ALLAHABAD : किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं लेकिन गवर्नमेंट का सपोर्ट न मिलने से अभावों में जीना मजबूरी बन गई है. इंटरनेशनल और नेशनल लेवल पर ऑर्गनाइज हुई मैराथन में बड़ा एचीवमेंट न होता तो घर चलाना भी मुश्किल हो जाता. हम बात कर रहे हैं हाल ही में दिल्ली में हुई मवाना सुगर मैराथन में थर्ड प्लेस हासिल करके लौटीं धावक अनीशा देवी की.


मैराथन की शुरुआत

बेसिकली थरवई की रहने वाली अनीशा देवी दो बहनों में छोटी हैं। 14 साल की एज में पहली बार मैराथन में कदम रखा और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। गांव में रेस लगाकर कॅरियर की शुरुआत करने वाली अनीशा ने सबसे पहले नौ किलोमीटर क्रास कंट्री रेस में पार्टिसिपेट हिस्सा लिया। पहले प्रयास में उन्हें मुंह की खानी पड़ी क्योंकि प्रापर गाइडेंस न मिलने के कारण तैयारी अधूरी रह गई थी। बावजूद इसके अनीशा ने हार नहीं मानी और संघर्ष जारी रखा। इंदिरा मैराथन में खुद को सबसे बेहतर साबित करने के लिए कोशिशों में लग गईं। प्रॉब्लम ने कभी नहीं छोड़ा पीछा
अनीशा देवी के अनुसार उनके घर की इकोनॉमिकल कंडीशन शुरू से अच्छी नहीं थी। परिवार में एक बड़ी बहन और तीन भाइयों के होने से उन्हें घर से बाहर निकलकर ट्रेनिंग लेने का मौका नहीं मिला लेकिन घर वालों ने उन्हें इस रास्ते पर जाने से रोका भी नहीं। हौसला हमेशा बढ़ाते रहे। औसत आय वाले इस परिवार में बमुश्किल सबके लिए खाने का इंतजाम हो जाय, यही बहुत था। पिता भइया राम आबकारी विभाग में सिपाही हैं लेकिन घर में खेती-बारी के नाम पर कुछ ही बीघा जमीन है।इकोनॉमिकल कंडीशन अच्छी नहीं थी


 पिता का कंसंट्रेशन समय पर बेटियों की शादी कर देने पर था सो बड़ी बेटी के हाथ पीले करने के बाद उन्होंने अनीशा को भी 2009 में सात फेरों के बंधन में बांध दिया। शादी के बाद ससुराल आने पर भी अनीशा की प्राब्लम कम नहीं हुई क्योंकि यहां की भी इकोनॉमिकल कंडीशन बहुत अच्छी नहीं थी। अनीशा ने कहा कि शादी के बाद मैदान छोड़ देने का ख्याल कई बार मन में आया लेकिन ससुरालवालों ने उसे समझाया और आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया.  कोच का सहयोग मिलाअनीशा अपनी सफलता का श्रेय मदन मोहन मालवीय स्टेडियम के कोच रुस्तम खान को देती है। उसका कहना था कि रुस्तम खान ने हर कदम पर उसकी मदद की। ग्राउंड पर प्रैक्टिस के दौरान वह हमेशा साथ में मौजूद रहते थे और मैराथन जीतने के टिप्स दिया करते थे। यह सिलसिला बदस्तूर आज भी जारी है। पति का भरपूर support

अनीशा के पिता भइया राम ने 2009 में बेटी का विवाह सोरांव के रहने वाले पिंटू लाल के साथ किया। अनीशा का कहना है कि ससुराल आने के बाद पति ने गेम को लेकर हमेशा सपोर्ट किया। पति पिंटू ने कहा कि वह नहीं चाहता था कि उनकी पत्नी किसी से पीछे रहे। इसीलिए उन्होंने हर कदम पर पत्नी का साथ देने का फैसला लिया। शायद यही कारण है कि शादी के बाद अनीशा के खाते में एक के बाद एक करके कामयाबियां जुड़ती गईं। वह कहते हैं कि मेरी रोज की कमाई से जो भी आय होती है उसे मैं अनीशा की डाइट और पढ़ाई पर खर्च करता हूं ताकि वह अपने जीवन का हर सपना पूरा कर सके।Government से मिली बेरुखीअनीशा चाहती है कि उसकी जॉब लग जाय ताकि उसके कदम और आगे बढ़ें। घर की आर्थिक स्थिति सुधरे और वह इस मोर्चे पर निश्चिंत हो सके। अभी तक तो जिंदगी किराए के मकान में ईनाम की कमाई से चल रहा है।Achievements2009     इंदिरा मैराथन                 सेकंड प्लेस 2010     इंदिरा मैराथन                फस्र्ट प्लेस 2010    साबरमती मैराथन             फस्र्ट प्लेस2011     इंदिरा मैराथन                 फस्र्ट प्लेस2011    मवाना सुगर इंडिया मैराथन     थर्ड प्लेस2011    पूर्वांचल हाफ मैराथन            फस्र्ट प्लेस 2012    एयरटेल ओपेन मैराथन           सेकंड प्लेस2012     मवाना सुगर मैराथन            थर्ड प्लेस

Posted By: Inextlive