31 जुलाई 1880 को हिंदी साहित्‍य के महान उपन्‍यासकार मुंशी प्रेमचंद का जन्‍म हुआ था। हिंदी साहित्‍य में इनकी लेखनी इतनी मजबूत थी कि उससे प्रभावित होकर बंगाल के विख्‍यात उपन्‍यासकार शरतचंद चट्टोपाध्‍याय ने उन्‍हें उपन्‍यास सम्राट के नाम से भी संबोधित किया था। साहित्‍य जगत के इस महान उपन्‍यासकार के बारे में ये सुनकर आप शायद चौंक जाएंगे कि चुनर में बतौर टीचर इनकी म‍हीने की तनख्‍वाह महज 18 रुपये थी। मुंशी प्रेमचंद को हिंदी के अलावा अंग्रेजी उर्दू और पारसी भाषा में महारथ हासिल थी। इन्‍होंने अपने जीवनकाल में कम से कम दर्जनों उपन्‍यास और करीब 250 लघु कथाएं लिखीं हैं। इनके कुछ प्रसिद्ध उपन्‍यासों में से सेवासदन गबन गोदान रंगमंच और निर्मला प्रमुख्‍ा रहे जिनको बड़ी संख्‍या में लोगों ने पसंद किया। इसके अलावा भी इनकी कई ऐसी रचनाएं हैं जो आज भी साहित्‍य प्रेमियों की जुबान पर हैं। आइए गौर करें इनकी उन लोकप्रिय रचनाओं पर।

नमक का दारोगा
मुंशी प्रेमचंद् की रचना 'नमक का दरोगा', कहानी है समाज की यथार्थ स्थितियों को उद्घाटित करने की। इनकी इस कहानी के नायक मुंशी वंशीधर हैं, जो एक ईमानदार और कर्तव्यपरायण व्यक्ति हैं। वह समाज में ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल कायम करते हैं। वहीं पंडित अलोपीदीन दातागंज के सबसे ज्यादा  अमीर और इज्जतदार व्यक्ति हैं। इनको राजनीति में महारथ हासिल है। अलोपीदीन ने पैसों के बल पर सभी बर्गों के व्यक्तियों को अपना गुलाम बना रखा था। एक बार दरोगा मुंशी वंशीधर उसकी नमक की गाड़ियों को पकड़ लेता है। इसके बाद अलोपीदीन को अदालत में गुनाहगार के रूप में खड़ा किया जाता है। इसके बाद वकील और प्रशासनिक आधिकारी उसे निर्दोष साबित कर देते हैं। अब वंशीधर को नौकरी से बेदखल कर दिया जाता है। इसके बाद पंडित अलोपीदीन, वंशीधर के घर जाकर माफी मांगता है और अपने कारोवार में उन्हें स्थाई मैनेजर बना देता है। दरअसल वह भी उनकी ईमानदारी और कर्त्तव्य निष्ठा के आगे झुक जाता है।
कफन
'कफन' कहानी है बाप-बेटों की। ये बाप-बेटे बेहद गरीब हैं। बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए हैं। अंदर बेटे की जवान बीवी बुधिया प्रसव वेदना से कराह रही है। सर्दी की रात थी। चारों ओर सन्नाटा पसरा था। सारे गांव में घोर अंधेरा था। निसंग भाव से कहता है कि वह बचेगी नहीं। इसपर माधव चिढ़कर जवाब देता है कि मरना है तो जल्दी क्यों नहीं मर जाती। यहां ऐसा लगता है जैसे कहानी की शुरुआत में ही बड़े सांकेतिक ढंग से प्रेमचंद इशारा कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर भाव का अंधकार में लय हो जाना, मानो पूँजीवादी व्यवस्था का ही प्रगाढ़ होता हुआ अंधेरा है, जो सारे मानवीय मूल्यों, सद्भाव और आत्मीयता को रौंदता हुआ निर्मम भाव से बढ़ता जा रहा है। इस औरत ने घर को एक व्यवस्था दी थी। वहीं आज ये दोनों इंतजार में है कि वह मर जाए, तो वे आराम से सोएं। इन दोनों के लिए उस दर्द से कराहती औरत की कीमत उन आलुओं से ज्यादा नहीं है, जो भुने हुए उन दोनों के सामने रखे हैं। दोनों में से कोई उस औरत की हालत देखने अंदर नहीं जा रहा। सिर्फ इसलिए क्योंकि एक अंदर गया, तो दूसरा वो आलू खा जाएगा।

दो बैलों की कथा
मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'दो बैलों की कथा' को लोग बचपन की पाठ्य पुस्तकों में पढ़ चुके हैं। ये कहानी हीरा और मोती नाम के बैलों की कहानी है। ये आपस में बेहद प्रेमपूर्वक रहते हैं। सारे सुख-दुख साथ झेलते हैं। कहानी में झूरी है, जो दोनों का मालिक है। झूरी की पत्नी है, जो हीरा-मोती से प्रेम करती है। कहानी में झूरी का साला गया भी है। वह बेहद क्रूर है। वो हीरा-मोती को अपने घर ले जाता है और उनसे जी तोड़ मेहनत भी लेता है और उनको खाने को भी कुछ नहीं देता। दोनों बैल वहां से भाग निकलते हैं। रास्ते में सांड से उनकी लड़ाई होती है, जिसमें दोनों बैल जीत जाते हैं। तमाम मुश्किलों के बाद वे वापस झूरी तक पहुंचते हैं, जो दोनों को गले से लगा लेता है।
शतरंज के खिलाड़ी
मुंशी प्रेमचंद के 'शतरंज के खिलाड़ी' नाम की कहानी पर 1977 में सत्यजीत राय ने इसी नाम से हिन्दी फिल्म भी बनाई थी। इस कहानी में प्रेमचंद ने वाजिद अली शाह के समय के लखनऊ को चित्रित किया है। भोग-विलास में डूबा यह शहर राजनीतिक-सामाजिक चेतना से शून्य है। पूरा समाज इस भोग-लिप्सा में शामिल हो चुका है। कहानी के प्रमुख पात्र मिरज़ा सज्जाद अली और मीर रौशन अली हैं। दोनों वाजिद अली शाह के जागीरदार हैं। जीवन की बुनियादी जरूरतों के लिए उन्हें कोई चिंता नहीं है। बाद में दोनों एक-दूसरे की तलवार से ही मारे जाते हैं।

बड़े भाई साहब
प्रेमचंद की कहानी 'बड़े भाई साहब' हमारी शिक्षा व्यतवस्थाम और परिवार की सामंती व्येवस्थाओं का विश्लेषण करती है। व्यंग्या़त्मक शैली में लिखी इस कहानी को पाठकों के सामने रखने के लिए प्रेमचंद ने छोटे भाई को चुना है। यह कहानी भी बच्चों के स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल है।
गुल्ली डंडा
मुंशी प्रेमचंद की कहानी गुल्ली डंडा भी सामाजिक पारिवारिक जीवन पर आधारित हैं। इसमें दो भाई केंद्रीय पात्र में हैं। दोनों भाई बचपन में गिल्ली-डंडा खेलते हैं। बाद में एक भाई अफसर बन जाता है, दूसरा मजदूरी करता है। आखिर में दोनों भाई एक बार फिर से गुल्ली-डंडा खेलते हैं। इसमें मजदूर भाई अफसर भाई की गलतियों, चालाकियों को नजरअंदाज करता है। उस समय अफसर भाई को समझ में आता है कि वो पद से भले ही बड़ा हो गया है लेकिन दिल से अभी भी उसका भाई ही उससे बड़ा है।

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Posted By: Ruchi D Sharma