मुन्ना माइकल एक ऐसी फिल्म है जिसमें कुंवारा बाप से लेकर रब ने बनादी जोड़ी तक और डिस्को डांसर से लेकर एबीसीडी के सारे क्लीशे इस्तेमाल कर दिए हैं। कहने का मतलब बीडू इसमें कुछ भी नया नहीं है। क्लिशे घिसा-पिटा या पुराना से भरी हुई के फिल्म आपके दिमाग में कलेश मचा देती है।

कहानी
मुन्ना एक अनाथ बच्चा है जिसको एक फेल्ड डांसर ने पाला है, वो नाच गा के और पार्टटाइम में गुंडई करके पैसे कमाता है, कभी कभी एक रात में लाखों (भगवान् मुझे उठा ले), यहाँ मुंबई में एक से एक डांसर भूखे मर रहे हैं और एक तरफ मुन्ना माइकल है जो...खैर, वापस कहानी पे आते हैं। माइकल को काम मिलता है, एक गैंगस्टर को नाचना सिखाना है, जिसको नाचना सीखना है एक लड़की को इम्प्रेस करने के लिए, लड़की जो एक रियलिटी शो जीतना चाहती है और उसे प्यार है मुन्ना से...आगे की कहानी बताऊँ या आपने गेस कर ली?
कथा, पटकथा और निर्देशन
जितने टाइगर के एब्ज़ हैं, कम से कम उतनी फिल्मों की कहानी चुरा चुरा कर इस फिल्म की 'कहानी' लिखी गई है। टाइगर के चेहरे से ज्यादा स्क्रीनटाइम उनके एब्ज़ को दिया गया है, आखिर उन्होंने उनके लिए इतनी मेहनत जो की है। फिल्म बेहद प्रेडिक्टेबल है और इतनी खराब तरीके से लिखी गई है की कई जगह पर अनइन्टेन्शनली फनी हो जाती है। समझ में ही नहीं आता की आप फिल्म पर हंस रहे हैं, या खुद की हालत पे। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है, पर अच्छाईयों के नाम पर बस इतना ही है।

 


अदाकारी
नवाज़ इस समय के सबसे टैलेंटेड अदाकारों में से हैं, अगर उन्हें एक सेकंड भी दिया जाए तो उसमें भी तो तालियाँ बटोर लेंगे, जैसे जग्गा जासूस में हुआ था। पर यहाँ कहानी और उनका रोल इतना टुच्चा लिखा हुआ है, की वो भी फिल्म में कोई ख़ास योगदान नहीं दे पाते। हम सब जानते हैं की टाइगर अच्छा नाचते हैं और मार पीट अच्छी कर लेते हैं। पर ये सब हम उनकी पिछली सारी फिल्मों में देख चुके हैं, अगर वही सब देखना होता तो मैं वापस से आपकी पुरानी फिल्में ही देख लेता, नयापन कहाँ है।

संगीत

रूटीन और औसत है। कोई गाना याद नहीं रहता
कुलमिलाकर मुन्ना माइकल में घिसी पिटी कहानी है और ये एक अनइंटेशनल कॉमेडी है। फिर भी अगर टिकेट फ्री के हों तो जाकर देख सकते हैं मुन्ना माइकल जाके देख सकते हैं।
Review by : Yohaann Bhaargava
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Posted By: Abhishek Kumar Tiwari