अपने एक ही वार में शेर को मार गिराने वाली महारानी दुर्गावती गोडवाना के राजा दलपतिशाह की पत्नी थी। महारानी दुर्गावती ने एक या दो नहीं पूरे तीन बार अकबर की सेना को पीछे धकेल था। महारानी दुर्गावती का जन्‍म आज ही के दिन हुआ था। आईये जानते हैं गोडवाना की महारानी दुर्गावती के बारे में।

कलिंजर के किले में हुआ था महारानी दुर्गावती का जन्म

महारानी दुर्गावती मरावी का जन्म प्रसिद्ध राजपूत चंदेल शासक कीरत राय के घराने में हुआ था। उनका जन्म चंदेल साम्राज्य में उत्तर प्रदेश के कालिंजर किले में हुआ था। महमूद गजनी को इसी किले में हार का सामना करना पड़ा था। 1542 में महारानी दुर्गावती का विवाह गोंड साम्राज्य के राजा संग्राम शाह के बड़े बेटे दलपति शाह से से हुआ था। 1545 में उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम वीर नारायण रखा गया। सन 1550 में उनके पति दलपित शाह की मृत्यु हो गयी। दलपति शाह की मृत्यु के बाद उनका पुत्र वीर नारायण गद्दी पर बैठा। महारानी दुर्गावती उसकी संरक्षिका बनी। उस समय गोंडवाना को शक्तिशाली और संपन्न राज्यों में गिना जाता था। 

 

आसफ खान ने भागकर बचाई थी अपनी जान

महारानी दुर्गावती की योग्यता एवं वीरता की प्रशंसा जब मुगल बादशाह अकबर तक पहुंची तो उसके दरबारियों ने गोंडवाना को अपने अधीन कर लेने की सलाह दी। अकबर ने आसफ खां नामक सरदार को गोंडवाना की गढ़मंडल पर चढ़ाई करने की सलाह दी। महामहारानी दुर्गावती को एक समान्य महिला समझकर आसफ खां गोंडवाना पर हमला कर दिया। आसफ को लगा कि अकबर के प्रताप से भयभीत होकर महारानी आत्मसमर्पण कर देंगी लेकिन महारानी ने युद्ध का शंखनाद कर दिया। महारानी जब सैनिक के वेश में घोड़े पर सवार होकर निकलीं तो रणक्षेत्र में महारानी के सैनिक उत्साहित होकर शत्रुओ को काटने लगे। देखते ही देखते दुश्मनो की सेना मैदान छोड़कर भाग निकली। आसफ खान बड़ी कठिनाई से अपने प्राण बचाने में सफल हुआ। 

 

आसफ खान ने हार का बदला लेने के लिए पुन: किया आक्रमण

आसफ खान की हार सुन अकबर बहुत लज्जित हुआ। डेढ़ वर्ष बाद उसने पुनः आसफ खान को गढ़मंडल पर आक्रमण करने भेजा। महारानी तथा आसफ खान के बीच फिर से घमासान युद्ध हुआ। तोपों का वार भी महारानी दुर्गावती की हिम्मत को तोड़ नहीं सका। महारानी ने मुगल तोपचियों का सिर काट डाला। यह देखकर आसफ खान की सेना फिर भाग खड़ी हुई। दो बार हारकर आसफ खान लज्जा और ग्लानी से भर गया। महामहारानी दुर्गावती अपनी राजधानी में जीत का विजयोत्स्व मना रही थी। उसी गढ़मंडल के एक सरदार ने महारानी को धोखा दे दिया। उसने गढ़मंडल का सारा भेद आसफ खान को बता दिया। आसफ खान ने अपने हार का बदला लेने के लिए तीसरी बार गढ़मंडल पर आक्रमण किया। 

 

16 वर्षों तक महारानी दुर्गावती ने किया था गोंडवाना पर शासन

महारानी ने अपने पुत्र के नेतृत्व में सेना भेजकर स्वयं एक टुकड़ी का नेतृत्व संभाला। युद्ध में घायल हुए पुत्र वीर नारायण को उन्होंने अपने भरोसेमंद सैनिकों के साथ सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया। युद्ध के दौरान दुश्मनों का एक बाण महारानी की आँख में जा लगा और दुसरा तीर महारानी की गर्दन में। महारानी समझ गई की अब मृत्यु निश्चित है। जीते जी दुश्मनों की पकड़ में न आजाऊं तो उन्होंने अपनी ही तलवार अपनी छाती में भोंक अपने प्राणों की बलि दे दी। 24 जून 1564 को वो मृत्यु को प्राप्त हुईं। महारानी दुर्गावती ने 16 वर्षों तक गोंडवाना पर शासन किया था।

 

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Posted By: Prabha Punj Mishra