- श्रावण मास में होने वाली ऐतिहासिक यात्रा में शामिल होते हैं लगभग 3 करोड़ श्रद्धालु

Meerut: सावन के पवित्र माह से शुरू हो जाती है कांवड़ यात्रा। उसके साथ ही चारों ओर बम बम भोले की गूंज सुनाई पड़ती है। हर तरफ होता है शिवमय वातावरण। साथ ही भगवान भोले को प्रसन्न करने का विधान प्रारंभ हो जाता है। श्रद्धालु शिवालयों में जाकर जलाभिषेक करते हैं।

कांवड़ यात्रा ने तोड़े रिकॉर्ड

लोग कैलाश मानसरोवर, अमरनाथ, शिवजी के ज्योतिर्लिग (जो विभिन्न राज्यों में स्थित हैं) आदि की यात्रा करते हैं। कांवड़ यात्रा की बात करें तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह किसी मेले से कम नहीं है। अगर बात मेरठ की करें वर्ष 2015 में हरिद्वार से दिल्ली और अन्य राज्यों की ओर जाने वाले कांवडि़यों की संख्या 3 करोड़ से ऊपर पहुंच गई थी।

कुंभ मेले से कम नहीं

उत्तर भारत में विशेष रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश मेरठ में पिछले 20 वर्षो से अधिक समय से कांवड़ यात्रा एक महा आयोजन का रूप ले चुकी है। अपनी श्रद्धा के अनुरूप सर्वप्रथम अपनी साम‌र्थ्य, समय, अपने गंतव्य की दूरी के अनुसार गंगोत्री या हरिद्वार, ऋषिकेश से जल लेने के लिए बस, ट्रेन आदि से भक्त लोग पहुंचते हैं।

कई तरह की कांवड़

कांवड़ ले जाने के पीछे अपना संकल्प है कुछ लोग 'खड़ी कांवड़' का संकल्प लेकर चलते हैं, वो जमीन पर कांवड़ नहीं रखते। पैरों में पड़े छाले, सूजे हुए पैर, केसरिया बाने में सजे कांवडि़यों का अनवरत प्रवाह चलता ही रहता है। अंतिम दो दिन ये यात्रा अखंड चलती है, जिसको डाक कांवड़ कहा जाता है। निरंतर जीप, वैन, मिनी ट्रक, गाडि़यां, स्कूटर्स, बाइक्स आदि पर सवार भक्त अपनी यात्रा अपने घर से गंतव्य स्थान की दूरी के लिए निर्धारित घंटे लेकर चलते हैं।

पौराणिक मान्यता

ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम दिग्विजय (पूरी पृथ्वी को जीतने के बाद) के बाद जब मयराष्ट्र (वर्तमान मेरठ) से होकर निकले तो उन्होंने पुरा में विश्राम किया और वह स्थल उनको अत्यंत मनमोहक लगा। उन्होंने वहां पर शिव मंदिर बनवाने का संकल्प लिया। इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना करने के लिए पत्थर लाने वह हरिद्वार गंगा तट पर पहुंचे। उन्होंने मां गंगा की आराधना की और मंतव्य बताते हुए उनसे एक पत्थर प्रदान करने का अनुरोध किया। यह अनुरोध सुनकर पत्थर रुदन करने लगे। वह देवी गंगा से अलग नहीं होना चाहते थे। तब भगवान परशुराम ने उनसे कहा कि जो पत्थर वह ले जाएंगे, उसका चिरकाल तक गंगा जल से अभिषेक किया जाएगा। हरिद्वार के गंगातट से भगवान परशुराम पत्थर लेकर आए और उसे शिवलिंग के रूप में पुरेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित किया। ऐसी मान्यता है कि जब से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई। इसी मान्यता के कारण शिवभक्त कांवडि़ए तमाम कष्टों को सहते हुए हरिद्वार से गंगाजल लाकर पुरेश्वर महादेव में शिवलिंग पर अर्पित करते हैं।

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मेरठ का नाम इतिहास में दर्ज है। इसको किसी पहचान की जरूरत नहीं है। मेरठ रावण की ससुराल, महाभारत काल व क्रांति धरा के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन यहां की धरोहरों की कोई चिंता नहीं करता है। मेरठ का विश्वस्तरीय पर्यटन स्थल भी बनाया जा सकता है। कही भी खुदाई करा ली जाए तो पौराणिक काल की चीजे आज भी मिल जाएंगी।

-कृष्ण कुमार, व्यापारी

Posted By: Inextlive