आज वर्तमान सरकार का दावा है कि देश में हर किसी की जरूरतो को ध्‍यान में रखते हुये ठोस कदम उठाये जा रहे हैं ऐसे में झारखंड के मजूदरों के साथ यह उपेक्षापूर्ण रवैया कुछ समझ में नहीं आ रहा है. दूसरे राज्‍यों की अपेक्षा यहां कम मजदूरी होने की वजह से यहां के मजूदर तो नाराज है हीं इसके अलावा वहां पर मनरेगा भी हिचकोले खा रही है. सबसे खास बात तो यह है कि इस राज्‍य के मजदूर यहां की बजाय दूसरे राज्‍यों की ओर रुख कर रहे हैं.


250 रुपये प्रतिदन की मजदूरी


वर्तमान में झारखंड में मजदूरी पारिश्रमिक बहुत कम हैं. जिससे वहां की जनता बहुत परेशान है खास कर मजूदर वर्ग. यहां पर मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी 178 रुपये प्रतिदिन अभी भी है. जब कि वहीं हरियाणा जैसे राज्यों के मजदूरों को इनकी अपेक्षा काफी ज्यादा मजदूरी मिलती है. हरियाणा के मजदूरों के लिए 250 रुपये प्रतिदन की मजदूरी तय है. जिससे झारखंड के मजदूर काफी परेशान रहते हैं. उनका मानना है कि दूसरे राज्यों में मेहनत की कीमत दूसरी और हमारे राज्य में दूसरी. शायद इस ओर वर्तमान की केंद्र सरकार भी ध्यान नहीं दे रही है. वहीं सूत्रों की माने तों पूर्वी भारत के कुछ राज्यों में यह हालात इसलिये है क्योंकि यहां पर रोजगार की कमी है और यहां पर बेरोजगार काफी संख्या है.हालांकि इस बार झारखंड के मजदूरों की मजदूरी भी 170 से 190 होने की उम्मीद जतायी जा रही है. मजदूरों का कहना है कि 15 अप्रैल को झारखंड में केंद्रीय ग्रामीण विकास सचिव जाने वाले हैं, ऐसे में इन्ही से इस बात पर विरोध जताया जा सकता है.मजदूरी भी 162 रुपये ही

वहीं इस राज्य में मजदूरी के हालातों से ही मनरेगा योजना भी पिछड़ती जा रही है. इस ओर सबसे ज्यादा बेरुखी प्रदेश सरकार की भी है. यहां पर मनरेगा के मजदूरी भी 162 रुपये ही है. जिससे लोग इसमें काम करने से कतराते हैं. वर्तमान आंकडों पर नजर डाले तो यहां पर करीब 36 लाख परिवार हैं. जिनमें महज 11 लाख परिवारों ने इस मनरेगा योजना के तहत काम मांगा. वह भी अब इससे खुश नही हैं. ऐसे में साफ है कि झारखंड के मजदूर अपने राज्य में काम करने की बजाय वे दूसरे राज्यों का रुख कर जाते हैं. सूत्रों की मानें तो यहां के करीब 10 हजार से मजदूर खाड़ी देशों में काम करते हैं. इसके अलावा बड़ी सख्ंया में हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार की ओर काम की तलाश्ा में चले जाते हैं.

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Posted By: Satyendra Kumar Singh