Sakat Chauth 2021: माघ माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सकट चौथ का व्रत रखा जाता है। संतान की सलामती और खुशहाली के लिए रखा जाने वाला व्रत सकट चाैथ इस बार 31 जनवरी को पड़ रहा है। आइए जानें इसका पौराणिक महत्व पूजा विधि और इसकी कथा...


डाॅ. त्रिलोकीनाथ (ज्योतिषाचार्य और वास्तुविद)। Sakat Chauth 2021 सकट चाैथ को वक्रतुण्डी चतुर्थी, माही चौथ, तिलकुटा चौथ भी कहा जाता है। वैसे सकट चौथ हर महीने में पड़ती है लेकिन माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के सकट चौथ का विशेष महत्व है। ये व्रत इस बार 31 जनवरी दिन रविवार को होगा। इस दिन मातायें अपनी संतान के कल्याण के लिए व्रत रखती है। सुबह विघ्नहर्ता (गणेश जी) की पूजा करती हैं और शाम को चन्द्रमा को अर्घ देकर व्रत खोलती है।पौराणिक महत्व
सकट चाैथ को लेकर पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन भगवान गणेश जी के जीवन में आया सबसे बड़ा संकट टल गया था इसीलिए इस व्रत को सकट चौथ के रुप में मनाया जाता है। मान्यता है कि एक बार मां पार्वती स्नान करने के लिए गयी अपने पुत्र गणेश जी को पहरेदार के रुप में दरवाजे पर खड़ा कर दिया और बताया कि जब तक मैं स्नान करके वापस न आऊं तब तक किसी को अन्दर प्रवेश मत करने देना। उसी समय शिव जी पार्वती जी से मिलने आते है। गणेश जी उन्हें दरवाजे के भीतर न जाने के लिए कहते है। गणेश जी के द्वारा बार-बार शिव जी को मना करने पर शिव जी को क्रोध आ जाता है और अपना त्रिशूल गणेश जी पर चला देते है। इससे गणेश जी की गर्दन कट कर दूर जा गिरती है। शोरगुल सुनकर स्नान के बाद माता पार्वती बाहर आती है तो अपने पुत्र की गर्दन कटी देखकर विलाप करने लगती है। शिव जी से गणेश जी को पुनः जीवित करने का आग्रह करती है। शिव जी हाथी के बच्चे का सिर लगाकर जीवित कर देते है। मां पार्वती जी के जीवन में पुनः खुशी आ जाती है। इसके बाद से महिलायें अपने बच्चों के कल्याण के लिए सकट व्रत रखती है। व्रत का महात्म एवं पूजा विधि


यह व्रत संकट एवं दुखों को हरने वाला माना जाता है। प्राणी मात्र की सभी इच्छायें एवं मनोकामनायें इस व्रत के करने से पूरी हो जाती है। इसी दिन संकट हरण गणेश जी और चन्द्रमा का पूजन किया जाता है। संकट चौथ के दिन महिलायें सुख सौभाग्य एवं कल्याण की इच्छा से व्रत रखती है। पद्मपुराण के अनुसार स्वयं भगवान गणेश जी ने मां पार्वती जी को इस व्रत की विशेषता को बताया था। इस व्रत को घर का कोई सदस्य रख सकता है। इसमें स्त्रियां निर्जल व्रत रखकर शाम को फलाहार लेती है दूसरे दिन सुबह सकट माता पर चढ़ायें गये पूरे पकवानों को प्रसाद के रुप में ग्रहण किया जाता है। कहीं-कहीं पूजा में तिलकुट का पहाड़ बनाया जाता है कहीं-कहीं तिलकुट का बकरा भी बनाया जाता है जिसकी पूजा की जाती है तिलकुट के बने बकरे की गर्दन को घर का कोई बच्चा काटता है।तिलकुट के बने इस बकरे को प्रसाद के रुप में वितरित किया जाता है। पूजा के समय सकट की कथा भी सुनी या सुनाई जाती है। सकट चाैथ की प्रचलित कथा

सकट चाैथ की पूजा में क्षेत्रीय स्तर पर कई अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं। इनमें एक कथा यह भी कही जाती है। एक नगर में एक कुम्हार रहता था। वह बर्तन आवें में पकाता था लेकिन मिट्टी के बर्तन नहीं पक पा रहें थे।राजा से उसने अनुरोध किया कि प्रत्येक घर से क्रमशः एक बच्चे को बलि के रुप में दिया जायें तो मिट्टी के बर्तन आवें में पक जायेगें।राजा ने कुम्हार की बातों को मान लिया।नगर के प्रत्येक घऱ की बारी क्रमशः बलि के लिए आती थी एक दिन एक की बारी आयी बुढ़िया के एक ही बच्चा था उसने सुपारी और दूब का एक वीड़ा बनाकर दिया और आवें में बैठा दिया।विघ्नहर्ता गणेश जी की पूजा करने लगी जिसके प्रभाव से बच्चा अग्नि से सकुशल वापस आ गया और उसके सभी बर्तन भी पकने लगे।यह व्रत कथा भी कुछ-कुछ स्थानों पर सुनाई जाती है।

Posted By: Shweta Mishra