International Tiger Day: अब सिर्फ 1400 सौ नहीं इतने बचे हैं इंडिया में टाइगर, जानें कैसे होती है बाघोंं की जनगणना
इंटरनेट डेस्क (कानपुर)। आपने टीवी से लेकर रेडियो में यह विज्ञापन आपने जरूर देखा सुना होगा, जिसमें टाइ्गर बोलता है कि हम भारत में सिर्फ 1400 ही बचे हैं। पर आपको बता दें कि आज भारत में बाघों की संख्या 3 हजार से अधिक हो चुकी है। टाइगर की संख्या कैसे बढ़ी, शायद इससे भी ज्यादा कठिन काम है बाघों की काउंटिंग करना। बाघों की गिनती का काम बहुत चुनौतियों भरा होता है। न तो ये बाघ किसी एक जगह या एक जंगल में मिलते हैं और न ही एक समय पर इन्हें एक साथ गिना जा सकता है। तो फिर ऐसे में इनकी गिनती होती कैसे है? आइए समझते हैं...
बाघों की काउंटिंग करना नहीं है आसान
घने जंगलों से लेकर हिमालय तक, बाघ एक ऐसी प्रजाति है- जिसे ढूंढना और फिर गिनना बेहद कठिन है। लेकिन, कैमरा ट्रैप के उपयोग के बाद से, बाघों की गतिविधियां और व्यवहार को जानना अब पहले जितना मुश्किल काम नहीं रह गया है। कैमरा-ट्रैप के माध्यम से बाघों पर नज़र रखना दुनिया भर में बाघों की गिनती करने का मानक तरीका बन गया है और आज भारत में भी यही तरीका अपनाया जा रहा है।
पग मार्क से काउंटिंग है पुराना तरीका
कैमरा-ट्रैपिंग के जरिए बाघों के पगमार्क (पैरों के निशान) का उपयोग करके बाघों की गिनती करने का तरीका पहले के समय में इस्तेमाल किये जाने वाले तरीके से ही विकसित हुआ है, जो काफी गलत जनसंख्या अनुमान बताता था। कैमरा-ट्रैप लगाने से पहले, टीमें बाघों और अन्य वन्यजीवों की उपस्थिति के लिए एक क्षेत्र की रेकी करती हैं फिर टीमें जगहों तक भी जाती हैं जहां पहुंच पाना काफी मुश्किल होता है।
कैमरों को मेमोरी कार्ड और बैटरियों के साथ लोड किया जाता है और फिर एक पेड़ या पोस्ट से जोड़ा जाता है जहां उन्हें वापस लाने से पहले 2-3 महीने के लिए छोड़ दिया जाता है। कैमरा ट्रैप का स्थान लॉग कर दिया जाता है जिससे टीम को पता चले कि वास्तव में कहाँ वापस जाना है। ऐसे में जब कोई बाघ या अन्य वन्यजीव उसके सामने से गुजरता है तो कैमरे की इन्फ्रा-रेड तरंगे एक्टिव होकर कैमरे की रिकॉर्डिंग चालू कर देती हैं।
बाघ के शरीर पर बनी धारियों से होती है उनकी काउंटिंग
कुछ दिनों के बाद वो कैमरे और उनके मेमोरी कार्ड कार्यालय में वापस लाए जाते हैं और उनसे मिली हज़ारों फ़ोटो और वीडियो की छान-बीन कर डेटा का विश्लेषण किया जाता है। बाघ को दोनों तरफ से रिकॉर्ड करने के लिए कैमरे को जोड़े में लगाया जाता हैं ताकि उनके शरीर की धारियाँ देखी जा सकें, क्योंकि बाघ की पहचान उनके शरीर पर बनी धारियों से होती है। जैसे हर इंसान का फिंगर प्रिंट अलग होता है, ठीक उसी तरह से बाघों के शरीर पर बनी धारियां किसी दूसरे बाघ के शरीर पर बनी धारियों से अलग होती हैं। इसका मतलब यह है कि इनकी धारियों के आधार पर इनकी पहचान की जाती है। यही वजह है कि गिनती का सबसे कामयाब तरीका फोटोग्राफी होता है।
भारत सरकार अपने जंगलों में घूमने वाले बाघों की संख्या निर्धारित करने के लिए हर चार साल में अखिल भारतीय बाघ आकलन आयोजित करती है। रिपोर्टस के मुताबिक पिछले 4 साल में 200 बाघ बढ़े हैं। ये सर्वेक्षण बाघों की आबादी बढ़ने के पैटर्न और उसकी एनालिसिस के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इससे बाघों की आबादी कहां ठीक और कहां कम हो रही है। इसका आसानी से पता चल जाता है।
2023 टाइगर ईयर होने के साथ-साथ इस साल में 2010 में हुए पहले वैश्विक बाघ शिखर सम्मेलन की 13वीं वर्षगांठ भी है। उस सम्मेलन में सरकारों ने जंगल में बाघों की संख्या को दोगुना करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य बनाया था। जो वाकई में पूरा हो चुका है। इसके मुताबिक वर्ष 2022 में देश में बाघों की संख्या 3167 थी। सरकार आगे भी बाघों की संख्या बढ़ाने के लगातार काम करती रहेगी।