बेहतरीन नौकरी और लाइफ छोड़ कर स्वदेश लौट रहे वैज्ञानिक
देश में ही उपलब्ध हुए मौके
वैज्ञोनिकों के बाहर जाने का सबसे बड़ा कारण था कि उन्हें देश में वैसे मौके हासिल नहीं होते थे जैसे विदेशी कंपनियां उन्हें देती थीं। फिर चाहे ये मौके बेहतर पैकेज पाने के हों, बेहतर मशीनों पर काम करने के हों या अच्छे माहौल केहों। पर हाल के कुछ सालों में स्थितियां बदली हैं और उससे वैज्ञानिक देश लौटने के लिए मन बना पाये हैं।
दोयम दर्जे से मुक्ति
एक और बात है जो उन्हें लौटने के लिए प्रेरित कर रही है। वो ये कि भले ही पैकज या सुविधाओं के लालच में ब्रेन ड्रेन हो रहा हो लेकिन ऐसे योग्य वैज्ञानिक किसी भी यूनिवर्सिटी या रिसर्च इंस्टीट्यूट में हों पर उन्हें स्थायी फैकल्टी का सम्मान कभी नहीं मिलता। भारत लौटने पर अब उन्हें बेहतरीन लैब और दूसरी सुविधाओं के साथ स्थायी फैकल्टी का संतोष भी मिलता है।
नयी चुनौतियां
पढ़ाई पूरी करने के बाद इन वैज्ञानिकों को देश में नया कुछ सीखने या करने का अवसर नहीं मिलता था, ये भी देश की मेधा के बाहर जाने का बड़ा कारण था। अब जो ब्रेन गेन शुरू हुआ है तो इसका कारण ये भी है कि ये चुनौतियां अब यहां भी उपलब्ध होने लगी हैं।
संभावनाओं में बढ़ोत्तरी
पहले यहां पर शिक्षा पाने के बाद या डिग्री हासिल करने के बाद और आगे जानकारी पाने की इच्छा रखने वालों के लिए संभावनायें खत्म हो जाती थीं पर अब कई कंपनियों ने अपने उन्नत तकनीक और सुविधाओं वाले रिसर्च और डेवलपमेंट विंग शुरू किए हैं जिसके चलते सीखने की संभावनायें बढ़ गयी हैं। यह भी एक बड़ी वजह है कि वैज्ञानिक बाहर से सीख कर उसका इस्तेमाल करने वापस आ रहे हैं।
देश के लिए कुछ करने का संतोष
जब आप देश के बाहर जाते हैं तो अपनों से अलग होने के अलावा देश के साथ धोखा करने जैसा भाव भी उच्च शिक्षित वैज्ञानिकों में आ जाता था, पर यहां पर सुविधाओं का आभाव उनके पांव की बेड़ी बन जाता था। अब जब यहां का माहौल बदल रहा है तो वो स्वदेश वापस आकर देश के लिए कुछ सार्थक करने का संतोष भी पाना चाहते हैं।