आगरा. डेंगू का कहर कम होने का नाम नहीं ले रहा है. जिनको डेंगू हो चुका है उनको दोबारा डेंगू अपनी चपेट में ले रहा है. वह भी अपनी पूरी फॉर्म में. डेंगू ने अपना शिकार बच्चों को बनाना शुरू किया है. इस बार यह डिजीज 5 से 10 ईयर्स के एज वाले बच्चों को ज्यादा हो रहा है. पीडियाट्रिशियंस के पास ऐसे बच्चों की लाइन लगी हुई हैैं. बच्चे बहुत ही सीरियस कंडीशन में डॉक्टर्स के पास आ रहे हैैं. उनकी कंडीशन ऐसी होती है कि उन्हें तुरंत एडमिट करना पड़ता है.


एक सीजन में दो बार डेंगूएक सीजन में बच्चों को दो बार डेंगू हो रहा है। ऐसे कई केसेज डॉक्टर्स  के पास पहुंचे हैैं। बिचपुरी की 10 साल की रेनू, बोदला का आठ साल का मनोज, नाई की मंडी का सात साल का शौकत, सेक्टर दस का छह साल का अभिमन्यु ऐसे कुछ बच्चे हैैं, जिन्हें इस सीजन में ही दो बार डेंगू हो गया है।टाइप टू के लिए तैयार नहीं
डेंगू चार तरह का होता है। टाइप वन तो लोगों को अपनी चपेट में पहले ही ले चुका था। इसके लिए सभी के शरीर में एंटीबॉडीज भी डवलप हो गईं लेकिन उसके तुरंत बाद डेंगू के टाइप टू ने लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया। इसके लिए अभी बॉडीज तैयार नहीं थीं। एंटी बॉडीज भी डवलप नहीं हो पाईं। यह ज्यादा क्रिटिकल है। सेकेंड्री स्टेज हमेशा ज्यादा खतरनाक होती है। इसमें रिएक्शन भी ज्यादा होता है। इंफेक्शन पर इंफेक्शन होने पर कंडीशन सीरियस होना लाजिमी है।फैमिली में सभी बच्चे हो रहे बीमार


डॉक्टर्स  के सामने ऐसे भी कई केसेज आ रहे हैैं, जिसमें एक ही फैमिली के सभी बच्चे एक साथ बीमार हैैं। इस बारे में डा। अरूण जैन का कहना है कि फैमिली में बच्चे एक ही सिचुएशन में रहते हैैं। एक साथ रहते हैैं एक साथ सोते हैैं एक साथ खेलते हैैं। एक ही मच्छर जब एक बच्चे को काटता है तो दूसरे बच्चों को भी काट कर उन्हें इंफेक्शन दे देता है। इसीलिए एक बार में सभी बच्चे बीमार हो जाते हैैं।जंबो पैक की जरूरत नहींप्लेटलेट्स कम होते ही सभी परेशान हो जाते हैैं। हर डॉक्टर यह कहता है कि जब तक ब्लीडिंग ना हो, तब तक जंबो पैक की जरूरत नहीं है। प्लेटलेट्स 10,000 रह जाएं और ब्लीडिंग शुरू हो जाएं तो एलर्ट होने की जरूरत है। ऐसी स्थिति में पेशेंट को जंबो पैक चढ़ाना पड़ता है। लेकिन अगर सिर्फ प्लेटलेट्स ही कम हो तो जंबो पैक की जरूरत नहीं है.कंडीशन ज्यादा खराब हो रही हो तो एफएफपी(फ्रेश फ्रोजन प्लाज्मा) चढ़ा सकते हैैं। नाइन डेज तक रहता है असर

इस बीमारी में फोर टू फाइव डेज तक फीवर रहता है.फीवर उतरने के बाद 48 घंटे बहुत ज्यादा प्रीकॉशन के होते हैैं। इन 48 घंटों में ब्लीडिंग की सबसे ज्यादा संभावना होती है। अगर इस समय ब्लीडिंग नहीं हुई तो फिर ब्लीडिंग नहीं होगी। उसके बाद अपने-आप प्लेटलेट्स बढऩे शुरू हो जाते हंै। इससे पहले अगर किसी पेशेंट को प्लेटलेट चढ़ाए भी जाएं तो उसके प्लेटलेट छह घंटे बाद ही नीचे चले जाएंगे। डा। रविंद्र भदौरिया, पीडियाट्रिक्सपेशेंट के घरवालों को समझाना बहुत मुश्किल होता है। उनके लिए डेंगू का इलाज सिर्फ जंबो पैक है। जबकि इसकी जरूरत सबसे अंत में पड़ती है। लोग आज भी अवेयर नहीं हैैं। लोगों को अवेयर करने सबसे ज्यादा जरूरत है- हर बीमारी एक बार होने के बाद दूसरी बार खतरनाक हो जाती है। यही डेंगू के साथ भी हो रहा है। इस समय जो केसेज हमारे सामने आ रहे हैैं, उनके लिए बच्चों की बॉडीज या किसी बड़े की बॉडी भी तैयार नहीं है। यह समय काफी मुश्किल भरा है, लेकिन इसे भी दूर किया जा सकता है.

Posted By: Inextlive