ये फिल्म फन फिल्म होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यंग एक्टर-डायरेक्टर-राइटर शुभ मुखर्जी ने जबरदस्ती फिल्म के सभी डिपार्टमेंट्स अपने हाथ में लेकर फिल्म को हौच-पौच बना दिया. हल्का-फुल्का टेररिज्म पिछले साल आई फिल्म तेरे बिन लादेन में बहुत अच्छी तरह टैकल किया गया था लेकिन ये तो उसके आसपास भी नहीं पहुंचती.

 अंकित (शुभ) और उसके फ्रेंड दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट के पास डॉक्यूमेंट्री की शूटिंग के लिए पहुंचते हैं लेकिन वहां अरेस्ट हो जाते हैं. एंटी टेररिस्ट ऑफिसर (सौरभ शुक्ला) केस को इंवेस्टिगेट करने के लिए अपने हाथ में लेते हैं. तब तक हकीकत में किसी और जगह से रियल टेररिस्ट अपने लीडर ओमामा बिन लादेन (जाकिर हुसैन) के साथ बॉम प्लांट करने की प्लानिंग करते हंै.

तभी अमीना (आमना शरीफ) की एंट्री होती है जो कि टेररिस्ट ग्रुप का हिस्सा होने की वजह से अरेस्ट हो जाती है. पूरी फिल्म नौसीखिया और बचकाना अटेम्प्ट लगती है. ये एकदम हैरान करने वाली बात है कि पूरी एयरपोर्ट सिक्योरिटी टीम तीन टीनएजर्स और एक बच्चे को पकड़ नहीं पाती. कॉमेडी का एक बचकाना अटेम्प्ट ही कहिए कि हंसी दिलाने के घिसे-पिटे हथकंडे यूज किए जाते हैं.

सौरभ शुक्ला कंफ्यूज्ड एटीएस ऑफिसर के तौर पर ठीक दिखे हैं. सौरभ शुक्ला, रघुवीर यादव और जाकिर हुसैन को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे ये लोग अपना रास्ता भटक गए हैं और किसी टीनएजर मूवी प्रोजेक्ट में आ गए हैं. शुभ, जो कुछ एंगल से शाहरुख खान से मिलते हैं, काफी सिंसियर लगे. लेकिन ये पूरी फिल्म मेकिंग एक्सरसाइज को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे किसी बच्चे का मन रखने के लिए उसे स्क्रिप्ट लिखने को दे दी गई है. इन सबके बावजूद फिल्म में कोई प्वॉइंट नहीं है.  

Posted By: Garima Shukla