MillennialsSpeak : प्रयागराज में #RaajniTEA पर उठी एक आवाज, बच्चों को भारी बस्ते से मिले निजात
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PRAYAGRAJ : देश का शिक्षातंत्र प्राइवेट एजेंसियों के हाथों में है। महंगी शिक्षा हासिल करना सबके बस की बात नहीं। सरकारी स्कूलों में टीचर्स जनगणना और पशुगणना में व्यस्त हैं। जो समय बचता है मिड डे मील बनवाने में निकल जाता है। ऐसे में वह भला बच्चों को पढ़ा पाएंगे? सरकार को इस सिस्टम में बदलाव करना होगा, जिससे गरीब बच्चों को सरकारी स्कूलों में क्वॉलिटी एजुकेशन मिल सके। जो लोग प्राइवेट स्कूलों में पढ़ना चाहते हैं उनको सौ फीसदी स्कॉलरशिप प्रोवाइड कराई जानी चाहिए। गुरुवार को टैगोर टाउन स्थित तमन्ना इंस्टीट्यट ऑफ एलाइड हेल्थ साइंसेज में दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट की ओर से आयोजित मिलेनियल्स स्पीक जनरल इलेक्शन इलेक्शन 2019 में यह बात निकलकर आई।
मनमानी पर लगानी होगी रोक
एक ओर सरकार की मनमानी से शिक्षा का सरकारी सिस्टम फेल्योर साबित हो रहा है तो प्राइवेट स्कूल की मॉनीटरिंग करने वाला कोई नहीं है। बच्चों को भारी बस्ते, हैवी होमवर्क और मोटी फीस के जरिए स्टैंडर्ड एजुकेशन नहीं दी जा सकती है। खासकर ऑफिसर्स को इन स्कूलों की पूरी निगरानी करनी चाहिए। ऐसा सिस्टम बने कि समय-समय पर नॉर्म्स का पालन कराया जाए। वहां क्या चल रहा है इसके लिए पैरेंट्स का फीडबैक भी लिया जाना चाहिए। साथ ही सरकारी सिस्टम में टीचर्स को केवल पढ़ाने में इनवॉल्व करना चाहिए। अधिकारियों पर अपने कम से कम एक बच्चे को सरकारी स्कूल में पढ़ाने का नियम भी बनाया जाना चाहिए। इससे सिस्टम बेहतर हो सकेगा।
हाल ही में सरकार ने सवर्णो को दस फीसदी आरक्षण देने की घोषणा की। ऐसी क्या जरूरत आ गई थी जो सरकार को यह फैसला लेना पड़ा जबकि मांग शुरू से चल रही थी। इस सवाल पर यंगस्टर्स का व्यू एकदम डिफरेंट था। उनका कहना था कि आरक्षण को सरकार ने बैसाखी बना दिया है, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। लोगों को कास्ट की जगह आर्थिक आधार पर रिजर्वेशन देना चाहिए। कुछ का व्यू था कि आरक्षण देने से पहले एग्जाम कराना चाहिए और एलिजिबल की ही सहायता की जानी चाहिए। ग्रामीण एरिया में तैनात कई अधिकारी व कर्मचारी सिस्टम का मजाक बनाते हैं। जबकि सरकार को चाहिए कि महत्वपूर्ण जगहों पर क्वॉलीफाइड और स्किल्ड को नौकरी पर रखना चाहिए।
पेट्रोल और डीजल सस्ता करे सरकार
हर नेता चुनाव के दौरान पेट्रोल और डीजल के दामों को लेकर राजनीति करता है। सरकार बनने पर दाम कम किए जाने का आश्वासन देता है और बाद में इनके दामों पर कोई असर नहीं पड़ता है। मौजूदा सरकार के साथ भी यही हुआ है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रूड ऑयल की कीमत कम होने के बावजूद पेट्रोल और डीजल के दाम कम नहीं हुए। बीच में भले ही इनकी कीमत आसमान छू रही थी। यंगस्टर्स का कहना था कि राज्य सरकार को भी अपने वैट टैक्स में कमी कर देनी चाहिए। इससे लोगों को सस्ता ईधन मिल जाएगा और महंगाई में गिरावट आएगी।
डिबेट के दौरान नोटबंदी हॉट टॉपिक बना रहा। इस मामले पर यंगस्टर्स ने कड़क तरीके से अपनी बात रखी। उनका कहना था कि जिस तरह से सरकार ने नोटबंदी को लागू किया था, उतना रिजल्ट हासिल नहीं हुआ। अगर देश में एक फीसदी लोग काला धन रखे हैं तो इसके लिए 99 फीसदी परसेंट को क्यों परेशान किया गया। सरकार काला धन लाने के लिए दूसरा रास्ता भी अख्तियार कर सकती थी। इस अभियान से वह लोग भी परेशान हुए जिनका कोई दोष नही था। वह घंटों लाइन में खड़े रहे। कुछ की मौत हो गई। नोटबंदी पर दूसरे पक्ष ने भी अपनी बात रखी। उनका कहना था कि इससे डिजिटल मनी को बढ़ावा मिला। इससे भ्रष्टाचार में भी कमी आई।मेरी बातp id="playid34">
