कुछ ऐसे सेकेंड डिवीजन स्टूडेंट भी बन गए IAS/IFS
1 . ऊर्जा 1988 बैच के IAS अफसर, प्रमुख सचिव, ICP केशरी अपनी कहानी के बारे में बताते हैं कि 10वीं तक तो उनकी पढ़ाई की ये स्थिति थी कि पासिंग मार्क्स तक लाने इनके लिए मुश्किल होते थे। इसके लिए जरूरत होती थी सिर्फ 40 नंबरों की। गणित में तो सिर्फ 36-37 नंबर ही आते थे। आज बच्चों से ज्यादा इस बात की चिंता पेरेंट्स को होती है। इनका कहना है कि ऐसा होना नहीं चाहिए। इसके बाद इन्होंने मन में सोच लिया मेहनत करने के बारे में। इसके बाद उन्होंने आर्ट्स ले लिया और आज वह प्रमुख सचिव हैं।
2 . बांस मिशन 1986 बैच के आईएफएस अफसर बीबी सिंह बताते हैं कि उन्होंने हाईस्कूल सेकेंड डिवीजन में पास की। एमएससी में थर्ड डिवीजन आए। इसके बाद वे हताश हो गए। इसके बावजूद उम्मींद का दामन नहीं छोड़ा। सीएसआईआर में मेरिट के हिसाब से पीएचडी करने को मिलती थी, लेकिन उस साल कॉम्पटीशन हुए। वह चुने गए और बड़ी बात ये है कि फर्स्ट डिवीजन वाले लोग पीछे रह गए। इसके बाद उनको सिविल सर्विसेज के लिए चुना गया और देखिए आज ये बन चुके हैं अफसर।
3 . बालाघाट 2008 बैच के आईएएस अफसर कलेक्टर भरत यादव अपनी मेहनत और लगन के बारे में बताते हैं कि पांचवी कक्षा तक सरकारी स्कूल में पढ़े। उसके बाद 10वीं तक वह नवोदय में रहे। इसके बाद इन्होंने कई कॉम्पिटीशन एग्जाम भी दिए, लेकिन पास नहीं हो पाए। इसके बावजूद हिम्मत का साथ न छोड़ना इनको रास आ गया। अपनी मेहनत और लगन से जब आईएएस के लिए वह सलेक्ट हुए तो देश में 76 रैंक थी और मप्र में टॉप किया था। कुल मिलाकर इनका कहना है कि जीवन हारने के लिए नहीं है। जीने के लिए है।
5 . राजगढ़ से 2009 बैच के आईएएस अफसर कलेक्टर तरुण पिथौड़ बताते हैं कि जुन्नारदेव में इन्होंने पढ़ाई की। 9वीं कक्षा में सेकेंड डिवीजन से पास हुए। ऑल इंडिया इंजीनियरिंग एग्जाम में फर्स्ट रैंक आई। इसके बावजूद इसके ऑल इंडिया सर्विस एग्जाम में पहली बार में तो फेल हो गए थे। इसके बाद दो बार इंटरव्यू में क्लियर भी नहीं हुए और तीसरी बार में देश में सातवीं रैंक आ गई। ये कोई चमत्कार नहीं, बल्कि मेहनत और लगन का फल है।inextlive Desk from Spark-Bites