इन दिनों राजस्‍थान में जैन कम्‍यूनिटी की संथारा प्रथा को लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट अलग-अलग फैसले देते नजर आ रहे हैं। जहां राजस्‍थान हाईकोर्ट ने इस प्रथा पर रोक लगा दिया था तो वहीं इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट का स्‍टे लग गया। जानें पूरा मामला...

सोमवार को SC का स्टे
जैन समुदाय की पिछले हजारों सालों से चली आ रही संथारा प्रथा आज कोर्ट की चौखट पर खड़ी है। इस प्रथा पर रोक लगाते राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया। दरअसल हाईकोर्ट ने इस प्रथा पर कई सवाल खड़े किए हैं। कोर्ट का कहना है कि संथारा एक तरह से सुसाइड ही है, जोकि क्राइम के अंतर्गत आता है और इसे तुरंत बैन कर देना चाहिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के यह मामला पहुंचते ही कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। गौरतलब है कि जैन कम्यूनिटी के संगठनों ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

9 साल से कोर्ट में है मामला

आपको बताते चलें कि, यह मामला पिछले 9 सालों से कोर्ट में चल रहा है। साल 2006 में निखिल सोनी ने एक पिटीशन दायर की थी। उनका कहना था कि संथारा इच्छा-मृत्यु की तरह ही है। तक हाई कोर्ट ने कहा था कि, संथारा लेने वालों के खिलाफ आईपीसी की धारा 309 यानी सुसाइड का केस चलना चाहिए। संथारा के लिए उकसाने पर धारा 306 के तहत कार्रवाई भी होनी चाहिए। वहीं इस फैसले के आते ही जैन संतों ने विरोध शुरु कर दिया। उनका मानना था कि, कोर्ट में संथारा की सही तरह से व्याख्या नहीं की गई, इसका मतलब आत्महत्या नहीं आत्म स्वतंत्रता है।

जानें क्या है संथारा

दरअसल संथारा जैन समुदायों की हजारों सालों से चली आ रही एक प्रथा है। इसमें जब व्यक्ित को लगता है कि उसकी मृत्यु नजदीक है तो वह खुद को एक कमरे में बंद कर लेता है। और खाना-पीना सब छोड़ देता है, वहीं यह इंसान मौन व्रत भी धारण कर लेता है। इसके बाद धीरे-धीरे एक दिन उसकी मृत्यु हो जाती है। जैन आचार्य मुनि लोकेश का कहना है कि सुसाइड डिप्रेशन जैसी स्िथति में होता है, जबकि संथारा आस्था का विषय है। यह आवेश और क्रोध में किया गया काम नहीं बल्िक सोच-समझकर शांति से लिया गया एक व्रत है।

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Posted By: Abhishek Kumar Tiwari