ब्रह्मा ने नारद को और नारद ने महाराज पृथु को कार्तिक मास के सर्वगुणसम्पन्न माहात्म्य के सन्दर्भ में बताया है। स्कन्दपुराण वैष्णव खण्ड में कार्तिक व्रत के महत्व के विषय में कहा गया है- रोगापहं पातकनाशकृत्परं सद्बुद्धिदं पुत्रनादिसाधकम्।मुक्तेर्निदानं नहि कार्तिकव्रताद् विष्णुप्रियादन्यदिहास्ति भूतले।।इस मास को जहां रोगापह अर्थात् रोगविनाशक कहा गया है। वहीं सद्बुद्धि प्रदान करने वाला, लक्ष्मी का साधक तथा मुक्ति प्राप्त कराने में सहायक बताया गया है। कार्तिक मास भर दीपदान करने की विधि है। आकाशदीप भी जलाया जाता है। यह कार्तिक का प्रधान कृत्य है। कार्तिक का दूसरा प्रमुख कृत्य तुलसी वन- पालन है। वैसे तो कार्तिक में ही नहीं, हर मास में तुलसी का सेवन कल्याण मय कहा गया है, किन्तु कार्तिक में तुलसी आराधना की महिमा विशेष है। एक ओर आयुर्वेद शास्त्र में तुलसी को रोगहर कहा गया है, वहीं दूसरी ओर यह यमदूतों के भय से मुक्ति प्रदान करती है। तुलसी-वन पर्यावरण की शुद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण है। भक्ति पूर्वक तुलसी पत्र अथवा मञ्जरी से भगवान् का पूजन करने से अनन्त लाभ मिलता है। कार्तिक व्रत में तुलसी-आरोपण का विशेष महत्व है। भगवती तुलसी विष्णुप्रिया कहलाती हैं। हरि संकीर्तन कार्तिक मास का मुख्य कृत्य है।

यदि कार्तिक मास के महत्व को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह पाएंगे कि पीपलपूजा, तुलसी पूजा, गो पूजा, गंगा-स्नान, तथा गोवर्धन पूजा आदि से पर्यावरण शुद्ध होता है और मनुष्य प्रकृति प्रिय बनता है। -ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश प्रसाद मिश्रKartik Maas 2019:14 अक्टूबर से शुरू हो रहा है कार्तिक, भूलकर भी न करें ये कार्य

Posted By: Vandana Sharma