स्कूली बच्चों की सुरक्षा को लेकर कोई भी गंभीर नहीं है. बच्चों को स्कूल लाने और ले जाने वाले अधिकतर वाहन चालक गाइडलाइन की अनदेखी कर रहे हैं. इसके बाद भी निजी स्कूल परिवहन विभाग ट्रैफिक पुलिस उन पर कोई कार्रवाई नहीं करती है. फायदे का धंधा होने से ऑटो में स्कूली बच्चों को बैठाया जा रहा है. इसके अलावा बच्चों की जान जोखिम में डालकर क्षमता से अधिक बच्चे बैठकर वैन और ऑटो संचालकों द्वारा मुनाफा कमाया जा रहा है. हाल ही में छह लोगों की मौत के बाद भी सबक नहीं लिया जा रहा है. वाहन चालक बेखौफ शहर में दौड़ रहे हैं.

आगरा(ब्यूरो)। एमजी रोड और हाइवे स्थित शहर के बड़े स्कूल के सामने छुट्टी के समय सैकड़ों बच्चे रोड पर खड़े हो जाते हैं,जो वाहनों तक पहुंचने के लिए यहां से वहां दौड़ लगाते देखे जाते हैं। नेशनल हाइवे-19 पर भागते तेज रफ्तार वाहनों से उनकी जान को खतरा बना रहता है। साथी प्रतिबंधित वाहनों में बच्चों को बैठकर उनके घर तक छोडऩे का काम किया जाता है। ऐसे में क्षमता से अधिक बच्चों को ऑटो में ठूंस-ठूंसकर बैठाया जाता है।

क्षमता 4 की जगह बैठाते हैं 10 बच्चे
शहर में करीब 175 सीबीएसई और 13 आईसीएसई निजी स्कूल हैं। इनमें 20 हजार से अधिक बच्चे पढ़ते हैं। इनमें से करीब 10 हजार से अधिक बच्चों को स्कूल ले जाने और छोडऩे का काम ऑटो और वैन द्वारा किया जाता है। कम ही बच्चे स्कूल बसों से स्कूल जाते हैं। तीन सवारी की क्षमता वाले ऑटो में 10 बच्चे बैठाए जाते हैं और इतने ही उनके स्कूल बैग रखे जाते हैं। यही हाल स्कूल वैन का होता है। इसमें 18 से 20 बच्चे और स्कूल बैग रखने की व्यवस्था की जाती है।

पेरेंट्स को भी नहीं अपने बच्चों की फिक्र
ऑटो वाले अपनी कमाई के लिए स्कूली बच्चों की सुरक्षा दांव पर लगा देते हैं। एक ऑटो में बच्चों को ठूंस-ठूंसकर बैठाते हैं। बच्चे ऑटो में लटकते रहते हैं, वहीं ड्राइवर अपनी सीट पर भी दोनों ओर बैठाकर चलते हैं। इस बात से बच्चों के पेरेंट्स भी बेखबर नहीं हैं। वह सबकूछ देखने के बाद भी बच्चों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। क्योंकि चालक ही बच्चों के घर जाकर पेरेंट्स की मौजूदगी में बच्चों को बैठाकर स्कूल लाने और छोडऩे का काम करते हैं।

ट्रैफिक पुलिस- ट्रैफिक पुलिस के टीआई आनंद ओझा के अनुसार स्कूल वाहन संचालकों को सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन करना चाहिए। उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी.

सीबीएसई कॉर्डिनेटर- रामानंद चौहान के अनुसार चालक ही बच्चों को ऑटो और वैन से भेजते हैं, उन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता। पेरेट्स को ध्यान देना होगा।

पेरेंट्स- राजेश के मुताबिक ऑटो वाले बच्चों को ठूंस-ठूंस कर भरते हैं, इसलिए मैं खुद ही बाइक से बच्चे को स्कूल छोड़कर आता हूं.

ऑटो चालक-ऑटो चालक पुल्लन सिंह के मुताबिक स्कूली बच्चों के पालक उन्हें कम पैसे देते हैं। अगर, वे वे नियमों के मुताबिक चार बच्चे बैठाकर ले जाएंगे तो उनका डीजल खर्च भी नहीं निकलेगा.

बिना परमिट के दौड़ रहे ऑटो
शहर में सबसे अधिक बच्चे स्कूल तक का सफर ऑटो और वैन से तय करते हैं। शहर में 630 से अधिक ऑटो चलते हैं। इनमें से मात्र 75 ऑटो को ही जिला परिवहन विभाग से परमिट मिला हुआ है, जबकि अधिकतर ऑटो बिना परमिट के ही चलाए जा रहे हैं। ऐसे में बच्चों की सुरक्षा को लेकर एक बड़ा सवाल है, पेरेंट्स और संबंधित विभाग की अनदेखी से बड़ा हादसा हो सकता है।

सीबीएसई, आईसीएसई बोर्ड के स्कूल
-630 ऑटो चलते हैं शहर में
-75 ऑटो के बने हैं परमिट
-20 हजार से अधिक बच्चे पढ़ते हैं निजी स्कूलों में
188 निजी स्कूल हैं शहर में

यह है सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन
-स्कूल बस पीले रंग की होना चाहिए।
-स्कूली वाहन पर स्कूल का नाम और नंबर लिखा होना चाहिए।
-गति नियंत्रण के लिए स्पीड गवर्नर लगा होना चाहिए।
-खिड़कियों में ग्रिल लगी होना चाहिए।
-वाहन में फस्र्ट एड बॉक्स उपलब्ध होना चाहिए।
-वाहन में अग्निशमन यंत्र भी लगा होना चाहिए।
स्कूली वाहनों को भी चेक किया जाता है, मानक की अनदेखी करने वाले वाहनों से जुर्माना वसूला जाता है। अब तक पांच सौ से अधिक ऑटो चालकों पर कार्रवाई की गई है।
अरुण चंद, उपायुक्त, ट्रैफिक पुलिस

Posted By: Inextlive