मनु जोसेफ की किताब सीरियस मैन पर आधारित है फिल्म सीरियस मैन। फिल्म एक बेहतरीन सटायर है। यह जाति वर्ग और वर्ण रंगभेद के आधार पर बंटे समाज पर तंज कसती है। फिल्म का नाम भले ही सीरियस है लेकिन निर्देशक ने बेहद हल्के -फुल्के अंदाज़ में अपनी बात रखी है। कॉमडी करते हुए सटायर कर देना सुधीर मिश्रा इसमें माहिर रहे हैं। फिल्म एक पिता और बेटे के इर्द-गिर्द है। पिता अपने सपने पूरे नहीं कर पाता तो बेटे के माध्यम से अपनी चाहत पूरी करने के लिए किस हद तक जाता है। क्या उसका वह सपना तब भी पूरा होता है। बेटे के बचपन को छीन कर अपनी जिद्द पूरी करना कहां तक सही था। यह सब कुछ जानने के लिए पढ़ें पूरा रिव्यु

फिल्म : सीरियस मैन
कलाकार : नवाजुद्दीन सिद्दीकी, नासर, इंदिरा तिवारी, श्वेता बसु प्रसाद, संजय नार्वेकर
निर्देशक : सुधीर मिश्रा
रेटिंग : 3.5 स्टार
लेखन टीम : भुवनेश मांडालिया
ओटीटी : नेटफ्लिक्स

क्या है कहानी
नवाजुद्दीन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में संस्थान के प्रमुख डॉ. आचार्य (नासेर) के पीए अय्यन मणि के किरदार में हैं। अय्यन (नवाजुद्दीन ) दलित है। जाति के कारण उसके साथ बचपन से लेकर जवानी तक, फिर नौकरी में आने तक कई भेदभाव हुए हैं। अय्यन वह सब भूलता नहीं है। उसे यह मालूम है कि वह रोजी-रोटी तो कमा लेगा, लेकिन शायद ही उसे अच्छी जिंदगी मिले। इसलिए वह तय करता है कि वह अपनी जिंदगी के साथ समझौता नहीं करेगा। लेकिन अफ़सोसजनक बात है कि मोहरा उसका बेटा आदि (अक्षत दास )बन जाता है, वह अपनी महत्वकांक्षा पूरी करने के चक्कर में अपने बेटे के बचपन से समझौता कर लेता है। बेटा आदि जीनियस है। उसको लोग भविष्य का आइंस्टीन समझ बैठे हैंA अपनी जिद के आड़ में अय्यन बेटे के साथ क्या गलत कर जाता है, इसका अहसास उसे होता है या नहीं, यही फिल्म की कहानी है। लेकिन अय्यन और आदि के माध्यम से निर्देशक ने जातिवाद, वर्ण, वर्ड विभाजन पर एक शानदार कटाक्ष किया है। विज्ञान के ब्लैक होल के बहाने से निर्देशक समाज के ब्लैक होल को दर्शाते हैं। अय्यन ने अगर बेटे के साथ गलत किया तो उसका जिम्मेदार वह अकेले नहीं, बल्कि पूरा समाज है। सुधीर मिश्रा की यह फिल्म एक जरूरी फिल्म है। और लगातार ऐसी फिल्में बनती रहनी चाहिए।

क्या है अच्छा
फिल्म का प्लॉट काफी अच्छा है। फिल्म में नवाज ही नैरेटर बने हैं और अपने प्रभावशाली अंदाज़ से उन्होंने प्रभावित किया है। कहानी एक गंभीर विषय पर उठाई गई है. लेकिन प्रस्तुति का अंदाज़ भाषणबाजी नहीं है।फिल्म का क्लाइमेक्स शानदार है। अलग है।

क्या है बुरा
फिल्म की अवधि थोड़ी कम की जा सकती है, कुछ दृश्यों और संवाद को सुनने पर आपको कुछ पुरानी फिल्मों के याद आ सकते हैं। रिपेटेटिव डायलॉग से बचा जा सकता था।

अभिनय
नवाजुद्दीन अपने किरदार में रमते हैं और कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। अक्षत दास और इंदिरा तिवारी ने भी अच्छा काम किया है, श्वेता बासु प्रसाद ने भी शानदार अभिनय किया है।

वर्डिक्ट : वर्ड ऑफ़ माउथ से लोग फिल्म को देखेंगे भी और सराहेंगे भी।

Review By: अनु वर्मा

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari