टीबी कंट्रोल में हॉस्पीटल खुद बन गया पेशेंट
- पीएमसीएच में सालों बाद भी नहीं बन पाया टीबी कल्चर लैब, गवर्नमेंट की उदासीनता का शिकार हो गया प्रोजेक्ट
PATNA : आज वर्ल्ड टीबी डे है। इस मौके पर कई अवेयरनेस प्रोग्राम हो रहे हैं। लेकिन इग्नोरेंस गवर्नमेंट लेवल पर ही है जिसके कारण बिहार में टीबी कंट्रोल प्रोग्राम बदहाल है। स्टेट कैपिटल पटना के दो प्रमुख हॉस्पीटल पीएमसीएच और एनएमसीएच इसके एग्जांपल हैं। यहां टीबी कल्चर के लिए लैब बनाया जाना था लेकिन आज भी सरकारी अस्पताल टीबी पेशेंट के लिए इन जरूरी सुविधाओं के लिए तरस रहा है। पीएमसीएच के डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि स्थिति निचले पायदान से टॉप पर है। टीबी के पेशेंट की मेडिसीन बीच में छूटे नहीं इसके लिए डायरेक्ट आब्जर्वेशन थेरेपी अपनाई जाती है। इसमें पेशेंट के घर-घर जाकर मेडिसीन दी जाती है, लेकिन बिहार में ऐसी कोई थेरेपी नहीं की जाती। यहां पेशेंट की संख्या के मुताबिक डॉट्स सेंटर भी नहीं है। यही वजह है कि यहां टीबी कंट्रोल फेल है।
यहां क्यों नहीं होता टीबी कंट्रोल -ट्रीटमेंट और सुपरविजन कमजोर है -हेल्थ सेक्टर के अधिकारियों की उदासीनता -लोगों में अवेयरनेस की कमी -पेशेंट के मुताबिक डॉट्स सेंटर की कमी हाल पटना के हॉस्पीटल काख्00म् में पीएमसीएस और एनएमसीएच में टीबी कल्चर लैब बनना था लेकिन सरकारी उदासीनता का शिकार हो गया। पीएमसीएच में डॉट्स के दो हजार से अधिक पेशेंट हैं। वहीं अगमकुंआ स्थित टीबीडीसी में टीबी कल्चर नहीं होता है।