फ‍िल्‍म 'कॉफी ब्‍लूम' ऐसे फ‍िल्‍ममेकर्स की फ‍िल्‍म का एक प्रत्‍यक्ष उदाहरण है जो स्वतंत्र सिनेमा के नाम पर कपटी खुद को खुश करने वाली और एक न देखने लायक फ‍िल्‍में बनाने के आदी होते हैं. ये उस तरह की फ‍िल्‍म है जो दर्शकों को कुछ हटकर दिखाने के चक्‍कर में फ‍िल्‍म में कई सारे आइड‍िया को एक साथ मिक्‍सप कर देते हैं. ऐसे में वो खुद ही अपनी फ‍िल्‍म के टाइटल करेक्‍टर्स और स्क्रिप्‍ट के बीच उलझकर रह जाते हैं और दर्शकों के सामने आती है सिर्फ उबाली हुई कई तरह की दालों वाली खिचड़ी.

क्‍या है फ‍िल्‍म में
कुछ अलग कहने की कोशिश करती ड्रामा-रोमांटिक फिल्म कॉफी ब्लूम आखिर तक भी देखने योग्य नहीं बन पाती. प्रेमी जोड़ा देव आनंद (अर्जुन माथुर) और अंकिता (सुगंधा गर्ग) एक साथ में आत्महत्या करने की कोशिश करते हैं, लेकिन उस कोशिश में अंकिता मर जाती है और देव जिंदा रह जाता है. अब वह संन्यासी बनने की कोशिश करता है, लेकिन उसकी मां की अचानक मौत के बाद उसे जिंदगी को नए सिरे से देखने की प्रेरणा मिलती है. वह कुर्ग के कॉफी प्लांटेशन इलाकों में जाता है. यहां उसकी मुलाकात अंकिता के पति से होती है. कहानी में एक सेक्स वर्कर भी है. कॉफी ब्लूम में देवदास की कहानी की छाप साफ नजर आती है. वहीं इसका ट्रीटमेंट उबाता है. कुला मिला कर बॉक्स ऑफिस के लिए होली का हफ्ता फीका ही रह गया.   
Movie review: Coffee bloom
Cast: Arjun Mathur, Sugandha Garg, Mohan Kapoor;
Director: Manu Warrier

फ‍िल्‍मांकन भी है काफी उबाऊ
फ‍िल्‍म देखते हुए अचानक आपको खुद को जगाने के लिए थप्‍पड़ की भी जरूरत पड़ सकती है. युवाओं को ध्यान में रख कर बनाई गई यह फ‍िल्‍म एक किस्म से निर्देशक की बेवजह की सोच का नतीजा दिखती है. इस कहानी जरा भी दम नहीं है और इसके कहने का अंदाज भी बहुत ज्‍यादा जटिल है.

Courtesy : Mid-day

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