- टेंडर व नौकरी दिलवाने के नाम पर ठगी में जालसाज अभिषेक निगम और उसके गैंग ने किया सचिवालय के कमरों का इस्तेमाल

- मंत्री के सचिवों ने भी सचिवालय में बैठकर खेला फर्जीवाड़े का खेल

LUCKNOW

प्रदेश की सबसे सुरक्षित बिल्डिंग विधानसभा सचिवालय में आम आदमी भले न दाखिल न हो सके लेकिन, जालसाजों के लिये इसके दरवाजे समय-समय पर बेरोकटोक खुलते रहे हैं। इन जालसाजों की 'सेटिंग' का आलम यह है कि वे सचिवालय के कमरों को अपने दफ्तर में तबदील कर बड़ी-बड़ी 'डील' को अंजाम दे जाते हैं और इसका पता तब चलता है जब उनका भुक्तभोगी पुलिस के पास मदद मांगने पहुंचता है। दिलचस्प बात यह है कि इनकी इस करतूत में मंत्रियों के निजी सचिव से लेकर बड़े अफसर तक रकम के लालच में इनकी हर करतूत में पूरा सहयोग करते हैं। पशुपालन विभाग में टेंडर के नाम पर 9.72 करोड़ रुपये की ठगी के मामले ने विधानसभा सचिवालय में जालसाजों की धमक को फिर से सामने ला दिया है। इससे पहले कब-कब विधानसभा सचिवालय जालसाजों का मददगार साबित हुआ, पेश है पंकज अवस्थी की स्पेशल रिपोर्ट

करवा दिये नौकरी के इंटरव्यू

वर्ष 2011में बरहा कॉलोनी निवासी उमेश कुमार सिंह ने पुलिस में शिकायत की कि वर्ष 2010 में उसकी मुलाकात सुधीर यादव नाम के शख्स से हुई। उसने खुद को मंत्री का खास बताया और उसे नौकरी लगवाने का झांसा दिया। इसके बाद उसने उसकी मुलाकात जौनपुर निवासी मंशाराम उपाध्याय से करायी। मंशा ने माध्यमिक शिक्षा परिषद में लिपिक की नौकरी का लालच दिया। जिस पर उमेश ने खुद के अलावा पत्‍‌नी प्रीति सिंह, टूंडला निवासी रविंदर, अनुराग व सुनील मिश्र की नियुक्ति के लिये 15 लाख रुपये सौंप दिये। रकम ऐंठने के बाद मंशाराम व सुधीर ने उमेश की मुलाकात सचिवालय के आरसी मिश्र से कराई। आरसी मिश्र तत्कालीन ऊर्जा मंत्री के निजी सचिव थे। उसके बाद सभी अभ्यर्थियों को सचिवालय स्थित माध्यमिक शिक्षा चयन समिति के विज्ञापन द्वारा सहायक लिपिक पद के लिए इंटरव्यू का पत्र मिला। 31 मार्च 2011 को दोपहर 12 बजे उन्हें सचिवालय के गेट नंबर 9 पर बुलाया गया और कमरा नंबर एमएम 951ख में जालसाजों ने सचिवालय में तैनात अपर सचिव जय किशोर द्विवेदी को नियुक्ति अफसर बताते हुए उनका इंटरव्यू कराया। दो माह बाद रविंदर को सरस्वती उमा विद्यालय में नियुक्ति का लेटर पहुंचा। जब वे ज्वाइन करने पहुंचे तो पता चला कि स्कूल तो आठवीं तक है और नियुक्ति पत्र फर्जी है। पुलिस की जांच में पता चला कि रविंदर की ही तरह 42 अन्य लोगों को भी इसी तरह शिकार बनाया गया।

ठेके के नाम पर लगाया चूना

इसी तरह वर्ष 2016 में कोलकाता सीके मार्केट विधान नगर निवासी कौशिक घोष की ओर से पुलिस से की गयी कि उसके दोस्त सुमिताभ सेन गुप्ता ने 2016 में यूपी के बेसिक स्कूलों में बैग के सप्लाई के काम निकलने की जानकारी दी। जिसके बाद परिचित प्रतीमदास के साथ वह 28 दिसंबर 16 को पहली बार लखनऊ आया था। लखनऊ में उसकी मुलाकात शाजी अहमद सिद्दीकी से आईएएस अफसर बताकर कराई गई। ठेका दिलाने का विश्वास दिलाते हुए दूसरी मुलाकात हजरतगंज सिलवेट होटल में कराई गई, जहां राम शुक्ला उर्फ दुर्गेश और अभिषेक निगम से मिलवाया गया.कारोबारी ने बताया कि उसी दिन सचिवालय ले जाकर उसकी मुलाकात लालबत्ती गाड़ी में पहुंचे अभिषेक निगम उसके पिता अजय निगम, फर्जी पीआरओ असद से मुलाकात हुई। मीटिंग में शाजी अहमद ने काम दिलवाने के बदले अभिषेक की फर्म रित नीट इंटरप्राइजेज में रकम जमा करने की बात कहीं। कारोबारी कौशिक ने उसकी फर्म में करीब पचास लाख रित नीट इंटरप्राइजेज में और राम शुक्ला की फर्म श्रीराम इंटरप्राइजेज में आरटीजीएस कर चार लाख रुपये अपनी कंपनी के खाते से जमा किए। अकाउंट में कैश जमा करने के बाद उन लोगों ने कारोबारी की कंपनी के नाम से बेसिक शिक्षा विभाग का फर्जी स्कूल बैग आपूर्ति के आदेश का दस्तावेज कंपनी के पते पर भेज दिया। विश्वास दिलाया कि जल्द काम शुरू होते ही और काम दिलवाएंगे। अभिषेक निगम ने दोबारा 15 लाख रुपये की डिमांड की और पैसे न देने पर काम रुकने की बात कहीं। मोटा पैसा फंसने के चलते कारोबारी ने यह रकम भी राम शुक्ला के जरिए अभिषेक को दी। जब काम नहीं मिला तो कौशिक घोष ने जालसाजों से अपना रुपया मांगा। लेकिन, उन लोगों ने उसे धमकाकर भगा दिया।

टेंडर के नाम पर भी ठगे गए व्यापारी

खुद को एक कैबिनेट मंत्री का पीआरओ बताने वाले जालसाज अभिषेक निगम ने विधानसभा सचिवालय में अपनी पहुंचा का फायदा उठाते हुए दूसरे राज्यों के कई व्यापारियों को चूना लगाया। किसी व्यापारी को उसने साडि़यों की सप्लाई का टेंडर दिलवाने तो किसी को अन्य काम दिलवाने के नाम पर करोड़ों का चूना लगाया। हालांकि, इन सभी कामों में उसने अपने शिकार को विश्वास में लेने के लिये विधानसभा सचिवालय का भरपूर इस्तेमाल किया।

Posted By: Inextlive