मानव शरीर की ये अब तक की सबसे विस्‍तृत तस्‍वीर है। ये तस्‍वीर है आज से 20 साल पहले हार्टअटैक से खत्‍म हुई एक महिला के अंगों की। इस महिला के शरीर को करीब 5000 टुकड़ों में काटा गया। उसके बाद कटे हुए अंगों को स्‍कैन कर दिया गया। इस हाई-रेजोल्‍यूशन तस्‍वीर में उसके शव के क्रॉस सेक्‍शन को दिखाने के लिए उसे एक तिहाई मिलीमीटर की मोटाई में काटा गया। दरअसल इसका इस्‍तेमाल महिला के शरीर का डिजिटल वर्जन बनाने के लिए किया गया और इसे नाम दिया गया 'ह्यूमन फैंटम' का।

प्रोजेक्‍ट के पीछे है एक अलग सोच
विजिबल ह्यूमन प्रोजेक्‍ट के नाम से इस पूरी प्रक्रिया के पीछे वैज्ञानिकों की एक अलग ही सोच है। वैज्ञानिकों का ये मानना है कि इस प्रक्रिया की मदद से खोजकर्ताओं को जीवित इंसानों से जुड़े खतरनाक एक्‍सपेरिमेंट्स करने में मदद मिलेगी। वह महिला, जिसकी बॉडी के टुकड़े किए गए हैं, वह मारीलैंड में रहती थी और उस समय 59 साल की थी। उसके शरीर को आखिरी समय में उसके परिवार वालों ने खास प्रोजेक्‍ट्स या रिसर्च के लिए डोनेट कर दिया। इनकी बॉडी के टुकड़ों को 38 वर्षीय जोसेफ पॉल जर्निगन के शरीर के टुकड़ों के साथ स्‍कैन किया गया। बता दें कि जोसेफ का मर्डर किया गया था। इनके शरीर के 1मिमी मोटाई में टुकड़े किए गए थे।

पाईं गईं कुछ गड़बड़ियां
उन्‍होंने बताया कि नए वैज्ञानिक के अनुसार इसे संरचनात्‍मक रूप से सही होने की जरूरत है। इस प्रोजेक्‍ट में पहले ही संरचनात्‍मक टेकस्‍ट बुक्‍स के अनुसार कई गड़बड़ियां पाईं गईं। जैसे पैल्‍विक क्षेत्र में मसल्‍स का आकार और मूत्राशय का स्थान। वहीं अब वैज्ञानिक मानव शरीर का डिजिटल मॉडल तैयार करने के लिए डाटा का इस्‍तेमाल कर रहे हैं। इसमें उसके आईबॉल्‍स से लेकर कई अंगों की तस्‍वीरें हैं। अब खोजकर्ता इस वर्चुअल ह्यूमन बॉडी का इस्‍तेमाल कई तरह के गहन परीक्षण कराने में कर सकते हैं, जो वह जीवित इंसानों पर नहीं कर सकते। प्रोफेसर मार्कोव बताते हैं कि उनकी टीम ने इस ह्यूमन फैंटम पर हिप रिप्‍लेसमेंट का प्रयोग भी किया। उसके बाद उन्‍होंने दिखाया कि उसको MRI स्‍कैनर में रखने से क्‍या हो सकता है।

ऐसा कहते हैं प्रोफेसर
प्रोफेसर मार्कोव ने बैठक में बताया कि ऐसा करने का नतीजा ये हुआ कि अब मरीजों की स्‍कैनिंग और उनकी बीमारी में सुधार के बारे में हल जल्‍दी मिल जाते हैं। ये फैंटम ह्यूमन ऑनलाइन बिल्‍कुल मुफ्त उपलब्‍ध है। इसकी मदद से ब्रेस्‍ट कैंसर स्‍क्रीनिंग में काफी मदद मिली है। इसके अलावा लंबे समय तक फोन का इस्‍तेमाल करने से दिमाग पर पड़ने वाले रेडिएशंस के असर को स्‍कैन कर सकने में भी मदद मिली है।

आर्थोपैडिक सर्जन का ऐसा है कहना
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में एक आर्थोपेडिक सर्जन आरा नज़ारियान ने इस विजिबल ह्यूमन प्रोजेक्‍ट में सहयोग किया। इस ह्यूमन प्रोजेक्‍ट के बारे में उनका कहना है कि ये फैंटम हमें मौका देता है बिना ह्यूमन स्‍टडी किए ह्यूमन टिशूज़ के बारे में जानने का। बता दें बिना इस प्रक्रिया के ये काफी लंबा और महंगा प्रोसीजर होता है। अब फिलहाल इस फैंटम से कई सारे कार्यों को आसान बनाया जाता है, लेकिन अगर कोई चाहे तो लैपटॉप पर ही इसपर एक्‍सपेरिमेंट कर सकता है।

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