DEHRADUN 17 Nov : देशभर के केंद्रीय विद्यालयों में अब आपको देवों की वाणी संस्कृत सुनाई नहीं देगी. दरअसल केंद्रीय विद्यालय संगठन ने संस्कृत को विदा करने की तैयारी कर ली है. अब इसके स्थान पर जर्मन पढ़ाई जाएगी. उत्तराखंड में संस्कृत को दूसरी भाषा का दर्जा प्राप्त है लेकिन केंद्र के अधीन राज्य में स्थित केंद्रीय विद्यालयों में भी अब संस्कृत नहीं पढ़ाई जाएगी.


court जाने का मन बना रहे टीचर्स केंद्र सरकार के प्रतिष्ठान चाहे वो केंद्रीय विद्यालय संगठन या जवाहर नवोदय विद्यालय संगठन, हर कहीं संस्कृत से या तो दूरी बना ली गई या फिर बनाने की कोशिश की जा रही है. बीते दिनों केंद्रीय विद्यालय संगठन (केवीएस) ने गोयठे इंस्टीट्यूट (द्दशद्गह्लद्धद्ग द्बठ्ठह्यह्लद्बह्लह्वह्लद्ग) और मैक्समूलर भवन के  साथ मिलकर जर्मन भाषा की पढ़ाई शुरू करने का फैसला किया है. जर्मन भाषा के लिए किसी एक भाषा की बलि देने की जरूरत थी. केवीएस के कर्ताधर्ताओं को संस्कृत ही सबसे मुफीद नजर आई और इसे लागू करने का फैसला कर लिया गया. इस फैसले के बाद कई केवीएस के संस्कृत टीचर्स ने विरोध किया, लेकिन वह भी नक्कारखाने में तूती सा ही साबित हुआ. अब वे इस मामले को लेकर कोर्ट जाने का भी मन बना रहे हैं. धीरे-धीरे गायब हो जाएगी देव वाणी
केवीएस के इस फैसले को सामान्य नहीं माना जा सकता. धीरे-धीरे करीब 1000 केंद्रीय विद्यालय से संस्कृत गायब हो जाएगी और राजभाषा की जननी अपने अस्तित्व के लिए लड़ती नजर आएगी. केवीएस के अधिकारी तर्क दे रहे हैं कि उन्होंने जर्मन को एक ऑप्शन के तौर पर रखा है. तर्क दिया जा रहा है कि संस्कृत की तुलना में जर्मन भाषा रोजगार के ज्यादा अवसर देती है, लेकिन ये तर्क बौने हैं. दून में अधिकतर संस्कृत की टीचर्स महिलाएं हैं. नाम न बताने की शर्त पर एक टीचर्स ने अपना दर्द आई नेक्स्ट के साथ साझा किया. उन्होंने कहा कि गिनती भर के संस्कृत टीचर्स कई बार अपना मांगे संगठन के पास रखते भी है तो उनकी बातों को कोई तवज्जों नहीं दी जाती. इस फैसले के बाद तो प्रॉब्लम्स और बढ़ जाएंगी. असल बात यह है कि दिल्ली में बैठे लोगों को संस्कृत की पढ़ाई निरर्थक और निष्प्रयोज्य नजर आती है. इसलिए वे छुटकारा पाने की जुगत में नजर आ रहे हैं. जर्मन के अलावा भी कई विदेशी भाषाएं सब्जेक्ट के तौर पर कोर्स में एड की जा रही हैं. जर्मन के अलावा जापानी, चाइनीज जैसी कई लैंग्वेजेज को भी जल्द ऑप्शनल सब्जेक्ट के तौर पर जल्द लागू किया जाना है. संस्कृत भाषा को स्टेट में सेकेंड लैंग्वेज का दर्जा प्राप्त होने का क्या फायदा जब स्कूलों मेंं इसकी पढ़ाई ही बंद हो जाएगी. तो अपने आप ही यह भाषा विलुप्त हो जाएगी. - संस्कृत टीचर, केंद्रीय विद्यालय


यह फैसला दिल्ली में लिया गया है. जर्मनी के गोयठे इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर इस लैंग्वेज को सब्जेक्ट के रूप में पढ़ाया जाएगा. स्कूल में इसके लिए टीचर्स भी अप्वॉइंट किए गए हैं. स्टूडेंट्स इस लैंग्वेज को ऑप्शनल के रूप में संस्कृत की जगह पढ़ सकते हैं. इसे स्टार्ट करने के पीछे का मकसद स्टूडेंट के ओवर ऑल डेवलेपमेंट और इंटरनेशनल लेवल पर फ्यूचर पॉसिबिलिटीज को स्ट्रांग करना है. ऐसा नहीं है कि इससे संस्कृत सब्जेक्ट या लैंग्वेज को कोई हानि होगी. - एसएस चौहान, उपायुक्त, केंद्रीय विद्यालय संगठन, देहरादून संभाग.

Posted By: Ravi Pal