आईएनएस सिंधुरक्षक में शुक्रवार को हुए विस्फोट के बाद सभी का ध्यान समुद्र की गहराइयों में छिपकर शत्रुओं की गतिविधियों पर नज़र रखने वाली पनडुब्बियों और उनमें रहने वाले नौसौनिकों के जीवन की ओर गया है.


नौसैनिकों का जीवन आसान नहीं होता. इनके परिवार वाले बताते हैं कि इनकी ज़िंदगी बड़ी कठिन होती है. जब वो किसी मिशन पर जाते हैं, तो ये मिशन 20 या 30 दिन के लिए होता है और कभी-कभी तो लगातार 45 दिन तक वो काम करते हैं.परिवार वालों को बस इतना पता होगा है कि वो ड्यूटी पर जा रहे हैं. इससे ज्यादा और कोई जानकारी नहीं होती है. परिवार को ये भी पता नहीं होता है कि वो कितने दिन के लिए कहां जा रहे हैं और कब वापस आएँगे.उनके अभियान की जानकारी सिर्फ नौसेना के मुख्यालय को होती है. नौसैनिक अपने परिवार से दूर पानी के भीतर रहते हैं. जब वो पनडुब्बी के भीतर होते हैं तो नहाना तो दूर, दाढ़ी बनाने का मौका भी उन्हें नहीं मिलता है.चुनौतियाँ


कुरसुरा के पनडुब्बी संग्रहालय का एक दृश्य. नौसैनिकों को बिना छौंक लगा सादा खाना दिया जाता है. पनडुब्बी जब भी समुद्र के अंदर जाती है तो उसके साथ डॉक्टर और प्राथमिक चिकित्सा का सामान साथ होता है क्योंकि अगर किसी को उल्टी या चक्कर जैसी परेशानी होती है तो तुरंत इलाज किया जा सके.

पनडुब्बी में सोने के लिए दो कंपार्टमेंट होते हैं. वहां का तापमान गरम होता है, इसलिए कभी-कभी कुछ नौसैनिक वहां भी सोने जाते हैं, जहां मिसाइल और टारपीडो रखे होते हैं क्योंकि ये जगह पनडुब्बी की दूसरी जगहों के मुकाबले सबसे ज्यादा ठंडी होती है.पनडुब्बी के भीतर सूरज की रौशनी नहीं आती है. इसके चलते जब वो समुद्र की सतह पर आती है तो बाहर आते वक्त नौसैनिकों को हाथ-पैर में जकड़न जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है.गहरे समुद्र के भीतर लगातार अभियान पर चलते रहने से उनके कानों पर काफी गहरा असर होता है, इसलिए पनडुब्बी के भीतर सैनिक अपने कानों का खास ख्याल रखते हैं.

Posted By: Satyendra Kumar Singh