मजदूरों से भी कम मेहनताना पा रहे भावी डॉक्टर्स!
- साढ़े सात हजार रुपए महीने स्टाइपेंड पर दो-दो शिफ्टों में काम कर रहे एमबीबीएस स्टूडेंट्स
- चार गुना बढ़ गई मेडिकल फीस, पर नहीं बढ़ा मेहनताना ALLAHABAD: आप भले ही यकीन न करें, लेकिन यह सच है। भावी डॉक्टरों को मजदूरों से भी कम मेहनताना दिया जा रहा है। बदले में उन्हें दो शिफ्टों में काम करना पड़ रहा है। एमबीबीएस स्टूडेंट्स अब इस मुद्दे को लेकर मुखर हो गए हैं। उन्होंने साफ कर दिया कि सरकार दूसरे राज्यों की तरह यहां भी भावी डॉक्टरों का स्टाइपेंड बढ़ाए। ऐसा न होने पर वे इसको लेकर फिर से अभियान शुरू करेंगे। कंधों पर ही बड़ी जिम्मेदारीइलाहाबाद के एमएलएन मेडिकल कॉलेज समेत पूरे प्रदेश के कॉलेजेस में एमबीबीएस स्टूडेंट्स को पढ़ाई के बाद एक साल की इंटर्नशिप करनी होती है। उन्हें हॉस्पिटल्स में इलाज और देखभाल के तरीकों को सीखना होता है। जिसके लिए उन्हें पर मंथ साढ़े सात हजार रुपये दिए जा हैं। इसके एवज में उनसे दो-दो शिफ्टों में काम कराया जा रहा है। सरकारी अस्पतालों में तो आमतौर पर पूरी व्यवस्था ही इनके कंधों पर होती है।
मजदूरों को पर डे 300 रुपयेभावी डॉक्टरों की तुलना में मजदूरों को ज्यादा मेहनताना मिल रहा है। स्टूडेंटस को हर महीने साढ़े सात हजार रुपये, जबकि मजदूर पर डे 300 रुपये के हिसाब से हर महीने करीब नौ हजार रुपये कमा लेते हैं।
पंद्रह हजार रुपये मिले 12 मेडिकल कॉलेज के करीब पांच हजार स्टूडेंट्स ने स्टाइपेंड की रकम बढ़ाकर पंद्रह हजार करने की मांग की है। इसको लेकर वे प्रदर्शन भी कर चुके हैं। केजीएमसी लखनऊ के पीजी स्टूडेंट डॉ। अजीत यादव ने प्रदेशभर मे सिग्नेचर कैंपेन चलाकर इस मांग को उठाया है। बंगाल में मिलता है 25 हजार सीएम अखिलेश यादव से इस मामले को लेकर मुलाकात कर चुके है अजीज यादव का दावा है कि बंगाल समेत कई दूसरे राज्यों में स्टूडेंट्स को 25 हजार रुपए स्टाइपेंड दिए जा रहे हैं। लिहाजा प्रदेश सरकार को भी स्टाइपेंड की रकम बढ़ाना चाहिए। फैक्ट फाइल वर्ष 2008 से पहले मिलने वाला स्टाइपेंड ढाई हजार प्रति माह था इसके बाद स्टाइपेंड साढ़े सात हजार रुपए प्रतिमाह हुआ एक दिन का मेहनताना ढाई सौ रुपए, जबकि मजदूर का एक दिन का मेहनताना- मिनिमम तीन सौ रुपए एमबीबीएस स्टूडेंट का इंटर्नशिप वर्किंग आवर- छह से 12 घंटे प्रतिदिन मजदूर का प्रतिदिन वर्किंग आवर- आठ से दस घंटे वर्ष 2010 में एमबीबीएस की सालाना फीस थी- नौ हजार रुपएवर्तमान में एमबीबीएस की सालाना फीस- 36 हजार रुपए (चार गुना बढ़ गई)
- इतना पढ़ने के बावजूद हमें मजदूर से कम पैसा मिलता है, जो बेहद शर्मनाक है। पेमेंट भी तीन से चार महीने में किया जाता है। वेद प्रकाश सिंह, एमबीबीएस स्टूडेंट वर्ष 2008 में आंदोलन के बाद ढाई हजार से बढ़ाकर साढ़े सात हजार रुपए स्टाइपेंड हुआ था। अब तो हमारी फीस भी चार गुना तक बढ़ गई है। गंगाराम यादव, एमबीबीएस स्टूडेंट स्टूडेंट्स को जरूरत के मुताबिक हॉस्पिटल में इंटर्नशिप के वर्किंग आवर देने होते हैं। नाइट शिफ्ट में 12 घंटे तक काम कराया जाता है। प्रमोद पांडेय, एमबीबीएस स्टूडेंट दूसरे राज्यों में यूपी से ज्यादा मेहनताना दिया जाता है। इसमें बराबरी होनी चाहिए। हमारे यहां के स्टूडेंट भी उतना ही काम करते हैं। आदित्य सिंह, एमबीबीएस स्टूडेंट सेंट्रल गवर्नमेंट भी न्यूनतम मजदूरी 15 हजार रुपए प्रतिमाह करने का विचार कर रही है। हमारी मांग भी इतना ही स्टाइपेंड दिए जाने की है। आशीष पांडेय, एमबीबीएस स्टूडेंट