Sharad Purnima 2019 शरद पूर्णिमा की रात को सबसे उज्जवल चांदनी छिटकती है। चांद की रोशनी में सारा आसमान धुला नजर आता है।


शरद पूर्णिमा की रात ऐसा लगता है मानो बरसात के बाद प्रकृति साफ और मनोहर हो गयी है। इसी धवल चांदनी में मां लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण के लिए आती हैं। शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा की मध्य रात्रि के बाद मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर बैठकर धरती के मनोहर दृश्य का आनंद लेती हैं।  


साथ ही माता यह भी देखती हैं कि कौन भक्त रात में जागकर उनकी भक्ति कर रहा है। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को कोजागरी भी कहा जाता है। कोजागरी का शाब्दिक अर्थ है कौन जाग रहा है। इस रात में जो जगकर मां लक्ष्मी की उपासना करते हैं मां लक्ष्मी की उन पर कृपा होती है। शरद पूर्णिमा के विषय में ज्योतिषीय मत है कि जो इस रात जगकर लक्ष्मी की उपासना करता है उनकी कुंडली में धन योग नहीं भी होने पर माता उन्हें धन-धान्य से संपन्न कर देती हैं। इस वर्ष शरद पूर्णिमा 13 अक्टूबर को पड़ रही है।लक्ष्मी और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है

शरद पूर्णिमा अर्थात कोजागरी व्रत आश्विन शुक्ल मध्य रात्रि व्यापिनी पूर्णिमा में किया जाता है। ज्योतिषीय नियमों के अनुसार इसी दिन चन्द्र अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। कुछ क्षेत्रों में इस व्रत को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है। इस दिन के संदर्भ में एक मान्यता प्रसिद्ध है कि इस दिन भगवान श्री कृ्ष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचाया था। इस दिन चन्द्रमा कि किरणों से अमृत वर्षा होने की मान्यता प्रसिद्ध है। इसी कारण इस दिन खीर बनाकर रात्रि काल में चन्द्र देव के सामने चांदनी में व मां लक्ष्मी को अर्पितकर अगले दिन प्रात: काल में ब्रह्मण को प्रसाद वितरण व फिर स्वयं प्रसाद ग्रहण करने का विधि-विधान है। इस दिन एरावत पर आरूढ़ हुए इन्द्र व महालक्ष्मी का पूजन किया जाता है। इससे अवश्य ही लक्ष्मी और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।शरद पूर्णिमा का महत्व

माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लक्ष्मी पूजन किया जाता है। द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ, तब मां लक्ष्मी राधा रूप में अवतरित हुईं। भगवान श्री कृष्ण और राधा की अद्भुत रासलीला का आरंभ भी शरद पूर्णिमा के दिन ही माना जाता है। शैव भक्तों के लिए शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसी कारण से इसे कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है। पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में इस दिन कुवारी कन्याएं प्रातः स्नान करके सूर्य और चन्द्रमा की पूजा करती हैं। माना जाता है कि इससे योग्य पति प्राप्त होता है।-ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश प्रसाद मिश्र

Posted By: Vandana Sharma