GORAKHPUR: मम्मी मुझे जीना है, मैं भी इस दुनिया में आना चाहती हूं। मैं तुम्हें हर वो सुख दूंगी जो एक बेटा देता है। ये दर्दभरी पुकार ना जाने कितनी ही दुधमुही बच्चियों ने की होगी, लेकिन उनके अपनों ने ही उन्हें मरने के लिए बेसहारा छोड़ दिया। सिटी में भी ऐसे तमाम मामले हैं जहां परिजनों ने ही नन्हे मासूमों को इस तरह अकेला छोड़ दिया। रेलवे चाइल्ड लाइन की देखरेख में रह रहे ऐसे एक दर्जन बच्चों को घर लौटने का इंतजार है। शेल्टर होम में एक-एक दिन काटना उनके लिए मुश्किल हो रहा है। बड़े बच्चों ने तो अपने पैरेंट्स का नाम, पता बता दिया है लेकिन न्यू बॉर्न बेबीज के पैरेंट्स का पता लगाना चाइल्ड लाइन मेंबर्स के लिए मुश्किल हो रहा है। अगले दो महीने तक अगर पैरेंट्स इन्हें लेने नहीं आते हैं तो बाल संरक्षण विभाग की टीम संबंधित थाना क्षेत्र (जहां से इन बच्चों को प्राप्त किया गया है) से संपर्क कर उन्हें ढूंढेगी। उसके बाद भी अगर इनके पैरेंट्स नहीं मिलते हैं तो इन्हें लीगली फ्री होल्ड प्रक्रिया के तहत शेल्टर होम से एडॉप्शन की प्रक्रिया में लाया जाएगा। इसके लिए भी डिस्ट्रिक्ट प्रोबेशन डिपार्टमेंट की तरफ से कवायद शुरू कर दी गई है।

झाडि़यों में मिले बच्चे, शेल्टर होम में हो रही परवरिश

एक तरफ जहां गवर्नमेंट के निर्देश पर बाल एवं महिला कल्याण विभाग की तरफ से स्कूल, कॉलेज व यूनिवर्सिटी में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ कैंपेन चल रहा है, नुक्कड़ नाटक आयोजित किए जा रहे हैं। वहीं आज भी हमारे समाज में बेटियों को दुनिया में आने से पहले ही या तो मार दिया जा रहा है या फिर उन्हें कूड़े के ढेर में फेंक दिया जा रहा है। चाहे रेलवे स्टेशन हो या फिर सिटी के मोहल्ले, तमाम जगहों से झाडि़यों में फेंके बच्चे मिले हैं। उन्हें चाइल्ड लाइन के जरिए शेल्टर होम में रखा गया है। करीब एक दर्जन ऐसे बच्चे हैं जिनके पैरेंट्स को एडवरटाइजिंग व नोटिफिकेशन के माध्यम से सूचित किया गया है कि वे अपने बच्चे को आकर शेल्टर होम से ले जाएं। इसके लिए दो महीने का वक्त भी दिया गया है। डिस्ट्रिक्ट प्रोबेशन ऑफिसर सर्वजीत सिंह की तरफ से बाकायदा सूचना भी जारी की गई है कि ये बच्चे कहां से प्राप्त किए गए हैं और किस शेल्टर होम में इनकी परवरिश हो रही है।

सुस्त है प्रक्रिया, नहीं दी जा रही स्काउट पार्टी

कहीं से भी रेस्क्यू किए गए बच्चे को चाइल्ड लाइन लाकर उसकी काउंसिलिंग कराई जाती है। इसके बाद 24 घंटे के अंदर ही बच्चों को सीडब्ल्यूसी के सामने प्रस्तुत किया जाता है। वहीं कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद बच्चों को परिजनों को सौंप दिया जाता है। लेकिन प्रक्रिया सुस्त होने की वजह से बच्चे काफी परेशान हैं। चाइल्ड लाइन मेंबर्स का कहना है कि हम लोगों का काम है बच्चों को रेस्क्यू करना। काउंसिलिंग के बाद जानकारी जुटाते हैं। फिर सीडब्ल्यूसी के सामने बच्चों को प्रस्तुत किया जाता है। वहां से पैरेंट्स को बुलाकर वेरीफिकेशन के बाद बच्चों को सौंप दिया जाता है या फिर स्काउट पार्टी के साथ बच्चों को उनके घर पहुंचा दिया जाता है। लेकिन हमें स्काउट पार्टी ही नहीं दी जा रही है जिससे कि बच्चों को उनके घर पहुंचाया जा सके।

