सुबह पांच बजे से ही चिडिय़ों की चहचहाहट होती थी तो पता चल जाता था कि अब सुबह हो गई है लेकिन बढ़ते शहरीकरण के कारण अब यह आवाजें सुनाई नहीं देती हैं. चिडिय़ों को बचाने के प्रति लोगों को जागरूक करने लिए हर साल पांच जनवरी को राष्ट्रीय पक्षी दिवस मनाया जाता है. एक्सपर्ट हमारे आसपास चिडिय़ों के कम होने का मुख्य कारण पेड़ों का कटना और क्लाइमेट चेंज को मानते हैैं.


आगरा(ब्यूरो)। बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसाइटी के फाउंडर डॉ। केपी सिंह ने बताया कि पक्षी वहां जाते हैैं, जहां पर उनके अनुकूल हैवीटाट (रहवास) होता है। पहले हमारे आसपास पेड़-पौधे, तालाब, झील होती थीं। कई सारे कीड़े-मकोड़े होते थे। ऐसे में पक्षियों को उनके अनुकूल वातावरण मिलता था।

शहरी क्षेत्र से दूर हो गए हैैं अब पक्षी

उन्हें खाना मिलता था। रहने को वह अपने घोंसले बना सकते थे। लेकिन अब हमारे आसपास से ही वह जैव विविधता खत्म हो गई है। ऐसे में पक्षी भी अब शहरी क्षेत्र से दूर हो गए हैैं। उन्होंने बताया कि जो पक्षी आगरा में घरों के आसपास पाए जाते थे। उन्हें कोर्टयार्ड पक्षी कहा जाता है यानि की आंगन की चिडिय़ा। लेकिन अब वह आंगन की चिडिय़ा शहर से दूर चली गई है। अब वह शहर से लगे हुए जंगलों में अपना घर बनाने लगी हैैं। शहर की सीमा बढऩे से उनका हैवीटाट खत्म हो गया और पक्षियों को शहरों में अपनी लाइफ साइकिल को पूरा करना मुश्किल हो गया है।


इनसे है चिडिय़ों को खतरा
डॉ। केपी सिंह ने बताया कि चिडिय़ों को जंगल कटने, हैवीटाट लॉस होने, शिकारियों से खतरा है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक पक्षी की अपनी लाइफ साइकिल होती है। कोई छोटे पेड़ों पर अपना घोंसला बनाता है तो कोई ऊंचे पेड़ों पर अपना घोंसला बनाता है। कोई फल खाता है तो कोई तालाब की काई को खाता है। कुछ पक्षी कीटों को खाते हैैं। इस कारण पक्षी जंगल की ओर जाना ही पसंद करते हैैं। उन्होंने बताया कि आगरा में लोकल माइग्रेंट्स पक्षी बड़ी संख्या में प्रजनन के लिए आते हैैं। इनमें स्पूनविल, लेसरविसलिंगडस, स्पॉट बिल्ड डक, पैराडाइज फ्लाई कैचर, ओरियोल शामिल हैैं। वहीं कई स्थानीय पक्षी आगरा में रहते हैैं। इनमें ग्रे हॉर्नबिल, कॉपर स्मिथ बार्बेट, रेड मुनिया सहित 200 से अधिक प्रजातियां शामिल हैैं। उन्होंने बताया कि उनकी संस्था ने आगरा में 375 पक्षियों की प्रजातियों की संख्या की पहचान की है।
प्रकृति और हमारे स्वास्थ्य के लिए भी पक्षी लाभदायक
पक्षियों को बचाने के लिए मुहिम चलाने वाले लोकस्वर संस्था के राजीव लोकस्वर बताते हैैं कि पक्षी प्रकृति के साथ-साथ हमारे स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक हैैं। वह हमारे आसपास की जैव-विविधता को मेंटेन करने का काम करते हैैं। उन्होंने बताया कि प्रत्येक पक्षी बाजरे का दाना नहीं खाता है। पक्षी अपने अनुरूप खाना खाते हैैं। इसलिए हमें अपने आसपास फलदार वृक्ष लगाने चाहिए। ताकि पक्षी उन फलों और पत्तियों को खा सकें। पेड़ों पर होने वाले कीटों को खा सकें। उन्होंने कहा कि अब तो शहर से पेड़ ही कम हो गए हैैं। इससे प्रकृति और हमारे स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पडऩे लगा है।

पालीवाल पार्क में पक्षियों का रहवास
डॉ। केपी सिंह बताते हैैं कि आगरा में शहर के बीचों-बीच पालीवाल पार्क में अभी भी पक्षियों के लिए हैवीटाट बचा हुआ है। यहां पर पक्षियों के लिए पेड़ों की वैरायटी से लेकर, झील भी मौजूद है। इसके साथ ही यहां पर विभिन्न कीट भी मौजूद हैैं।

यहां पर आते हैैं पक्षी
- सूर सरोवर पक्षी विहार
- जोधपुर झाल
- चंबल सफारी
- पालीवाल पार्क

यह लोकल माइग्रेंट्स हैैं आगरा में
- स्पूनविल
- लेसरविसलिंगडस
- स्पॉट बिल्ड डक
- पैराडाइज फ्लाई कैचर
- ओरियोल

यह स्थानीय पक्षी हैैं आगरा में
- ग्रे हॉर्नबिल
- कॉपर स्मिथ बार्बेट
- रेड मुनिया
- गौरैया
- तोता
200 से अधिक पक्षियों की प्रजातियां है शहरी क्षेत्र में
375 के करीब पक्षियों की प्रजातियों की पहचान हो चुकी है आगरा में

इस कारण खत्म हो रहे पक्षी
- शहर की सीमा बढऩे से
- हैवीटाट (रहवास) खत्म होने से
- पेड़ों, झाडिय़ों, तालाबों, झील के खत्म होने से
- क्लाइमेट चेंज के कारण

पक्षियों को अपनी लाइफ साइकिल पूरा करने के लिए हैवीटाट की आवश्यकता होती है। शहरी क्षेत्र बढऩे से पक्षी शहर से सटे हुए जंगलों में चले गए हैैं। क्लाइमेट चेंज और पेड़ों के कटने से काफी प्रभाव पड़ा है।
- डॉ। केपी सिंह, फाउंडर, बीडीआरएस

प्रत्येक पक्षी का अपना अलग भोजन होता है। जहां पर उनके लिए भोजन होता है वह वहीं जाते हैैं। बढ़ते शहरीकरण ने आगरा के नेटिव पक्षियों को हमारे बीच से दूर कर दिया है। हमें शहर में विभिन्न फलदार पेड़ों को लगाना चाहिए।
- राजीव गुप्ता, फाउंडर, लोकस्वर संस्था

Posted By: Inextlive