शिवराज सिंह: यह चुप्पा चौहान नहीं चूकता
उमा भारती, जो भारतीय जनशक्ति पार्टी बना चुकी थीं और शिवराज से बेहद ख़फ़ा थीं उन्होंने शिवराज को उनके मुंह पर सरेआम ख़ूब खरी खोटी सुनाई.उनको भला-बुरा कहा और याद दिलाया कि शिवराज ने किस तरह उनसे राजनीति सीखी थी.शिवराज केवल चुप रहे. उमा भारती वो चुनाव हार गईं. राजनीति के इतिहास की किताब में लगभग फ़ुटनोट बन जाने की कगार पर पहुंच गईं.सबसे भली चुप्पीआख़िरकार वह बड़ी मुश्किल से मिन्नतों और कोशिशों के बाद 2011 भाजपा में लौट पाईं. जब लौटीं, तो वो जिस राज्य की मुख्यमंत्री थीं, उससे उन्हें चुनाव तक लड़ने की अनुमति नहीं मिली.
भाषण देने के शौकीन शिवराज को जब लालकृष्ण आडवाणी ने नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में पेश करने की कोशिश की, तो शिवराज धीरे से किनारे हो लिए. लेकिन उन्होंने धीरे-धीरे वो सारी चीज़ें करना जारी रखा, जो लोगों को उनकी तुलना नरेंद्र मोदी से करने को मजबूर करे.उन्होंने भोपाल में एक विशाल रैली की और दिखाया की वह भी मोदी की तरह खूब भीड़ जुटा सकते हैं. उन्होंने चुनाव प्रचार के लिए यात्रा शुरू की, तो पोस्टरों में केवल उनकी तस्वीरें थीं, नरेंद्र मोदी की नहीं.
वो ईद के मौक़े पर मुसलमानों को बधाई देने पहुंचे और ठीक उस तरह की टोपी पहन ली, जिस टोपी को पहनने से नरेंद्र मोदी ने इनकार कर दिया था. उन्होंने मुसलमानों के लिए भी सरकारी खर्च से तीर्थयात्रा का इंतज़ाम कराया. वो मुख्यमंत्रियों के सम्मलेन में नीतीश कुमार से प्रेम से मिलते रहे.मोदी की तरह मध्य प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी राहुल गांधी को शहज़ादे के विशेषण से पुकारती है, लेकिन शिवराज ने कभी भी राहुल के लिए यह शब्द इस्तेमाल नहीं किया. हाँ, यह ज़रूर है कि वह हर आकलन, कयास और विश्लेषण को ख़ारिज़ करते रहे, नरेंद्र मोदी की तारीफ करते रहे और मोदी में आस्था जताते रहे.बदला वक्त
राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर कहते हैं, ''यह कहना ग़लत है कि वे स्टैंड नहीं लेते. स्टैंड तो वे ज़िद के साथ लेते हैं, लेकिन टकराव मोल नहीं लेते. चूंकि वे पांच सितारा संस्कृति में नहीं पले-बढ़े, इस लिहाज़ से सौम्यता उनके आक्रमण में भी झलकती है, और आक्रमण उतना तीखा नहीं दिखाई पडता.''अख़बारनवीसों के लिहाज़ से वे इसलिए सनसनीखेज़ ख़बर देने वाले नेता नहीं हैं क्योंकि 'ऑफ़ द रिकॉर्ड' बात करना उन्हें पसंद नहीं. 'ऑन द रिकॉर्ड' में वे हमेशा अपनी उपलब्धियों का रिकॉर्ड बजाते हैं.लीक से हटना नहींऐसे तमाम मुद्दे हैं जो निजी बातचीत से लेकर इंटरव्यू और सार्वजनिक सभा तक चौबीस घंटे शिवराज के साथ चलते हैं. अक्सर साथ चलने वाले अफ़सर और पार्टी कार्यकर्ता तो क्रम में बताने लगे हैं कि अब मुख्यमंत्री क्या बोलने वाले हैं.चुनावी सभाएं छोड़ वे राजनीतिक मुद्दों को छूना भी पसंद नहीं करते.शिवराज को जब लोग 'पाँव पाँव वाले भैया' कहते हैं, तो वे ख़ूब ख़ुश होते हैं. लड़कियों को जन्म के वक़्त से पैसे वाली उनकी 'लाड़ली लक्ष्मी योजना' से लेकर 'शादी कराने के लिए मुख्यमंत्री कन्यादान योजना' की बात वो खूब करते हैं और बड़े चाव से अपने आप को 'प्रदेश की बच्चियों का मामा' कहते हैं.