सात में चौथी बार सछास को मिली अध्यक्षी
एबीवीपी नहीं दिखा सकी 2015 का करिश्मा, पिछले साल चार सीट आई थी सछास के कब्जे में
एक बार ही एबीवीपी को मिला छात्रसंघ अध्यक्ष, आइसा-एसएफआई समेत अन्य संगठनों को फिर निराशा vikash.gupta@inext.co.inALLAHABAD: वर्ष 2007 से छात्रसंघ चुनाव पर रोक के बाद केन्द्र में यूपीए गवर्नमेंट के कार्यकाल में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ चुनाव बहाल किया गया। इसकी घोषणा इविवि के पूर्व कुलपति प्रो। एके सिंह के कार्यकाल में वर्ष 2012 में हुई थी। उस समय कुलपति प्रो। एके सिंह छात्र परिषद के गठन के पक्ष में थे। लेकिन इविवि में छात्रों के लंबे आन्दोलन के बाद प्रो। एके सिंह को नई दिल्ली से मिले निर्देश के बाद मजबूरन छात्रसंघ चुनाव की घोषणा करनी पड़ी थी। तब से अब तक कुल सात छात्रसंघ चुनाव हो चुके हैं। इनमें समाजवादी पार्टी से जुड़े छात्र संगठन समाजवादी छात्रसभा का दबदबा रहा है। क्योंकि इन सात चुनावों में छात्रसभा के चार अध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं। वहीं चुनाव परिणाम में दो महत्वपूर्ण सीट हासिल करने के बाद कांग्रेसी भी गदगद है।
पहले चुनाव से दबदबाइसकी तस्दीक शुक्रवार देर रात आए इविवि छात्रसंघ चुनाव परिणाम से हो रही है। इसमें समाजवादी छात्रसभा से अध्यक्ष पद के प्रत्याशी उदय प्रकाश यादव और संयुक्त मंत्री सत्यम सिंह सैनी को जीत हासिल हुई है। हालांकि, छात्रसभा पिछले साल की तरह धमाकेदार जीत नहीं दर्ज कर सकी। क्योंकि साल 2017 के चुनाव में छात्रसभा से अध्यक्ष अवनीश कुमार यादव, उपाध्यक्ष चन्द्रशेखर चौधरी, संयुक्त मंत्री भरत सिंह और सांस्कृतिक मंत्री अवधेश कुमार पटेल शानू को बंपर जीत मिली थी। चार महत्वपूर्ण पद पर छात्रसभा तो महामंत्री पर निर्भय कुमार द्विवेदी को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जीत हासिल हुई थी। महत्वपूर्ण पदों पर छात्रसभा का दबदबा इसी से समझा जा सकता है कि वर्ष 2012 के पहले चुनाव में ही समाजवादी छात्रसभा के ही दिनेश सिंह यादव को अध्यक्ष पद पर जीत हासिल हुई थी। हालांकि, बाद में दिनेश का निर्वाचन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अवैध घोषित कर दिया था।
छात्रसभा के समर्थन से जीती थीं ऋचाइसी तरह 2014 के चुनाव में भी समाजवादी छात्रसभा के पैनल से भूपेन्द्र सिंह यादव अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुए थे। इस चुनाव में सछास के पैनल से ही संदीप यादव झब्बू महामंत्री निर्वाचित हुए थे। 2015 के चुनाव में आजादी के बाद चुनी गई पहली महिला छात्रसंघ अध्यक्ष ऋचा सिंह ने भले ही छात्रसंघ चुनाव फ्रेंड्स यूनियन से लड़ा हो। लेकिन ऋचा को अध्यक्ष पद पर चुनाव से ठीक पहले सपा का समर्थन हासिल हुआ था। चुनाव जीतने के बाद ऋचा पूरी तरह से सपा में शामिल भी हुई और विधानसभा चुनाव में शहर पश्चिमी से सपा के टिकट पर चुनाव भी लड़ा।
