90 के दशक के सिनेमा और आज की फिल्‍मों में जमीन-आसमान का अंतर है। पुरानी फिल्‍मों में हमें जो संस्‍कार देखने को मिला आज शायद उसे ढूंढना पड़ जाए। इसी मुद्दे पर एक पैरोडी सॉन्‍ग तैयार किया गया है जिसमें आप देख पाएंगे कि फिल्‍मों में महिलाओं के संस्‍कार में कितना आया अंतर....


90 के दशक में ऐसा कुछ सीखा90 के दशक में हिंदी फिल्मों ने हमें काफी कुछ सिखाया। उस दौर में बचपन इतना मासूम था कि हमें किस और सेक्स के बारे में कुछ नहीं पता होता था। इसकी वजह हैं उस दौर की वो फिल्में जिसमें इंटीमेट सीन आने पर दो फूलों को आपस में मिला दिया जाता था। और हम बच्चे बस इसी में खुश हो जाते थे। आज भले ही क्लीवेज शो एक फैशन माना जाता हो लेकिन तब मिनी स्कर्ट पहनना ही एक्ट्रेस के लिए काफी बड़ी बात होती थी।अब ऐसी है कुछ रियल्टी
कहते हैं न कि समय के साथ कई चीजें बदल जाती हैं। जहां हमारा बचपन पेड़ के अगल-बगल झूलते एक्टर्स के रोमांस देखने में बीत गया। तो वहीं अब बिना बेडरूम सीन के कोई मूवी नहीं बनती। यानी कि बचपन में जो कुछ भी संस्कार सीखा, वो आज के समय तो कतई मायने नहीं रखता। इसकी वजह है बॉलीवुड का प्रभाव जो हमारे और आपके ऊपर पड़ता है। इसी को लेकर 'शुद्ध देशी गाने' टीम ने एक पैरोडी वीडियो तैयार किया है जिसमें देखने को मिलेगी आज की सिनेमा की हकीकत...

 

 

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari