सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया है। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संवैधानिक बेंच ने सर्वसम्मति से एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। निजता का अधिकार आर्टिकल 21 में आता है। निजता का अधिकार जीवन के अधिकार में निहित है। भारतीय संविधान के अनुसार भारत में रहने वाले नागिरकों को जो अधिकार प्राप्‍त है उन्‍हें मौलिक अधिकार कहा जाता है। संविधान के भाग 3 में आर्टिकल 12 से 35 तक मौकिल अधिकारों का उल्‍लेख है।

1- समानता का अधिकार
आर्टिकल 14 से 18 में समानता के अधिकारों का उल्लेख किया गया है।
आर्टिकल 14 में विधि के समक्ष भारत के हर नागरिक को समानता का अधिकार प्रदान किया गया है।
आर्टिकल 15 में धर्म, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव ना करने का अधिकार है।
आर्टिकल 16 में लोक नियोजन के विषय में भारत के नागरिकों को अवसर की समानता का अधिकार दिया गया है।
आर्टिकल 17 में छुआछूत की प्रथा का अंत कर सभी को एक समान होने का अधिकार मिलता है।
आर्टिकल 18 में उपाधियों का अंत कर के सभी को समान होने का अधिकार दिया गया है।

3- शोषण के विरुद्ध अधिकार
आर्टिकल 23 और 24 में शोषण के विरुद्ध अधिकारों का उल्लेख है।
आर्टिकल 23 में मानव और दुर्व्यापार और बलात्श्रम के प्रतिषेध का अधिकार है।
आर्टिकल 24 में कारखानों में 14 वर्ष तक बालकों के नियोजन का प्रतिषेध का अधिकार प्राप्त है।


6- संवैधनिक उपचारों का अधिकार

संविधान में संवैधानिक उपचारों के अधिकार को अर्टिकिल 32 से 35 तक रखा गया है। इसे संविधान का हृदय और आत्मा कहा गया है। इसमें पांच प्रकार के प्रावधान हैं।


बंदी प्रत्यक्षीकरण
- बंदी प्रत्यक्षीकरण द्वारा किसी भी गिरफ़्तार व्यक्ति को न्यायालय के सामने प्रस्तुत किये जाने का आदेश जारी किया जाता है। यदि गिरफ्तारी का तरीका या कारण गैरकानूनी या संतोषजनक न हो तो न्यायालय व्यक्ति को छोड़ने का आदेश जारी कर सकता है।
परमादेश- यह आदेश उन परिस्थितियों में जारी किया जाता है जब न्यायालय को लगता है कि कोई सार्वजनिक पदाधिकारी अपने कानूनी और संवैधानिक कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहा है और इससे किसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहा है।
निषेधाज्ञा- जब कोई निचली अदालत अपने अधिकार क्षेत्र को अतिक्रमित कर किसी मुक़दमें की सुनवाई करती है तो ऊपर की अदालतें उसे ऐसा करने से रोकने के लिए निषेधाज्ञा या प्रतिषेध लेख जारी करती हैं।
अधिकार पृच्छा- जब न्यायालय को लगता है कि कोई व्यक्ति ऐसे पद पर नियुक्त हो गया है जिस पर उसका कोई कानूनी अधिकार नहीं है तब न्यायालय अधिकार पृच्छा आदेश जारी कर व्यक्ति को उस पद पर कार्य करने से रोक देता है।
उत्प्रेषण रिट- जब कोई निचली अदालत या सरकारी अधिकारी बिना अधिकार के कोई कार्य करता है तो न्यायालय उसके समक्ष विचाराधीन मामले को उससे लेकर उत्प्रेषण द्वारा उसे ऊपर की अदालत या सक्षम अधिकारी को हस्तांतरित कर देता है।

 

National News inextlive from India News Desk

Posted By: Prabha Punj Mishra