ब्रज के पुराने वनों की रौनक फिर से लौटेगी. चिडिय़ों की चहचहाट से लेकर तितलियों के फूल व फलों से रस लेने की बारी फिर से आएगी. अब आगरा की बायोडायवर्सिटी को वापस लाने का रास्ता खुल गया है. ब्रज क्षेत्र की बायोडायवर्सिटी को खत्म करने वाले विलायती बबूल को हटाकर जंगलों का ईको रेस्टोरेशन किया जाएगा. मथुरा में सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए मंजूरी दे दी है. अब आगरा में भी नए वानिकी वर्ष में जंगलों के रेस्टोरेशन को जोड़ा जाएगा.

आगरा(ब्यूरो)। बुधवार को आगरा के पर्यावरण प्रेमी वरिष्ठ अधिवक्ता केसी जैन, सत्यमेव जयते ट्रस्ट के मुकेश जैन और पर्यावरणविद डॉ। मुकुल पांडया ने आगरा डीएफओ (सोशल फोरेस्ट्री) आदर्श कुमार से आगरा के वनों के ईको रेस्टोरेशन को लेकर चर्चा की। इसमें डीएफओ ने कहा कि आगरा के वन क्षेत्र लगभग 18 हजार हेक्टेयर में हैं, जिसमें से 60-70 परसेंट यानि लगभग 12 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र में विलायती बबूल है जिसको एक साथ हटाकर देसी प्रजातियों के वृक्षों को लगाया जाना संभव नहीं है।

विलायती बबूल हटाकर होगा ईको रेस्टोरेशन

यह कार्य चरणबद्ध ढंग से ही हो सकता है। मथुरा में भी केवल 490 हेक्टेयर में 37 स्थानों पर विलायती बबूल को हटाकर ईको रेस्टोरेशन का कार्य तीन फेज में किया जाना है। प्रति हेक्टेयर लगभग बीस लाख रूपए का खर्चा आएगा और मथुरा में लगभग 100 करोड़ रूपए की लागत से ईको रेस्टोरेशन का कार्य होना है।

एक अक्टूबर से होगा लागू
डीएफओ ने कहा कि वन विभाग द्वारा बनाये जाने वाले 10 वर्षीय वर्किंग प्लॉन में विलायती बबूल को हटाकर देसी प्रजातियों के पेड़ों को लगाए जाने का प्रस्ताव सम्मिलित किया जायेगा और यह वर्किंग प्लान 01 अक्टूबर 2024 से नए वानिकी वर्ष के साथ लागू होगा। विलायती बबूल को हटाने का कार्य पहले चरणों में कैलाश मंदिर के पास लगभग 400 एकड़ क्षेत्र में, ककरेठा के जंगलों में लगभग 700 एकड़ में, ताज नेचर वॉक के 150 एकड़ क्षेत्र में, नगर वन के 50 हेक्टेयर क्षेत्र ईको रेस्टोरेशन के लिए विचार करके वर्किंग प्लान में शामिल किया जाएगा। जिस किसी वन क्षेत्र में देसी प्रजाति के पेड़ लगाये जाएंगे वहां उनकी घेराबंदी और सिंचाई की व्यवस्था करनी होगी और समय-समय पर उनकी प्रगति को लेकर रिव्यू करना होगा। विलायती बबूल को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से भी अनुमति लेनी होगी।

कम पानी की आवश्यकता वाले पौधे लगाएं
अधिवक्ता केसी जैन ने बताया कि देसी प्रजाति के उन पेड़ों को लगाया जाए, जिनको पानी की आवश्यकता कम पड़ती है और जिनकी मृत्यु दर कम है। इस प्रकार की प्रजातियों में कृष्ण भगवान का प्रिय कदंब, राधा जी का प्रिय वृक्ष तमाल के अतिरिक्त सहजन और शहतूत के लगाये जाने चाहिए। डॉ। मुकुल पांडया ने हिंगोट, पलास आदि प्रजातियों को लगाने का सुझाव दिया गया। मुकेश जैन द्वारा प्रकृति की अपेक्षाओं को पूर्ण करने की बात रखी।

बंदरों को पड़ गई है बस्ती की आदत
डीएफओ ने बताया कि वनों में कार्य वन विभाग ही कर सकता है। यदि कोई सीएसआर फंडिंग करना चाहता है तो इसका स्वागत है। बंदरों की समस्या पर प्रकाश डालते हुए डीएफओ ने बताया कि बंदरों को खाना देने के कारण उनकी आदतों में बदलाव आ चुका है और उन्हें जंगलों तक ले जाना एक कठिन कार्य होगा। जो बंदर जंगलों में रहते थे अब बस्तियों में रहने के आदी हो गये हैं।

चिडिय़ों के लिए भी अनुकूल नहीं

केसी जैन ने बताया कि विलायती बबूल में कांटे होने के कारण न तो उसमें चिडिय़ा घोंसला बना पाती हैैं और न ही वह उनकी टहनियों पर बैठ पाती हैैं। ऐसे में जहां पर विलायती बबूल हैैं वहां पर चिडिय़ों व तितलियों का आना बंद हो जाता है। बंदर समेत पेड़ों पर उछल-कूद करने वाले जानवर भी इनसे दूरी बनाने लगते हैैं।

उसर जमीन पर लगाया गया था विलायती बबूल
केसी जैन ने बताया कि विलायती बबूल विलायती बबूल ऐसी जमीन पर भी लग जाता है जहां पर कोई पौधा नहीं होता है। इसे 1857 के बाद में विभिन्न चरणों में लगाया गया था। इसका बीज लैटिन अमेरिका से लाया गया था। आजादी के बाद भी इसे उसर जमीन पर हेलिकॉप्टर से डाला गया। तब यह उसर जमीन पर तो लगा ही धीरे-धीरे सभी जगहों पर फैल गया। उन्होंने बताया कि यह पानी को सोख लेता है। इसके नजदीक जो पौधे या पेड़ आए वह भी सर्वाइव नहीं कर पाए। यह बायोडायवर्सिटी के लिए ठीक नहीं है।
नए वानिकी वर्ष के वर्किंग प्लान में ईको रेस्टोरेशन को लागू किया जाएगा। दस वर्षीय प्लान को एक अक्टूबर 2024 से शुरू करने की योजना बनाई जाएगी।
- आदर्श कुमार, डीएफओ

विलायती बबूल बायोडायवर्सिटी को खत्म करता है। मथुरा के फैसले से आगरा में भी ईको रेस्टोरेशन का रास्ता खुला है। ईको रेस्टोरेशन से आगरा में विभिन्न प्रकार के पौधे लगाए जा सकेंगे।
- केसी जैन, वरिष्ठ अधिवक्ता

विलायती बबूल को जानें
यह उसर जमीन को हरा करने के लिए लगाया जाता है.
यह तेजी से फैल जाता है।
इसका बीच भारत में लैटिन अमेरिका से लाया गया था.
यह पानी को सोखता है
जहां लग जाता है वहां कोई और वृक्ष नहीं लग पाता है
चिडिय़ों और तितलियों को आकर्षित नहीं करा पाता है
बायोडायवर्सिटी के लिए ठीक नहीं है.

18 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र है आगरा में
12 हेक्टेयर वन क्षेत्र में फैला हुआ है विलायती बबूल
20 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर का आएगा खर्चा
पहले चरण में यहां होगा ईको रेस्टोरेशन
400 एकड़ क्षेत्र में कैलाश मंदिर के पास
700 एकड़ ककरेठा के जंगल में
150 एकड़ ताज नेचर वॉक में
50 हेक्टेयर नगर वन में

Posted By: Inextlive