ट्रेन से लेकर टॉयलेट तक मिले बच्चे

6 नवंबर 2019 को जगंल कौडि़या के ग्राम जिंदापुर के बगल में झाड़ी में मिली दो दिन की बच्ची।

15 सितंबर 2019 को कैंपियरगंज के ग्राम बजहा में कचरे में मिली एक दिन की बच्ची।

8 सितंबर 2019 को गोला थाना क्षेत्र के खैरपा गांव के धान के खेत में एक दिन की बच्ची लावारिस हालत में मिली।

12 जून 2019 को गोरखपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म पांच पर आरपीएफ कांस्टेबल को मिली दो साल की बच्ची।

29 मई 2019 को रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर एक पर खड़ी आम्रपाली एक्सप्रेस ट्रेन के टॉयलेट से मिला लावारिस बच्चा।

16 मई 2019 को कैंट थाना के पीआरवी 317 को सिंघडि़या से लावारिस हाल मिला छह साल का बच्चा।

2 मई 2019 को गोरखपुर रेलवे स्टेशन के वॉशिंग पिट की तरफ जा रही लाइन के किनारे लावारिस मिला छह साल का बच्चा।

नोट- यह सभी बच्चे गीता वाटिका स्थित एशियन सहयोगी संस्था इंडिया और पादरी बाजार स्थित स्नेहालय में रखे गए हैं।

फैक्ट फिगर

सिटी में सरकारी शेल्टर होम

राजकीय संप्रेक्षण गृह, सूरजकुंड - किशोर (अपराध में संलिप्त)

राजकीय महिला शरणालय, उर्दू बाजार - युवतियां और महिलाएं (अपराध में संलिप्त)

प्राइवेट शेल्टर होम

एशियन सहयोगी इंडिया जेल रोड - (1-10 वर्ष)(एडॉप्शन सेंटर)

सरस्वती सेवा संस्थान, गगहा- (1-10वर्ष) एडॉप्शन सेंटर

प्रतीक्षा आश्रय गृह, खोराबार - (0-18 वर्ष तक) लड़कियां

स्नेहालय पादरी बाजार - (0-18वर्ष) बच्चे व लड़के

प्रोविडेंस होम (0-18) दिव्यांग बच्चे व 10 वर्ष से ऊपर की लड़कियां भी

आश्रय गृह, कैंपियरगंज (10-18 वर्ष) दिव्यांग लड़कियां व बच्चे रहते हैं।

वर्जन

जो बच्चे पाए जाते हैं उनके पैरेंट्स तक पहुंचाने के लिए दो महीने का वक्त दिया जाता है। इस बीच विज्ञापन जारी कर इनके पैरेंट्स तक इन्हें पहुंचाने का प्रयास किया जाता है। अगर वे नहीं मिलते हैं तो उन्हें लीगली फ्री होल्ड किया जाता है। उसके बाद इन बच्चों को एडॉप्शन की प्रक्रिया में लाया जाता है।

एमआई गुप्ता, मेंबर, सीडब्ल्यूसी, बाल कल्याण समिति

कुछ बच्चे व बच्चियां झाडि़यों में पाई गई हैं। ट्रेन और स्टेशन पर भी पाए गए हैं। इनके पैरेंट्स के हवाले करने के लिए नोटिफिकेशन जारी किया गया है। इसके लिए टाइम बाउंड है। इस बीच आ गए तो उन्हें कानूनी प्रक्रिया के तहत सौंप दिया जाएगा।

सर्वजीत सिंह, डिस्ट्रिक्ट प्रोबेशनल ऑफिसर

Posted By: Inextlive