तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता और राज्य के राजनीतिक दलों के हमलों के शिकार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यूजीसी ने अपना वह विवादित सर्कुलर वापस लेने का फैसला किया है जिसमें विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया गया था कि वे स्नातक पाठ्यक्रमों में हिंदी को एक प्राथमिक भाषा के तौर पर पढ़ाएं. इसको देखते हुए अब यूजीसी ने एक सर्कुलर जारी करने का फैसला किया है जिसमें कहा जाएगा कि हिंदी अनिवार्य नहीं है. पढ़ाई का विषय तय करना संबंधित विश्वविद्यालय के विशेषाधिकार पर निर्भर करेगा.

नए सिरे से जारी होगा सर्कुलर
यूजीसी के अध्यक्ष वेद प्रकाश ने कहा कि यूजीसी इस मुद्दे पर नए सिरे से एक सर्कुलर जारी करेगा. प्रकाश ने यह बात जयललिता की ओर से हिंदी थोपे जाने का विरोध करते हुए कड़ा बयान जारी करने के घंटों बाद कही. जयललिता ने यह भी कहा था कि यूजीसी का निर्देश राज्य पर ‘बाध्यकारी’ नहीं है.
असावधानी के कारण लिखा गया
प्रकाश ने कहा कि पिछले सर्कुलर में असावधानी से यह लिख दिया गया था कि अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी भी प्राथमिक भाषा के तौर पर पढ़ाई जाए. इसको देखते हुए यूजीसी ने एक सर्कुलर जारी करने का फैसला किया है, जिसमें कहा जाएगा कि हिंदी अनिवार्य नहीं है. यह निर्णय करना संबंधित विश्वविद्यालय का विशेषाधिकार है कि कैसे पढ़ाना है, किसे पढ़ाना है और क्या पढ़ाना है.
राजनीतिक पार्टियों ने बनाया विरोध का मुद्दा
इस हफ्ते की शुरुआत में जारी सर्कुलर को तमिलनाडु की राजनीतिक पार्टियों ने विरोध का मुद्दा बना लिया था. जयललिता की अन्नाद्रमुक के साथ-साथ द्रमुक, एमडीएमके और पीएमके ने कहा कि वे तमिलनाडु पर हिंदी भाषा ‘थोपने’ की सभी कोशिशों का विरोध करेंगे. वहीं अपने बयान में जयललिता ने कहा कि सर्कुलर हिंदी थोपे जाने की तरह है और इसकी शुरूआत पिछली सरकार के दौरान हुई थी.

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Posted By: Ruchi D Sharma