तुर्की में हुए ताजा तख्‍ता पलट के प्रयास में करीब 100 लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों के घायल होने की खबर आ रही है। फिल्‍हाल सेना और सरकार दोनों ओर से सत्‍ता पर काबिज होने के दावे हो रहे हें और स्‍पष्‍ट नहीं है कि सरकार की बागडोर किसके हाथ में रहेगी। इस बीच आपको बता दें कि ये पहला मौका नहीं है जब सेना ने राजनीतिक सरकार को सत्‍ता से बेदखल करने का प्रयास किया है। पिछले कुछ वक्‍त में ऐसे कई प्रयास हुए और चार मौके ऐसे थे जब सेना कामयाब भी हो गयी।

धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सत्ता परिर्वतन
तुर्की में सैन्य तख्तापलट की खबरों के बीच जहां सेना का कहना है कि सत्ता पर उनका कब्जा है, वहीं, सरकार का दावा है कि सैन्य तख्तातलट की कोशिश नाकाम कर दी गई है और प्रधानमंत्री बिनअली यिलदरिम ने इसका सर्मथन करते हुए राष्ट्रपति एर्दोग़ान की जनता से सड़कों पर उतर कर सरकार में निष्ठा प्रकट करने की अपील को सही ठहराया है। तुर्की में धर्मनिर्पेक्षता के लिए खतरा बन चुके होने के नाम पर पहले भी कई बार सरकारों को सत्ता से बेदखल करने का प्रयास किया गया है। सेना तुर्की गणराज्य के संस्थापक और सेना के पूर्व अधिकारी मुस्तफा कमाल अतातुर्क की इच्छाओं का सम्मान बनाये रखने के दावे का नाम लेकर ऐसा करती रही है। ऐसे चार प्रयास सफल भी हो चुके हैं।

पहला सफल प्रयास
27 मई 1960 में तुर्की में तख्तापलट जब सत्ताधारी दल ने अतातुर्क द्वारा बनाए गए सख्त कानूनों में ढील देते हुए लोगों को उनकी आस्था के हिसाब से धार्मिक गतिविधियों के पालन की खुली इजाजत दे दी। इसके तहत जनता को मस्जिदों में प्रवेश करने और अरबी में प्रार्थना करने की छूट मिल गयी। तब सेना ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और सैन्य प्रमुख कमाल गुर्शेल ने कहा कि वे देश में लोकतंत्र और उसके मूल्यों को मजबूती से स्थापित करके लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को सत्ता वापस सौंप देंगे। इसके बाद गुर्शेल 1966 यानि छह साल तक राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पद पर बने रहे।

दूसरा प्रयास
12 मार्च 1971 में भले ही सेना ने औपचारिक रूप से सत्ता ना संभाली हो पर मिलिटरी जनरल ममदुल तगमाक ने ततकालीन प्रधानमंत्री सुलेमान दिमेरल को अल्टीमेटम देते हुए सीधे निर्देश देने शुरू कर दिये थे। ये तरीका मैमोरेंडम ऑफ क्रू कहलाया जिसके बाद प्रधानमंत्री दिमेरल ने इस्तीफा दे दिया। सेना भले ही सतता में नहीं आयी पर 1973 तक सरकारें बदलती रहीं और सेना ने उनके कामकाज पर नजर और नियंत्रण बनाये रखा।

तीसरा अवसर
आखिर 27 फरवरी 1997 को सेना ने एक बार फिर सत्ता अपने हाथ में ले ली। इस समय सुलेमान दिमिरल राष्ट्रपति थे और उन्हें एक बार फिर इस्तीफा देना पड़ा। सेना का वही पुराना तर्क इस बार भी दिया गया कि राजनीतिज्ञ इस्लाम के नियमों का कड़ाई से पालन नहीं कर रहे। सेना के जनरल इस्माइल हक्कल करादेल ने सरकार के प्रमुख नेकमेट्टिन एर्बाकन को कुछ निर्देश दिए। सेना के नियंत्रण वाली एक अंतरिम सरकार बनाई गई। आखिरकार 1998 में तत्कालीन वेल्फेयर पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया गया।

चौथा कब्जा
इस सब के बावजूद तुर्की में सामाजिक और राजनीतिक स्थिति सामान्य नहीं हुई। जिसके चलते 1979 के अंत तक कुछ वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने तख्तापलट का निर्णय लेते हुए मार्च में इसका एलान करने का फैसला किया पर कुछ कारणों से ये टल गया और 12 सितंबर, 1980 को टीवी पर इसकी घोषणा करते हुए देश में मार्शला लॉ लगा दिया गया। सेना ने पुराना संविधान हटा कर नया लागू किया। जिसे 1982 में रेफरेंडम के लिए जनता के बीच भेजने पर 92 प्रतिशत लोगों ने समर्थन दिया। नए संविधान के लागू होने के बाद चुनाव हुआ और तख्तापलट का नेतृत्व कर रहे जनरल केनन एवरेन को सत्ता मिली जो अगले सात सालों तक पद पर बने रहे।

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Posted By: Molly Seth