स्वच्छ भारत अभियान की तारीफ की जानी चाहिए। हालांकि इसमें इम्प्रूवमेंट की जरूरत है। विदेशों में सरकार कूड़ा बेचकर अर्निग कर रही है लेकिन हमारे देश में अभी भी साफ-सफाई का मुद्दा सिर चढ़कर बोल रहा है। ऐसे प्लांट लगाए जाने चाहिए कि कूड़े का यूटिलाइजेशन किया जा सके। ऐसा हुआ तो पब्लिक को कूड़े से भी आय होगी। हमें हर दिशा में पाजिटिव सोचना होगा।
- डॉ। अशोक शुक्ला, फैकल्टी मेंबर
किसी भी देश की शिक्षा प्रणाली उसकी नींव होती है। जब तक यह मजबूत नहीं होगी, कोई देश तरक्की नहीं कर सकता है। हमारा देश पूरी दुनिया में अपनी शिक्षा पद्धति के लिए मशहूर था लेकिन अब इसका स्टैंडर्ड गिर रहा है। सरकार कोई भी बने लेकिन सबका पहला एजेंडा क्वॉलिटी एजुकेशन देने का हो। अब थियोरेटिकल एजुकेशन का जमाना नहीं है। यंगस्टर्स को ऐसी शिक्षा देनी होगी, जिसके जरिए उसे तत्काल रोजगार हासिल हो सके।
-डॉ। पंकज चौबे, फैकल्टी मेंबर
दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट का यह बेहतर इनीशिएटिव है। यंगस्टर्स से कोई पूछने नहीं आता कि उसे कैसी सरकार चाहिए। हमारी बात दिल में रह जाती है। यह एक अच्छा मंच है जहां हमने अपने मुद्दों पर चर्चा की। लेकिन इस बात को यहीं खत्म नहीं हो जाना चाहिए। हॉट टॉपिक्स पर हमारी चर्चाओं को नेताओं तक पहुंचाना चाहिए, जिससे उन्हें भी पता चले कि यूथ क्या सोचता है।
-प्रियंका पांडेय, स्टूडेंट
-वीरेंद्र चोपड़ा, स्टूडेंटहमें वन नेशन वन लॉ की बात करनी चाहिए। कश्मीर से धारा 370 हटाने का समय आ गया है। अभी भी पूरा देश पुलवामा घटना से बाहर नहीं आ पाया है। इस लॉ को हटाने के बाद अपने आप आतंकवादियों की गतिविधियां कम हो जाएंगी। इस सरकार को अपने इस वायदे पर खरा उतरना होगा। आरक्षण पर कहूंगा कि इसे कास्ट के बजाय आर्थिक आधार पर जरूरतमंदों को ही देना चाहिए।
-धीरज शर्मा, स्टूडेंटजो महंगे प्राइवेट इंस्टीट्यूट हैं वहां पर सौ फीसदी स्कॉलरशिप की सुविधा स्टूडेंट्स को दी जानी चाहिए। कम से कम जो एलिजिबल है उसको तो क्वॉलिटी एजुकेशन मिल सके। वरना टैलेंट ऐसे ही खत्म हो जाता है और पैसे वाले डिग्री खरीदकर नौकरी पा जाते हैं। ग्रामीण एरिया में अभी भी अनक्वॉलीफाइड लोग महत्वपूर्ण पदों पर बैठकर सिस्टम की ऐसी की तैसी कर रहे हैं। इससे जनता को दिक्कत हो रही है।
-ज्योति श्रीवास्तव, फैकल्टी मेंबरआजकल देखा जा रहा है कि नकल सामने आने पर सरकार पूरा एग्जाम कैंसिल कर देती है। ऐसा क्यों हो रहा है। किसी एक की सजा बाकी ईमानदार स्टूडेंट को क्यों दी जाती है। जिसने सिस्टम को खराब किया है उसके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। लेकिन ऐसा नही होता है जिससे उन लोगों को भी दिक्कत होती है जिन्होंने गलती नही की है। दूसरी सरकारों को पिछली सरकारों की भर्तियों पर भी रोक नही लगानी चाहिए।
-रोशनी गर्ग, स्टूडेंटकरप्शन पर रोक लगानी चाहिए। कई योजनाओं का कार्यान्वयन ऑनलाइन हो गया है लेकिन अभी भी लूप होल्स बने हुए हैं। खासकर ग्रामीण जनता जब सेंटर्स पर इन योजनाओं का लाभ लेने जाती है तो उसे ठगी का सामना करना पड़ता है। कम से कम लोगों को यह पता होना चाहिए कि किस योजना के ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन का चार्ज कितना है और इसके बदले में उससे कितना वसूला जा रहा है।
-छविराज कुमार, स्टूडेंटमैं भी इस बात से सहमत हूं कि आरक्षण हमेशा आर्थिक आधार पर ही दिया जाना चाहिए। जो लोग समाज में निचले आर्थिक वर्ग से आते हैं उनको आगे बढ़ाने के लिए आरक्षण दिया जाना चाहिए। उनकी मानीटरिंग भी की जानी चाहिए। ऐसा नहीं करने से योजना का लाभ अपात्र को मिल जाता है जिससे सिस्टम के साथ सरकार की बदमानी भी होती है।
-आकृति सिंह, स्टूडेंटसरकारी हॉस्पिटल्स में पैरामेडिकल स्टाफ को क्वालिफाइड होना चाहिए। इससे मरीजों को काफी राहत होती है। कई बड़े हॉस्पिटल्स में ऐसा नहीं है। ऐसी नर्सेज को काम पर लगाया गया है जिन्हें इंजेक्शन तक लगाना नहीं आता है। ऐसी हालत में इलाज का गलत प्रभाव मरीज और परिजनों पर पड़ता है।
-श्रियंका पांडेय, स्टूडेंट