भगवान कृष्‍ण ने गीता में कहा है धरती पर किए जाने वाले हर अच्‍छे कर्म और बुरे कर्म की सजा प्राणी को यहीं मिलती है। लेकिन ऐसा सिर्फ मनुष्‍यो के साथ नहीं है भगवान को भी उनके द्वारा किए जाने वाले बुरे कर्मो के लिए धरती पर ही सजा भुगतनी पड़ती है। इसके लिए भगवान को कठघरे में खड़ा किया जाता है। फिर शुरु होता है आरोप प्रत्‍यारोपों का सिलसिला। भगवान को निष्‍कासन से लेकर मृत्‍युदंड तक की सजा सुनाई जाती है।


बस्तर जिले के भंगाराम देवी के मंदिर में लगती है अदालतछत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के केशकाल नगर में भंगाराम देवी का मंदिर है। आपको बता दें कि भंगाराम देवी इलाके के 55 राजस्व गावों में स्थापित सैकड़ों देवी देवताओं की आराध्या देवी हैं। हर साल लगने वाले इस मेले जात्रे में सभी ग्रामवासी अपने गांव के देवी-देवताओं को लेकर यहां पहुंचते हैं। हर साल इसी जात्रे में एक देव अदालत लगती है। अदालत में आरोपी होते हैं देवी-देवता और फरियादी होते हैं ग्रामवासी। इस देव अदालत में सभी देवी-देवताओं की पेशी की जाती है। जिस देवी-देवता के खिलाफ़ शिकायत होती है उसकी फरीयाद भंगाराम देवी से की जाती है।भंगाराम देवी शिकायतें सुनने के बाद सुनाती हैं फैसला


सबकी शिकायतें सुनने के बाद शाम को भंगाराम देवी अपने फैसले सुनाती है। असल में इस पूरी प्रक्रिया में भंगाराम देवी का एक पुजारी बेसुध हो जाता है। लोगों के अनुसार उसके अंदर स्वयं देवी आ जाती हैं और फिर देवी उसी के माध्यम से अपने फैसले सुनाती है। सज़ा देवी देवताओं द्वारा किये गए अपराध पर निर्भर करती है। यह 6 महीने के निष्कासन से लेकर अनिश्चितकालीन निष्कासन तक सजा दी जाती है। यहां तक की सजा में भगवान को मृत्यु दंड मिल सकता है। मृत्युदंड दिए जाने की अवस्था में मूर्ति खंडित कर दी जाती है। पूरे दिन चलता है आरोपों का सिलसिलासुबह से लेकर शाम तक ग्रामीण भंगाराम देवी के सामने शिकायत सुनाते हैं। इसके बाद निष्कासन की सजा पाए देवी देवताओं की मुर्तिओं को मंदिर के पास ही बनी एक खुली जेल में छोड़ दिया जाता है। मूर्ति के साथ ही उसके जेवर व अन्य समस्त सामान वही छोड़ दिया जाता है। निश्चित अवधि की सजा पाए देवी देवता की वापसी अवधि पूरी होने पर होती है। वापसी से पूर्व उनकी विधि-विधान से पूजा की जाती है और फिर सम्मानपूर्वक उनको ले जाकर मंदिर में पुनः स्थापित कर दिया जाता है। मन्नतें पूरी ना करने से लेकर ये भगवान के अपराध

देवी देवताओं के खिलाफ़ की जाने वाली अधिकतर शिकायत मन्नतें पूरी नहीं करने की होती हैं। इसके अलावा यदि फसल ख़राब हो, पशुओं को कोई बीमारी लग जाए, गांव में कोई बीमारी फैल जाए तो उसका दोषी भी ग्राम के देवी देवता को माना जाता है। हर साल लगने वाले इस जात्रें में महिलाओं का प्रवेश पूर्णतया प्रतिबंधित है यहां तक कि उन्हें जात्रा का प्रसाद खाने की भी मनाही है। इसका कारण स्थानीय लोग यह बताते हैं कि महिलायें स्वभाव से कोमल होती हैं इसलिए उनकी उपस्थिति, भगवान की खिलाफ़ होने वाली सुनवाई पर प्रतिकूल असर डाल सकती है।भंगाराम देवी ने राजा को दिए थे दर्शनकहा जाता है कि बस्तर के राजा को देवी ने स्वप्न में कहा कि मैं तुम्हारे राज्य में आना चाहती हूं तब राजा मंत्री और प्रजा के साथ बस्तर से केसकाल की घाटी पर देवी के स्वागत के लिए आए। बड़ी ज़ोर की आंधी चली और देवी पहले पुरुष वेश में घोड़े पर सवार होकर आई ओर पास आते हुए जब लोगों ने उन्हें नमन किया तब वे स्त्री वेश में परिवर्तित हो गई। केसकाल की घाटी में सड़क के किनारे बना मंदिर ही देवी के प्रकट होने का स्थान है। इस स्थान से दो कि.मी. की दूरी पर एक दूसरा मंदिर बनवाया गया यहां पर देवी की स्थापना की गई।

Posted By: Prabha Punj Mishra