2015 में एबीवीपी डायनामाइट छात्रसंघ चुनावों में समाजवादी छात्रसभा की धमक यहीं नहीं थमती। वर्ष 2016 के चुनाव में भले ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से अध्यक्ष पद के उम्मीदवार रोहित मिश्रा और संयुक्त सचिव अभिषेक पांडेय ने जीत दर्ज की। लेकिन उपाध्यक्ष आदिल हमजा, महामंत्री शिव बालक यादव और सांस्कृतिक मंत्री मनीष कुमार सैनी ने दमदार जीत दर्ज करके तहलका मचा दिया था। वहीं बात भगवा संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की करें तो वह इस बार भी साल 2015 का करिश्मा नहीं दोहरा सकी। साल 2015 में एबीवीपी से उपाध्यक्ष विक्रांत सिंह, महामंत्री सिद्धार्थ सिंह गोलू, संयुक्त सचिव श्रवण जायसवाल और सांस्कृतिक मंत्री जितेन्द्र शुक्ला कवि विशाल निर्वाचित हुए थे। इस साल हुए चुनाव में चार सीट एबीवीपी की झोली में आने से केन्द्र में बैठी भारतीय जनता पार्टी की सरकार को गदगद होने का मौका मिला था। एनएसयूआई ने दलबदलू नहीं फ्रेश कैंडिडेट पर जताया भरोसाउधर, बात कांग्रेसी संगठन एनएसयूआई की करें तो साल 2012 से छात्रसंघ चुनावों पर बैन हटने के बाद से यह पहला मौका है, जब एनएसयूआई के खाते में उपाध्यक्ष और सांस्कृतिक मंत्री की कुर्सी आई है। उपाध्यक्ष अखिलेश यादव और सांस्कृतिक सचिव आदित्य सिंह को जीत दर्ज करने के बाद से बधाईयां पर बधाईयां मिल रही हैं। प्रदेश महासचिव यूथ कांग्रेस देवमणि मिश्रा कहते हैं इस जीत ने कांग्रेसियों में उत्साह का संचार किया है। कार्यकर्ताओं को राहुल गांधी के कार्यालय से फोन आया है। देवमणि के अलावा एनएसयूआई के जिलाध्यक्ष पृथ्वी प्रकाश त्रिपाठी बताते हैं कि इससे पहले 2002 में संजय तिवारी उनके संगठन से अध्यक्ष बने थे और 2005 में ब्रजेन्द्र मिश्रा ने उपाध्यक्ष की कुर्सी हासिल की थी। उन्होंने बताया कि हाईकमान चाहता था कि छात्रसंघ चुनाव में हर हाल में जीत मिले। यही कारण है कि केवल इन्हीं दो पदों पर प्रत्याशी उतारे गए और नए पुराने कार्यकर्ता और पदाधिकारी ने जीत दर्ज करने के लिए जी जान एक कर दिया। बताया कि एनएसयूआई ने फैसला किया था कि जिसे भी लड़ाएंगे, वह फ्रेस आवेदक होना चाहिए न कि कोई दलबदलू।
2013 में प्रतियोगी मोर्चा से अध्यक्षउधर, बात आइसा, एआईडीएसओ, एसएफआई समेत अन्य संगठनो की करें तो आइसा-एसएफआई जैसे प्रतिष्ठित संगठनो को एक बार फिर युवाओं ने नकार दिया है। इससे पहले वर्ष 2012 में उपाध्यक्ष शालू यादव और वर्ष 2014 में उपाध्यक्ष नीलू जायसवाल आइसा से निर्वाचित हुई थीं। वर्ष 2013 के चुनाव में स्व। कुलदीप सिंह केडी प्रतियोगी छात्र मोर्चा के पैनल से अध्यक्ष पद का चुनाव जीते थे। इसके अलावा जनता दल यू, छात्र स्वतंत्रता संघर्ष, सामाजिक न्याय संयुक्त छात्र मोर्चा समेत अन्य छात्र संगठन भी जीत के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वर्ष 2012 व 2013 के चुनाव में दल से अलग निर्दल चुनाव लड़ने वालों की भी हनक देखने को मिली थी। लेकिन बाद में इनकी चमक भी फीकी पड़ती गई। वर्ष 2012 में महामंत्री पद के चर्चित चुनाव में अभिषेक सिंह माइकल ने हंगामेदार विजय हासिल की थी।
वर्षवार अध्यक्ष पद के प्रत्याशी -------------------- 2012 ---- दिनेश सिंह यादव (सछास)- 2543 मत जीते अभिषेक सिंह सोनू- 1491 2013 ---- कुलदीप सिंह केडी (प्रतियोगी छात्र मोर्चा)- 2143 मत जीते राणा यशवंत प्रताप सिंह आजाद (एबीवीपी)- 1977 2014 ---- भूपेन्द्र सिंह यादव (सछास) ने सनत कुमार मिश्रा (एबीवीपी) को 676 मतों से पराजित किया। 2015 ---- ऋचा सिंह (फ्रेंडस यूनियन)- 2253 मत जीती रजनीश सिंह ऋशू (निर्दलीय)- 2242 2016 ---- रोहित मिश्रा (एबीवीपी)- 3397 मत जीते अजीत यादव विधायक (सछास)- 3302 2017 ---- अवनीश कुमार यादव (सछास)- 3226 मत जीते मृत्युंजय राव परमार- 2674 2018 ---- उदय प्रकाश यादव (सछास)- 3698 मत जीते अतेन्द्र सिंह (एबीवीपी)- 2924