दुनिया की महान महिला वैज्ञानिक मैरी स्क्लाडोवका क्यूरी उर्फ मैरी क्यूरी का जन्‍म 7 नवंबर 1867 को हुआ था। दो अलग-अलग विधाओं में नोबेल पाने का कीर्तिमान बनाने वाली मैरी आज इस दुनिया में न होकर भी अपनी मौजूदगी का अहसास जताती रहती है। अपनी सोच व अपने कार्यो के कारण वह आज भी हर किसी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। ऐसे में आइए इस खास दिन पर जानें दो बार नोबेल पुरस्‍कार विजेता वैज्ञानिक मैरी क्यूरी से जुड़ी ये खास बातें...


पेरिस चली गईं:रशियन मूल की मैरी क्यूरी एक जन्म पोलैंड में हुआ था। शिक्षक माता-पिता के प्यार में भी वह बचपन से ही पढाई लिखाई में तेज थीं। वह सभी प्रारंभिक कक्षाओं में अवल्ल रहीं। हालांकि आर्थिक तंगी की वजह से उन्हें पढने के लिए पेरिस में रहने वाली बहन के पास जाना पड़ा। फ्रांस में डॉक्टरेट: पढ़ाई में अव्वल रही मैरी क्युरी फ्रांस में डॉक्टरेट पूरा करने वाली पहली महिला के रूप में फेमस हुई। इतना ही नहीं उनको पेरिस विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बनने वाली पहली महिला होने का भी गौरव प्राप्त हुआ।पोलोनियम की खोज: मैरी क्यूरी और उनके पति पियरे क्यूरी ने 1898 में पोलोनियम की महत्त्वपूर्ण खोज की। कुछ ही महीने बाद उन्होंने रेडियम की भी खोज की। जो की चिकित्सा विज्ञान और रोगों के उपचार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली साबित हुई।नोबेल पुरस्कार मिला:


1903 मैरी क्यूरी और उनके पति पियरे क्यूरी को रेडियोएक्टिविटी की खोज के लिए भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला है। इस नोबेल पुरस्कार के बाद उनकी आर्थिक स्थिति में थोड़ा परिवर्तन आया।दूसरा नोबेल पुरस्कार:

1911 में एक बार फिर मैरी क्यूरी को नोबेल पुरस्कार मिला। जिसमें उन्हें रसायन विज्ञान के क्षेत्र में रेडियम के शुद्धीकरण (आइसोलेशन ऑफ प्योर रेडियम) के लिए सम्मान मिला था।मोर्चों पर स्वंय गईं: 1914 के विश्व युद्ध में उन्होंने काफी सराहनीय काम किया। पिङित लोगों की सहायता के लिए वह युद्ध के मोर्चों पर स्वंय गईं। इस दौरान वहां उन्होने रेडियम तथा एक्स-रे उपचार के अनेक केन्द्र खोले। इतना ही नहीं घायलों की सक्रिय सेवा हेतु चलता-फिरता अस्पताल खोला था। रेडिएशन का प्रभाव: हमेशा सादा जीवन उच्च विचार और नए शोधों के प्रति उनकी कर्मठशीलता के बीच जीवन जीने वाली मैरी क्यूरी 1934 में इस दुनिया को अलविदा कह गईं। कहा जाता है कि उनके अंदर अतिशय रेडिएशन का प्रभाव हो गया था।

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Posted By: Shweta Mishra