अब से कुछ ही समय के बाद हम इस मौसम के श्रेष्ठ और रंगीन उल्कापात - पेर्सेइड मेटेओर शावर का आनंद लेने जा रहे हैं। खगोल वैज्ञानिक गणनाओं के आधार पर 11-12 अगस्त 2017 और 12-13 अगस्त 2017 की मध्यरात्रि से भोर के झुटपुटे तक पेर्सेइड उल्कापात के विहंगम दृश्य का अवलोकन किया जा सकता है।

आसमानी आतिशबाज़ी की यह घटना 12-13 अगस्त की मध्यरात्रि से भोर तक अपने चरम पर होगी। उल्कापात एक खगोलीय घटना है जिसमें रात्रि आकाश में कई उल्काएं एक बिंदु से निकलती नज़र आती हैं।


पृथ्वी की सतह से...
ये उल्काएं या मेटिअरॉइट (सामान्य भाषा में टूटते तारे) धूमकेतु या पुच्छल तारों के पीछे घिसटते धूल के कण, पत्थर आदि होते हैं जो पृथ्वी के वातावरण में बहुत तीव्र गति से प्रवेश करते हैं और हमें आसमानी आतिशबाज़ी का नज़ारा दिखाई देता है।

अधिकांश उल्काएँ आकार में धूल के कण से भी छोटी होती हैं जो विघटित हो जाती हैं और सामान्यतः पृथ्वी की सतह से नहीं टकरातीं।

यदि उल्कापात के दौरान उल्काओं का कुछ अंश वायुमंडल में जलने से बच जाता है और पृथ्वी तक पहुँचता है तो उसे उल्कापिंड या मेटिअरॉइट कहते हैं।

हर वर्ष 17 जुलाई से 24 अगस्त के दौरान हमारी पृथ्वी स्विफ़्ट टटल धूमकेतु के पास से गुज़रती है।

 

अंडाकार कक्षा में परिक्रमा
रोशनी वाले स्थान से दूर रात्रि आकाश में सैंकड़ों उल्काएँ नज़र आती हैं जो पेर्सेइड उल्कापात को यादगार बना देती हैं।

स्विफ़्ट टटल धूमकेतु एक विकेन्द्री (अव्यवस्थित केन्द्रक के साथ) अंडाकार कक्षा में परिक्रमा करता है जो लगभग 26 किलोमीटर चौड़ी होती है।

जब यह सूर्य से अधिकतम दूरी पर होता है तो यह प्लूटो की कक्षा के बाहर होता है और जब सूर्य के बहुत नज़दीक होता है तो पृथ्वी की कक्षा के अन्दर होता है।

यह 133 वर्षों में सूर्य की परिक्रमा करता है।

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गुरुत्वाकर्षण प्रभाव
स्विफ़्ट टटल धूमकेतु हर समय सूर्य की परिक्रमा करता है। इसके परिक्रमा पथ में धूमकेतु के पीछे घिसटते धूल के कण, पत्थर आदि का मलबा ही उल्का प्रवाह या मेटिअर स्ट्रीम कहलाता है।

समय के साथ विशाल ग्रहों, खासकर ब्रहस्पति ग्रह के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण इन धूल कणों के परिक्रमा पथ में कुछ बदलाव आ जाता है। इसी कारण से पृथ्वी से इसकी दूरी बदलती रहती है।

यदि इन परिवर्तनों से धूमकेतु के धूलकणों का परिक्रमा पथ पृथ्वी के निकट आ जाता है तो पेर्सेइड उल्कापात का नज़ारा सामान्य से कहीं अधिक विहंगम हो जाता है।

वर्ष 2016 में ब्रहस्पति के प्रभाव के चलते पेर्सेइड उल्का प्रवाह की दर लगभग दोगुनी हो गई थी।

इन खगोलीय गणनाओं के आधार पर ही उल्का प्रवाह के चरम स्तर के दिन व समय का पूर्वानुमान लगाया जाता है।

 

चंद्रमा की चमक
इस दौरान चन्द्रमा चमकदार और उभरा हुआ दिखाई देगा यानी पेर्सेइड उल्कापात का नज़ारा कुछ कमज़ोर पड़ जाएगा, जैसा कि नासा के उल्का विशेषज्ञ बिल कूक का कहना है।

खगोलविद उम्मीद जता रहे हैं कि पेर्सेइड उल्कापात की चमक चन्द्रमा की रोशनी से अधिक नहीं दबेगी और फिर देखने वालों का उत्साह इसकी चमक को बरकरार रखेगा।

पेर्सेइड उल्कापात की समाप्ति पर और सुबह के झुटपुटे पर पूर्व की ओर चमकीला ग्रह शुक्र देखा जा सकता है, जो कि सूर्य और चन्द्रमा के बाद तीसरा सबसे चमकदार ग्रह है।

तो आइये पेर्सेइड उल्कापात की दुर्लभ घटना का गवाह बनने की तैयारी करें। (लेखक भारत सरकार के साइंस फ़िल्म्स डिविज़न के प्रमुख एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं।

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Posted By: Chandramohan Mishra