- पर्यावरण प्रेमी बनाते हैं अनूठी चीजे

- कर सकते हैं पॉलीबैग, प्लास्टिक बॉटल्स का दुबारा यूज

LUCKNOW: प्लास्टिक के लगातार बढ़ते खतरे को हम कर सकते हैं। प्लास्टिक के सामान का दुबारा यूज करके इसके यूज को कम किया जा सकता है। सिटी में कई आर्गेनाइजेशन और लोग प्लास्टिक के सामानों का बेहतर यूज करके कूड़े में जाने से बचा रहे हैं। इनसे सीखें और खुद दूसरों को प्लास्टिक को रिसाइकिल करने और इससे बनी चीजे यूज करने क लिए प्रेरित करें।

प्लास्टिक से बन रही चटाई

आईआईएम के पास एक आर्गेनाइजेशन ने पॉलीबैग का सबसे बेहतर इस्तेमाल कर चटाई बनाना शुरू किया। इससे कुछ जरूरतमंदों को रोजगार के अवसर भी मिले। यह चटाई बड़े काम की हैं और इन पर बारिश का भी असर नहीं होता। जिससे इन्हें कहीं भी बिछा कर बैठ सकते हैं। लखनऊ के सरकारी हॉस्पिटल्स में ऐसी चटाई बेचते हुए कुछ लोग मिल जाते हैं। क्योंकि इनमें लागत न के बराबर होती है सिर्फ बनाने की मेहनत की ही कास्ट होती है तो ये सस्ती भी होती हैं। प्लास्टिक की होने के कारण इनकी ड्यूरेबिलिटी भी अधिक है। इसके अलावा ये आर्गेनाइजेशन प्लास्टिक के बैग भी बनाते हैं। इनकी सुंदरता देख आप भी खरीदना के लिए हां कर देंगे। रंग बिरंगी प्लास्टिक के ये बैग देखने में भी आकर्षक हैं और सस्ते भी नहीं लगते।

बॉटल्स का सही यूज

सीनियर साइंटिस्ट डॉ। प्रदीप कुमार श्रीवास्तव के अनुसार अगर बहुत सी जगहों पर लोग बॉटल्स का बेहतर यूज कर रहे हैं। अगर इनको दो हिस्सों में काट दिया जाए तो ये एक क्रिएटिव डिब्बे की शक्ल में बदल जाते हैं। जिनमें किचन का या अन्य सामान रखने में यूज कर सकते हैं। इसके अलावा कई देशों में तो प्लास्टिक की बॉटल का यूज करके घर तक बन जाते हैं। बॉटल्स में बालू या मिट्टी भरकर उन्हें ईट की जगह यूज किया जाता है। दीवार बनने के बाद ऊपर से प्लास्टर होने पर पता ही नहीं चलता कि दीवार प्लास्टिक से बनाई गई है। कुछ ऐसे इनोवेशंस लखनऊ में भी करने की जरूरत है।

एक्सनोरा आर्गेनाइजेशन की प्रभा चतुर्वेदी ने बताया कि व्यर्थ से अर्थ कार्यक्रम के तहत वह लोगों को ऐसे क्रिएटिव काम करने के लिए प्रेरित करती हैं। लोग शादी के कार्ड एक बार यूज करने के बाद फेंक देते हैं। जिन्हें दुबारा लिफाफा बनाने में यूज कर लिया जाता है। यह मार्केट में बनने वाले लिफाफे से कहीं ज्यादा आकर्षक और यूजेबल लगता है। कामना शर्मा, दया चतुर्वेदी सहित अन्य महिलाएं पर्यावरण बचाने की इस मुहिम में उनका साथ देती हैं।

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कूड़े की भी बढ़ जाएगी कीमत

आने वाले समय में प्लास्टिक कचरे की कीमत भी बढ़ जाएगी। जिससे यह जगह जगह नजर नहीं आएगा। अभी विदेशों में तो इससे पेट्रोलियम पदार्थ बनाए जा रहे हैं लेकिन अब सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट आफ पेट्रोलियम के साइंटिस्ट्स ने खास व आसान तकनीक ईजाद कर ली है। इससे वर्तमान में उपलब्ध ईधन की लागत ब्0 से भ्0 परसेंट तक कम हो जाएगी। इसके लिए देहरादून स्थित संस्थान में ऐसी लैब भी डेवलप कर ली गई है जहां पर साइंस्टि वेस्ट को पेट्रोलियम पदार्थो में कन्वर्ट कर सकेंगे। जिस प्लास्टिक को इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है उसे प्लांट में गर्म किया जाता है और उसे कैटालिस्ट की प्रासेस से गुजारा जाता है। चार से पांच घंटे की प्रासेस के बाद ईधन में यह प्लास्टिक कन्वर्ट हो जाती है। खास बात यह है कि पूरे प्रासेस में कोई हानिकारक गैस नहीं निकलती। यह टेक्नोलॉजी प्लास्टिक के रिसाइकिलिंग से ज्यादा सेफ और एनवायर्नमेंट फ्रेंडली है। इसमें एक किलो प्लास्टिक से 800 से 8भ्0 मिलीलीटर डीजल, म्भ्0-700मिली। पेट्रोल और भ्00-भ्भ्0 ग्राम एलपीजी बनाई जा सकती है। अब तक ऐसी तकनीक सिर्फ जर्मनी, जापान और अमेरिका में ही यूज हो रही है।

पेट्रोलियम की इतनी जरूरत

- देश में रोजाना ब्.फ् मिलियन बैरल क्रूड ऑयल होता है यूज

- 7भ् परसेंट क्रूड ऑयल हमारे देश को दूसरे देशों से इम्पोर्ट करना पड़ता है।

- क्ब्म्.70 मिलियन टन क्रूड ऑयल भारत ने फाइनेंसियल इयर ख्0क्ख्-क्फ् में इम्पोर्ट किया था।

- पिछले दो सालो में यह आंकड़ा बढ़कर डेढ़ गुने से ज्यादा हो चुका है।

Posted By: Inextlive